Jankriti International Magazine vol1, issue 14, April 2016 | Page 59

जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका / Jankriti International Magazine( बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की 125वीं जयंिी पर समतपिि अंक)
ISSN 2454-2725
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिक
( बाबा साहब डॉ. भीमराव अ
ववनोद ववश्वकर्मष
सर्ीक्षम ‚ डॉर्वनक की वमपसी ‛( उपन्यमस), लेखक- वववके वर्श्र; प्रकमशकः वकतमब घर प्रकमशन, 4855- 56 / 24, ऄंसमरी रोड़, दररयमगंज, नयी वदल्ली- 110002, प्रथर् संस्करणः 16 वदसम्बर- 2015, पृष्ठ- 208; र्ूल्य 350 रुपये र्मत्र । ISBN: 978-93-822114- 69-7
आधर के दिनों में दहन्िी के प्रदिभाशाली ईपन्यासकार, कथाकार दििेक दमश्र का ईपन्यास‘ डॉमदनक की िापसी’ पढ़ने का ऄिसर दमला । ईनकी प्रदिभा और समकालीन िैचाररकी का जीिन्ि िस्िािेज है यह ईपन्यास । समाज की जन्म लेिी नइ दिसंगदियों में घटिे प्रेम की िलाश और आसकी दचन्िा को प्रकट करिा हुअ यह अज के समय का जीिन्ि आदिहास है ।
आस ईपन्यास के माध्यम से ईपन्यासकार समाज में प्रेम की िापसी करना चाहिा है; चाहिा है दक मानि, मानि के बीच प्रेम बढ़े और प्रेम की स्थापना हो । लेदकन समकालीन जीिन आिना सरल नही है दक प्रेम को मानि जीिन के अस-पास रहन िे । प्रेम के टूटिे और बार- बार पनपिे जीिन की कथा है,‘ डॉमदनक की िापसी ।
समाज में ऄनेक िरह की चिुराआयााँ हैं, और छल- छद्म हैं, आन सभी भािनाओं के बीच प्रेम का पौधा ईत्तर अधुदनक समाज में‘ मर सा’ गया है, और आसका कारण है मानि की लगािार बढ़िी महत्िाकांक्षा । आस महत्िाकांक्षा ने ऄन्य चींजो में िो बढ़ोत्तरी कर िी है, लेदकन हमारे सपनों मे ऄब प्रेम नही रह गया है, रह गया है िो’ प्रेम का नाटक’ रह गया है । कु छ लोग यह िलाशने या दसद्ध करने में लगे हैं दक कला- कला के दलए है, आसके दिरूद्ध यह ईपन्यास कहिा है कला जीिन के दलए है, िह दसद्ध करिा है, जीिन से ऄलग कु छ भी नही है । और िह कला के माध्यम से समाज में प्रेम की स्थापना करना चाहिा है । ईपन्यास दजस माध्यम से हमारे सामने अिा है; िह‘ नाटक’ की प्रदिया है, एक नाटक मंडली की‘ अत्म- सम्बद्धिा’ है लेदकन आस अत्मसम्बद्धिा में सभी एक िूसरे से टकरािे हैं, के िल ऄपना दहिसाधन करना चाहिे हैं; जो ईपन्यास का कथा मंच है िही जीिन का मंच भी है, जीिन को लोग नाटक की िरह जीिे हैं, आस ईपन्यास के पात्र भी लगभग ऐसा ही करिे दिखाइ िेिे हैं ।
‘ डॉमदनक की िापसी’ िर ऄसल ईत्तर अधुदनक सामादजक सांस्कृ दिक महा-पीडा से ईपजा हुअ अख्यान है, जो सीधे िौर पर हमें ऄपना दहस्सा बना लेिा है, और पाठक यह मान लेिा है दक िह आसी औपचाररक िुदनया का एक पात्र है । और ईसे लगने लगिा है दक िीपांश ईसका दमत्र ही है, और ईसकी पीडा ईसकी जीिन प्रदिया, जीिनगदि ईसकी ऄपनी ही है, िह ईसका साथी है ।
आस िुदनया में पहला प्रेम लगभग ही स धमम, पैसा प्रमुख हैं; यदि पैसा हो िो ये सब बा और िणम की शु ऺद्धिा का भाि । दकसी के‘ प्रेम लेदकन आन कोदटयों में- मात्र-‘ स्त्री-पुरुष’ जािा है, लोग दजसे सबसे ज्यािा िबािे हैं, ि है ।
‘‘ यहााँ सिाल गरीबी, बेरोजगारी या भी नहीं था । यहााँ सिाल था प्रेम का, प्रेम के ऄ की िापसी’, पृष्ठ-11) लेखक का पूरा प्रयास पल्लदिि पुदपपि कर िे, और आसी की यात्रा ह
यह ईपन्यास िीपांश के जीिन में अ की िमशः कहानी है । दहमानी दपिा के बंधन एक स्ििंत्र लडकी है, और ईसके साथ ऄदभन से छली गइ लडकी है; ऄब िह कालगलम है ।
चररत्रहीन और चररत्र सुन्िर के ऄदमट आन सब में साथी हैं, रमाकान्ि, दिश्वमोहन, भ आन सबेक साथ है नाटक-’ डॉमदनक की िाप
िीपांश ईत्तराखण्ड का लडका है, ईस दकसी गााँि मे रहिा था । ईत्तराखण्ड बनने के लेखक ने प्रकट करने की शूक्ष्म कोदशश भी क के बाि अम अिमी ऄभी भी अम ही है । प की िरह ही दहमाचल के मण्डी शहर की प्राक दिल्ली का प्रेम, िेखे और ऄनिेख दिल्ली के क्ष
िीपांश एक ऄच्छा ऄदभनेिा है, और और यह दकरिार ईसी िरह भोला है जैसा िी चीज है, दजसकों सभी ऄपने से िूर करना चाह
Vol. 2, issue 14, April 2016. व ष 2, ऄंक 14, ऄप्रैल 2016. Vol. 2, issue 14, April 2016.