Jankriti International Magazine vol1, issue 14, April 2016 | Page 73

जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका / Jankriti International Magazine( बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की 125वीं जयंिी पर समतपिि अंक)
ISSN 2454-2725
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिक
( बाबा साहब डॉ. भीमराव अ
डॉ0 आंबेडकर अिनी पशक्षा िूरी कर जब पवदेश दे लौटे तो अनुबंध के तहत अिनी सेवा देने बड़ौदा िहुंचे | यही से उनके जीवन को नई पदशा पमली | बड़ौदा िहुँचने िर उसकी सबसे बदी समस्या वहाँ ठहरने की हुई | दपलत जापत को कौन वहाँ रहने की जगह देगा, उनकी सबसे बड़ी समस्या थी | पकसी तरह एक िारसी के सराय में रहने की जगह पमल गई, िर शाम ढलते न ढलते वहाँ कु छ ब्राह्मणवादी पवचार के लोग िहुँच जाते हैं और उन्हें वो सराय को खाली करना िड़ता है | एक पवदेश से लौटे उ्च पशक्षा प्राप्त पकए इंसान के साथ जानवरों जैसा व्यवहार पकया जा रहा था वो अिनी पशकायत करें भी तो पकसे करें, महाराज स्वयं ब्राह्मणवादी पवचार के िोषक थे उनके दरबार के सभी उ्च िदों िर पद्वज पवराजमान थे, वे लोग नहीं चाहते थे की कोई महार जापत के लोग पकसी उ्च िद िर आसीन हो और उसके नीचे सवणा को काम करना िड़े, महाराज सवणा िक्षों में आकार पकसी तरह की सहायता करने से माना कर देते हैं | शाम होते ही उन्हें िारसी का सराय को छोड़ना िड़ता है बंबई की गाड़ी रात को थी इसपलए बचे समय को गुजारने के पलए िास के पकसी बगीचे में पबताना िड़ता है |“ हहन्दू धमष के रहते हुए उनके समाज की ऐसी हथिहत क्यों है? उस पर बार-बार हवचार करते रहते िे | दहलत पररवार में जन्म लेकर क्या उनहोंने कोई अपराध हकया िा? उनके पास हसर्ष यादें बचीं िी, हजनसे पीछा नहीं छु ड़ा पा रहे िे | हहन्दू समाज की परत दर परत खुलती चली जा रही िी | द्वीजों के हवभत्स हचत्र उनकी आँखों में अभी भी रचे बसे िे |” ब्राह्मणवादी पवचार समाज में इस तरह से हावी था पक पशपक्षतों को भी उसके भीतर जगह नहीं थी | समाज का मानपसक पदवापलया हो चुका था | कौन जनता था की यही वो आदमी पजसे समाज दुत्कार रहा है भारत का भपवष्य पनम ाण करेगा | तत्कालीन समय में कोई भी उनके जैसा पशपक्षत नहीं था पफर भी दपलत होने के नाते उनकी पशक्षा का महत्व देने को कोई तैयार नहीं था, पशक्षा से ऊं चा ब्राह्मणवादी पवचारधार थी, जो समाज को कई टुकड़ों में बाँट दी थी, वेद, िुराण, उिपनषद की महिा थी मानवीय पवचारधार के कोई जगह नहीं थीं | इंसान होकर भी इंसापनयत से कोसों दूर था | डॉ0 आंबेडकर के मन में उस समय जो तूफान उठा था उसकी ताकत से समाज के जकड़ बंपदयों को तोड़ा देना चाहते थे | उसी समय उनके मन में पवचार आया की जब तक हम दपलतों को पशपक्षत नहीं कर देगे, उनके अपधकार को िाना असंभव है | पशक्षा अपधकार िाने के पलए तो जरूरी है ही साथ ही साथ अिने हक के पलए संघषा की भी जरूरत है | नवंबर 1918 नाय गाँव, िरेल बंबई में बाबा ने दपलतों को सम्बोधन करते हुए ऐपतहापसक भाषण पदए थे“ तुम्हारे चेहरे की दयनीय दशा देखकर, तुम्हारी हनराशापूर्ष आँखों के खालीपन को महसूस कर और तुम्हारी दबी हुई जुबान सुनकर मेरा हृदय र्टा जा रहा है | हकतने वषों से तुम लोग अत्याचार की चक्की में हपसे जा रहे हो | हर्र भी तुम में साहस और थवाहभमान पैदा नहीं होता | तुम लोग पैदा होते ही मर क्यों नहीं गए? तुमलोगों ने अपने इस दीन-हीन, हतरथकार पूर्ष जीवन से पृथ्वी पर भार क्यों बढ़ाया है? अगर तुम अपने दीन-हीन अपमान पूर्ष जीवन को बदल नहीं सकते तो तुम्हारा मर जाना ही अच्छा है | थवयं सम्मान पूवषक जीहवत रहने के हलए, अच्छा वस्त्र और आवास प्रा्त करना तुमहरा जन्म हसध्द अहधकार है | अगर तुम सम्मान का जीवन हबताना चाहते हो तो संघ ष करना पड़ेगा | अपने आप पर हवश्वास करके आगे बढ़ाना
होगा आत्महवश्वास, आत्मसम्मान, आत्मह पैदा करो |” इस तरह उन्हों ने अिने प्रथम भ पलए जन ज्वार उमड़ िड़ती थी और हो भी आत्मसम्मान की भावना जागी | अिने अपध लामबंध होना शुरू पकए | डॉ0 आंबेडकर ने द हुए | जहां भी गए वहाँ सवणा के चुनौपतयों क के सामने गये गए भाषणों में पब्रपटश सरकार िर हलए हजन अथपृश्यों का उपयोगा हकया ग हदया | हहन्दू समाज की ओर से अथपृश्यों अपना उध्दार कर पाना संभव होगा क्या? हालत में दपलत क्या स्वतन्त्रता का लाभ उठ समस्या की ओर इशारा पकया था आज वह स बेमानी होती जा रही है समाज में दपलत को प्रतापड़त पकया जाता है |
डॉ0 आंबेडकर ने पजन िररपस्थपतयों म या तो आत्मरक्षा के पलए आत्महत्या कर लेत जीते हैं | िर बाबा ने इन दोनों मागा से अलग दपलतों की प्रेणना हैं जो समता के अपधकार क वेदना की आँसू अभी सूखे नहीं, बाकी है अभ
Vol. 2, issue 14, April 2016. व ष 2, अंक 14, अप्रैल 2016. Vol. 2, issue 14, April 2016.