जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका / Jankriti International Magazine( बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की 125वीं जयंिी पर समतपिि अंक)
ISSN 2454-2725
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिक
( बाबा साहब डॉ. भीमराव अ
अजय कु मार चौधरी
पिछले पदनों अंबेडकर जयंती थी इसपलए डॉ0 भीमराव अंबेडकर को लेकर पवद्वजनों में चचााएँ गरम थी कोई गांधीवादी पवचार धारा से लैश गांधी को महान बता रहे थे, तो कोई आंबेडकरवादी आंबेडकर को महान बता रहे थे, मेरा मानना है पक दोनों ही इस देश की महान पवभूपतयाँ है दोनों का क्षेत्र एक होने की वजह से कई वैचाररक भ्ांपतयाँ थी तो कई पवंदुओं िर एक भी | वतामान समय में कई पवद्वान है पजनकी पवचारधारा एक दूसरे से नहीं पमलती है तो क्या हम एक को महान और एक को तुक्ष बोल सकते हैं, नहीं | ठीक उसी प्रकार बाबा और गांधी भी अिने समय के युगिुरुष है दोनों की पवचार धारा महान है दोनों ने देश को नई पदशा दी | दोनों में से पकसी एक को महान बता कर हम एक का अिमान ही करेंगे, इसपलए कम से कम देश के महान पवभूपतयों के साथ आि लोग ऐसा व्यवहार न करें | डॉ0 आंबेडकर की पवचारधारा भले ही गांधी से न पमलती हो और न ही गांधी की पवचार धारा आंबेडकर से, लेपकन दोनों एक पसक्के के दो िहलू है, पकसी एक के पबना पसक्का खोटा हो जाएगा इस पलए पवद्वानों से अनुरोध है पक वे अिने महान पवभूपतयों का सम्मान करें |
जहां बात जापत-व्यवस्था की हो वहाँ बाबा अंबेडकर का नाम न आए तो यह आलोचना बेमानी होगी, बाबा दपलतों के मसीहा हैं, कोई भी व्यपि पकसी वगा का अचानक मसीहा नहीं बन जाता है मसीहा बनने की िररपस्थयाँ उनके अनुकू ल होनी चापहए | जब हम बाबा के व्यपिगत जीवनी में झाँकते है तो िाते है पक इनकी पजंदगी पवसंगपतयों से भरा िड़ा है | पिता फौज में नौकरी करते हैं उनके पिता का पशक्षा के प्रपत पवशेष आ्रहह था वह अिने ब्चों को उ्च पशक्षा पदलाना चाहता था तभी तो सेना से सेवापनवृत होने के बाद बंबई के तंग गपलयों के तंग मकान में रहकर भी िढ़ाई-पलखाई को कायम रखते हैं |
ईस्ट इंपडया कं िनी सरकार के पनयम के तहत फ़ौज में सभी को अपनवाया रूि से पशक्षा दी जाती थी | फौज के लड़के – लड़पकयों के पलए पदन का स्कू ल और बड़े बुजुगों के पलए राता में िाठशालाएँ अलग लगती थी | उनके पिता ने पशक्षक का पडप्लोमा प्राप्त पकया था | वे चौदह वषों तक हेड मास्टर रहे | फौज में रहते हुए पकसी दपलत का इस िद िर होना उस समय गवा की बात थी | लेपकन िररपस्थपतयाँ सब समय एक जैसी नहीं होती है | 1891 में जब लॉडा पकचनेर सैपनक को जापतगत व्यवस्था के आधार िर बाँट पदया तो उस समय महार और चमारों िर पविपि का िहाड़ टूट िड़ा | अं्रहेज़ ब्राह्मणवाद के दवाब में आकार पनम्न जपतयों को फौज से पनकाल जाने का फरमान सुनाया | इस घटना के िीछे का कारण यह है पक 1890 में बड़ौदा के महाराज सयाजीराव गायकवाड को पमपलट्री का गाडा ऑफ ऑनर पदया गया इसी पसलपसले में उन्हें बंबई आना हुआ | उस समय सभी पमपलट्री के लोगों से हाथ पमलाना िड़ा, इसी क्रम में वो लक्ष्मण मेहतर से भी हाथ पमलाना िड़ा जो जाती के महार थे | बस, महाराज को इस बात का
बुरा लगा पक उसे पकसी नीच जापत से हाथ पम जपतयों को बाहर रखा जाए | उस दौर में दपलत के पलए तैयार नहीं थे | पद्वज समाज हठी था औ के नशे में अब वे दपलतों िर रौब गाँठते थे | स में दपलतों के पवरूध्द फरमान आया तो उनके ही फौज था | महार और चमार के िररवार फ अिनी िैठा बना रहे थे, लेपकन जब से फौज स मजबूर हो गए |
फौज में दपलतों के पवरूध्द फरमान लागू होन | नौकरती छोड़ने के बावजूद भी वे अिने ब् महत्व को अ्छी तरह समझते थे | अिने ब् मकान में रहते हुए भीमराव अिनी माध्यपमक क्षेत्र में फै ला जाता है | बड़ौदा के महाराज स छात्रवृपि पमलने लगती है पजससे वे आगे की हुए लेपकन पकस्मत में आगे की िढ़ाई भी बदी अिनी िढ़ाई िूरी लें, बड़ौदा की सेवा में उिपस् हो गई |
भीमराव पवदेश जाकर कोलपम्बय | पवदेश में रहकर उन्होंने वैचाररक धरातल मानवीय दासता और रंगभेद के पवरूध्द आव बाद इंग्लैंड की तरफ रुख पकया | वहाँ से उन् आजीवन अध्ययन में लगे रहे |
डॉ0 आंबेडकर ने तीन महािुरुषों ज्योपतबा फु ले और तीसरे थे महात्मा बुध्द | पवरोध के पलए प्रेररत पकया तथा पशक्षा तथा आधार पमला, उन्हीं से दपलतों का उध्दार का
Vol. 2, issue 14, April 2016. व ष 2, अंक 14, अप्रैल 2016. Vol. 2, issue 14, April 2016.