जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका / Jankriti International Magazine( बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की 125वीं जयंिी पर समतपिि अंक)
ISSN 2454-2725
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिक
( बाबा साहब डॉ. भीमराव अ
सभी इस तथ्य से अच्छे तरह वाक्तकि हैं क्तक क्तमट्टी में डाला गया एक दाना भी अनेक में पररवक्त तत हो जाते हैं | वे खेतों में सोने-चांदी, हीरे-जवाहरात नहीं बो पाए थे, आप बोओ और अरबों-खरबों उपजाओ, वो भी अपने देश ले गयी थे आप भी परदेश ले जाओ | साथ जो नहीं ले जा पाए थे | आक्तखर कहीं न कहीं रेल की पटररयों, सडकों, नक्तदयों, महलों के तले तो छु पाये होंगे | खोजो और बन जाओ इज्जतदार, अकू त मालदार सर्त्ा के स्वामी | बेशक भारत रहे आरत |
घुप्प रात के नीरवता में, इन्हीं क्तवचारों की गहरी खाई में उलझा पड़ा था क्तक- सुदूर नीरवता को चीरते हुए रेक्तडयो से आती एक गीत क्तचन्तन को झंकृ त कर गया | क्तजसके बोल थे-“ हमें तो लूट क्तलया क्तमलके हुस्नवालों ने, छोटे- बड़े सालों ने, ससुरालवालों ने |”
क्तहदुस्तान पईन्दावाद – देशी पहरेदारो क्तजन्दावाद |
बेबाक बबहारी“ श्याम” हररयाणा, गुरुग्राम ९९९०१७८५०२
Vol. 2, issue 14, April 2016. वर्ष 2, अंक 14, अप्रैल 2016.
संगोष्ठी में जैसे ही पह ंचे ऐसा लगा कक ककसी क नहीं होता था | वहां पर मौजूद आवाम को देख पहला कदन और पहला शो है | सभागार को द रुपए देकर हम ठगे नहीं गए | आकखर एयर कं ड | खैर! कु छ आगे बढ़े नज़र इधर-उधर घुमायी लानी चाकहए थीं क्योंकक आज की तारीख में मंज़ूर थी क्योंकक जो नायक मुआि कीकजयेगा रेकडयो में सुना था उन्हें समाचार चैनलों पर ब सौभाग्य प्राप्त नहीं हआ था | हम नायक! ओ अरे! आज के साकहत्यकार ककसी नायक से क | परदे पर दो तीन संवाद बोलने से, कवलेन को होते हैं कजनके संवाद अपने द्वारा ही कलखे ह ए बार हर मुद्दे पर बोले जाते हैं | भई! प्रासंकगकत ही मंच के नायक होते है कजनका अकभनय ज लेककन असली मज़ा तभी आता है जब कवलेन धोबी पछाड़! आह हा! क्या दृश्य! अद्भुत! सुपरकहट! और सुपरकहट हो भी क्यों नहीं कक सब कमल जाए तो सोने पर सुहागा इसी को तो
ओह! मैं भूल गयी मेरे नायक अथाित मेरे कप्रय जेब से एक कागज़ कनकाला ही था कक यह क्य िु सुर की | अरे! जल्दी क्लाइमेक्स से पदाि उठ कवमोचन द्वारा ककया जाएगा कजस प्रकार किल्म कचत्र अवश्य कदखाया जाता है | अरे! किल्म क यह बात दूसरी है कक संगोष्ठी के भगवानों की हो गया और नायक ने पुस्तक के कवषय में क
अपने पात्रों के माध्यम से इस पुस्तक को जीव की गड़गड़ाहट से | वाह! क्या भाषण कदया ह गया कक उसमें है क्या? इसे कहते हैं जीकनयस कटकी हैं | मज़ा आ गया | आनंद ही आनंद | प
Vol. 2, issue 14, April 2016.