Jankriti International Magazine vol1, issue 14, April 2016 | Page 77

जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका / Jankriti International Magazine( बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की 125वीं जयंिी पर समतपिि अंक)
ISSN 2454-2725
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिक
( बाबा साहब डॉ. भीमराव
1. भानावत, डॉ. महेन्र और जुगनू, डॉ. श्ीकृ ष्ण.( 2003) भारतीय लोक माध्यम, राजस्थान ष्टहन्दी ग्रंथ
अकादमी, जयपुर, पृ. 1. 2. दुबे, डा. श्यामाचरण,( 1993) मानव और संस्कृ ष्टत, राजकमल प्रकार्न, नई ष्टदकली, पृ.-155 3. वही, पृ. 162-163. 4. कु मार, ष्टजनेर्.( 2015) परंपरागत माध्यमों का अद्भुत संसार, कम्यूष्टनके र्न टुडे( अंक 17, खण्ड
03), पृ. 152-154.
5. ष्टत्रवेदी, राजेश्वर.( 2011) बैगा( संपा.), वन्या प्रकार्न आष्टदम जाष्टत ककयाण ष्टवभाग, भोपाल पृ.
49. 6. वही, पृ. 51. 7. वही, पृ. 51. 8. वही, पृ. 52. 9. वही, पृ. 52. 10. वही, पृ. 52. 11. वही, पृ. 53. 12. वही, पृ. 53.
माखिलाल चिुवेदी
सृष्टि में सजीव-ष्टनजीव सभी अपनी प्रष्टतपादन भारतीय मनीष्टियों ने प्राचीन काल ही गहनता से ष्टवचार-ष्टवमर्श ष्टकया है । परंपर र्ुरुआत से ही जुडी हुई हैं । भारत के प्रत्येक में ही है । लोग ष्टजसे अपनी पररपाटी कहते ह संवष्टहत होती है, वहीं लोक-परंपराओं को वतशमान में माध्यमों का जो स्वरूप देखने क पारंपररक माध्यम हमारे जीवन में महत्वपूणश आष्टद के ष्टलए सेतु का काम करते हैं । पारंपर बष्टकक सामाष्टजक संवाद तथा सामाष्टजक सह मान्यताओं की एक ष्टवर्ाल श्ृ ंखला ष्टमलती है । परंपराएं हर ष्टस्थष्टत-पररष्टस्थष्टत में अनुकरण
संस्कृ ष्टत मानव की वह जीवन र्ैली सजाया और संवारा है । लोक-संस्कृ ष्टत, लोक बौष्टिक कु र्लता के साथ-साथ रृदय की स गया है । डा. श्यामाचरण दुबे ने भी अपनी प प्रकृ ष्टत के सामान्य रूप से संतुि नहीं रहा ह प्रवृष्टि रही है ।” 2 मानवीय इष्टतहास में र्ायद अलग-थलग रहा हो । वहीं कोई भी ष्टचंतन सकता । ‚ सौन्दयश के प्रष्टत मानव का रुझान संसार के प्रत्येक भाग में उसने कला का क ष्टकया है । मानव की कलात्मक चेतना के र्ा
Vol. 2, issue 14, April 2016. वर्ष 2, अंक 14, अप्रैल 2016.
Vol. 2, issue 14, April 2016.