Jankriti International Magazine vol1, issue 14, April 2016 | Page 60

जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका / Jankriti International Magazine( बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की 125वीं जयंिी पर समतपिि अंक)
ISSN 2454-2725
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिक
( बाबा साहब डॉ. भीमराव अ
यह ईपन्यास रहस्य रोमांच और सस्पेन्स से भरा हुअ है; नाटक का दनिेशक, दिल्म का दनमामिा एक िरह ही होिे हैं; नइ लडदकयों के साथ बििमीजी, कै ररयर िोडने की धमकी और ईनका आस्िेमाल भी आसमें है, दिल्ली में लडदकयों के खरीि िरोख्ि ऺ के गहरे और व्यापक जाल को भी हम आसमें पािे हैं ।
आस ईपन्यास में प्रभादिि करने िाला एक पात्र है, रेबेका का गुरु-‘ ऄंनि’ आसके चररत्र को जानकर लगिा है दक हम- शेखर एक जीिन के‘ बाबा मिन दसंह’ से पररदचि हो रहे हैं; आसने समाज की जेल में रहकर जीिन जीने की कला सीखी है, और बाबा मिन दसंह ने िास्िि में जेल में रहकर । यह एक ऄद्भुि चररत्र है, प्रेम में छू टे टूटे हुए चररत्रों को ईजागर करिा है ।
लोग कहिे हैं औरंगजेब के आशारे पर रोशनअरा ने लबगीं को एक ऐसा जहरदपला दिया था दजसके कारण ईसकी मौि हो गइ । लबंगी जगन्नाथ से प्रेम करिी थी और ईसके भाइ औरंगजेब के यह पंसि नहीं था । यही कहानी बार-बार समाज में िोहराइ जा रही है, प्रेम के साथ दिष की धारण भी एक िरि से अपके साथ चली अिी है आसीदलए यह कहा गया है दक-’’ हर समय में िुम्हें बनाने और दमटाने िाले िुम्हारे साथ- साथ चलिे है ।’’( डॉमदनक की िापसी- पृष्ठ- 160)
िास्िि में क्या यह िुदनया बिली है,’’ िुदनया में िेजी से अए बिलािों की हिा यहााँ भी चली, चीजें बिली । पर उपर-उपर से......... भीिर से कु छ था जो पहले जैसा ही जड था । िही जाि-पााँि िही उं च-नीच, िही समथो की ऄहम्मन्यिा............ ऄपने ही जादि से बाहर दििाह करने की िजह से दकिने ही पररिारों ने िो ऄपने ही बच्चो को मौि के घाट ईिार दिया । ईन्हे प्रेम करने की सजा दमली ।....... जहां संसार में दकिनी मक्काररयााँ िै ली हैं और कोइ ईन्हें रोकने ईन पर ऄंकु श लगाने िाला नहीं, और यहााँ प्रेम की आिनी बडी सजा ।’’( डॉमदनक की िापसी- पृष्ठ- 195) और यह प्रश्न सदियों पुराना है, और ईिना ही दनि निीन भी है ।
दििके दमश्र का यह ईपन्यास ऄंि ि िेिा है सोचने के दलए दक िास्िि में प्रेम कर पढ़ने का मन करिा है, आस ईपन्यास को मैं श ईपन्यास मानिा ह ाँ, बडेऺ भाइ दििके दमश्र को बधाइ िेिा ह ाँ ।
‚ डॉमदनक की िापसी ‛( ईपन्यास), लेख ऄंसारी रोड, िररयागंज, नयी दिल्ली- 1100 मात्र । ISBN: 978-93-822114- 69-7
जनम: ०५ जुलाइ, १९ सम्प्रदिः सहायक प्राध्यापक, दहन्िी, शास
संपकम ःइमेल: dr. vinod. vishwa
ऄंि में डॉमदनक( दिपांश) दिल्ली के छल- छद्म भरे महौल को छोडकर दशिपुरी चला- अिा है, और रेबेका( ररदद्ध) के दपिा के संगीि दिद्यालय में बच्चों को पढ़ािा है; रेबेका ऄब कहां है, कु छ पिा नही, गोिा चली गइ या मर गइ है, दशिपुरी में ही डॉमदनक को चोट लगिी है, और आसी ििम से ईसकी मौि हो जािी है । प्रेम की िापसी की िलाश में िह पािा है, दक ऄपने लोगों से जुडकर, ईनके दलए कु छ करना ही जीिन की साथमकिा है, ईसकी मााँ मर चुकी है, दपिा हैं नहीं आस कारण िह रेबेका के दपिा की छू टी दिरासि को सम्हालिा है । ईपन्यास का पूरा सार आन पदियों में है ।’’ िरऄसल हम सभी में एक साथ ही डॉमदनक, एदलना और ईसका पदि िीनों रहिे हैं । कभी कोइ हम पर हािी हो जािा है, कभी कोइ । हम कभी डॉमदनक हैं- के िल प्रेम, कभी एदलना-प्रेम को समझिे ईसकी चाह में भटकिे हुए और कभी एक व्यापारी- िुदनया के व्यापार में ऄपना प्रेम भूले हुए ।’’( डॉमदनक की िापसी- पृष्ठ- 203) डॉमदनक की िापसी ऄथामि् अज के समाज में प्रेम की िापसी करने की साथमक कोदशश है यह ईपन्यास ।
Vol. 2, issue 14, April 2016. व ष 2, ऄंक 14, ऄप्रैल 2016. Vol. 2, issue 14, April 2016.