Jankriti International Magazine vol1, issue 14, April 2016 | страница 67

जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका / Jankriti International Magazine( बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की 125वीं जयंिी पर समतपिि अंक)
ISSN 2454-2725
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पति
( बाबा साहब डॉ. भीमरा
डॉ. मीना गागी कॉलेज ह ंदी हवभाग स ायक प्रोफे सर हदल्ली हवश्वहवद्यालय हदल्ली
भारत में प्राचीनकाल से ही लोग शिक्षा के अभाव में मंगल-अमंगल, िुभ-अिुभ इत्याशद बातों को मानते थे । यही कारण है शक उस समय लोग तांशिक- बाबा, साधु-महाराज जो कु छ भी कहते उनकी बातों पर जल्द शवश्वास कर लेते । इच्छानुसार काम हो गया तो मंगल यशद नही हुआ तो अमंगल । शिर िुरु हो जाता था खुद को कोसने का काम । स्वयं को दोषी ठहरा कर अपिकु न हो गया शवचरने लगते थे । यशद देखा जाए तो शकसी का य की सिलता आपकी योग्यता, दृढ़ता, बुशिमत्ता से ही शमलती है । 1
आज भी हम अपने दैशनक जीवन में ऐसी बातों की एक लम्बी सूची तैयार कर सकते है जब हम मंगल अमंगल, िुभ-अिुभ को शवचारते हैं । शदन की िुरूआत होती है सुबह से । सुबह को ही लीशजए जब हम अखबार पढ़ते हैं तो भशवष्यिल पर भी नज़र जरूर दौड़ाते हैं शक आज का शदन हमारे शलए कै सा रहेगा । टी. वी. खोलते हैं तो वहां शतलकधारी बाबा हमारे भशवष्यिल को लेकर शचंशतत शदखाई देते हैं इसशलए लगे हाथ उपाय भी बता देते हैं ।
वत्तयमान समाज भूत-प्रेत, कमयकांड, जादू- टोना, पूवयजन्म, ज्योशतषी, भाग्यवाद इन सब के जाल में बुरी तरह िं स चुका है । कहने को तो हम मंगल ग्रह तक पहुुँच गए हैं और हमारे वैज्ञाशनक भारत को दुशनया भर में एक पहचान शदला रहे है ǀलेशकन शवज्ञान के आशवष्कारों का सहारा लेकर हमारे टीवी सीररयल आज भी अंधशवश्वास भूत-प्रेत
आत्मा रहस्यमय झाड़-िू ं क जैसी बातें परोस रहे हैं ǀ 2 समझ में नहीं आता शक अत्याधुशनक युग में इतनी व्यापक शिक्षा-दीक्षा तथा तकनीकी माध्यमों के प्रचार प्रसार के बावजूद भी मनुष्य धाशमयक ढ़कोसलों, मान्यताओं, अंधशवश्वासों, कमयकांडों में ऐसे ग्रशसत हो रहा है शक मुक्त होने का नाम ही ले रहा बशल्क शदन-प्रशतशदन इन कमयकांडों में उलझता ही जा रहा है । कहने की आवश्यकता नहीं, पढ़ा शलखा वगय भी इसकी चपेट में है जो एक शचंता का शवषय है । याद करना होगा शहंदी साशहत्य के मध्ययुग को जहां संतों ने तत्कालीन समाज को इन सब बातों से दूर रहने को कहा था और इसके प्रशत जागरूक भी शकया था ।
आज के युग में टेलीशवजन बाबा के द्वारा इन कमयकांडो को खूब िै लाया जा रहा है । बाबा का रूप कु छ ऐसा है जो सूट-बूट में, शसंहासन पर आसीन, अनेक मालाएं पहने, तरह-तरह की अंगुशठयां धारण शकए हुए भोली-भाली
जनता को गुमराह कर उन्हें अपने इिारों पर चला रहा है । और शिर िुरू होता है अंधश्रिा का व्यापार ǀ जबशक अंधश्रिा का भय िै लाने की प्रवृशत हमारे समाज में पहले ही से थी । अत्याधुशनक समाज में मीशडया इन अंधशवश्वासों को िै लाने में सबसे आगे है । धारावाशहकों में‘ राज़ शपछले जन्म का’ पूवयजन्म पर आधाररत था ।
टी. आर. पी. के चक्कर में इस धारावाशहक खुलता शपछले जन्म का ।
गुजरात के मध्यकालीन प्रशसि संत कशव शवषयक आस्था के शवषय में अखा शलखते । यह मान्यता कै से िै ली, शकसने इसकी अ परमात्मा राम ही सब के पूवय हैं, अथायत इसस
सब कोई पूरब जनम का, राखत है ठहेर
सहेज अखा कु ं बन गई, सदा की नीरंतर स
जब उपज्या तब पेहेल का तो आगे कु छ तो पूरब जनम की, अखा कोन चलाय मुझकु ं लेखा आये गया, पूरब जनम संस्क सब के पूरब राम हैं, अखा सो इच्छा सा
शपछले कु छ समय से शहंदी टीवी धारावाशहक शक दियकों को गुमराह कर शपछड़ेपन की ओ ʽनाशगनʾ पूरी तरह से अंधशवश्वास पर आध सीररयल हैǀ टीआरपी की दौड़ में ʽशबग बॉस जगह लगा कर ʽभूत आया भूत आयाʾ का जी घर पर हैंʾ भी भूत के साये से दूर नही हैǀ ना शकसी बहाने भूत-प्रेत की कहानी जोड़ी ज होता था जो अंधश्रिा को बढ़ावा देता था प्रसाररत करने के आदेि दे शदए थे ǀ
इसी तरह के ढेरों का यक्रमों को दियकों के सम दावा करते हैं शक हम दियकों की मांग को प तांशिकों और ज्योशतषों को बुलाकर का यक्र इन का यक्रमों को बड़े चाव से देखता है देखक शकस्मत जरूर बदलेगी । 5 सच्चाई तो यह उनकी सोच को भी गुलाम बनाया जा रहा ह
Vol. 2, issue 14, April 2016. वर्ष 2, अंक 14, अप्रैल 2016.
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