Jankriti International Magazine vol1, issue 14, April 2016 | Page 53
जनकृति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine
ISSN 2454-2725
(बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की 125वीं जयिं ी पर समतपिि अंक)
जनकृति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine
ISSN 2454-2725
(बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की 125वीं जयिं ी पर समतपिि अंक)
आस पस्ु तक में सजम्मजलत जकये गये ईन्तीस पद्यों में प्रेम का पक्ष ही प्रबल रहा है. प्रेम के बीच संघषथ करती औरत
यहााँ सच्चाइ को समझते हुए जदखती है. बार-बार ईसमें मजु क्त की अकांक्षा जदखाइ देती है. आन कजवताओ ं की स्त्री
ऄब पलायन या अत्मत्याग नहीं करना चाहती बजल्क ऄब डटकर यथाथथ का सामना करना चाहती. वह ऄपना
कोइ यटू ोजपया नहीं बनाती बजल्क सत्य की कड़वाहट के साथ जीना चाहती है. कजवताओ ं में ईस प्रेम को प्राप्त
करने की ऄकुलाहट है जजसे 'बधं क नहीं रखा जा सकता'. स्त्री को जखलौना समझकर खेलने वाला परुु ष जो
'जदनभर झल
ू ता है चमगादड़ की तरह जकसी के भी जीवन में' के प्रजत तीक्ष्ण जवतृष्ट्णा को महससू जकया जा सकता
है और ईन जैसे परुु ष से यह अग्रह करती हैं 'जसफथ दरू जाकर करो वह प्रेम, मेरी अाँखों के सामने नह ीं'.
हैं, धमं को नज़दीक से देखा है, आसजलए वे बार-बार आन मद्दु ों को ईिाती हैं और साथ ही यह भी स्पष्ट करती हैं जक
वे ग्रामीण या काल्पजनक लेखन करने में आसजलए सहज महससू नहीं करतीं, क्योंजक एक तो, ईन्हें कल्पना से ज्यादा
यथाथथ का धरातल पख्ु ता लगता है और दसू रा ईन्होंने कभी भी ग्रामीण जीवन नजदीक से नहीं देखा. ईनके जेहन
को जीवन की वास्तजवक घटनाएं ही ऄपील करती हैं. यथाथथ तो बार-बार अवृत होगा ही, ऄब आसमें जजन्हें
पनु रावृजत नज़र अती है तो अती रहे. दरऄसल यह पस्ु तक 'शगु र कोजटंग नहीं यथाथथ की तस्वीर है' जजसमें नवीन
की ओर बिने का अग्रह है . वे जलखती हैं,''प्रेम कजवता का एक बड़ा जवषय है, जफर भी एक तरह की जजं ीर भी
है… दरू करती जा रही हाँ परु ाना, प्राचीन जो कुछ है ईस सबको. नवीन की तरफ जाना चाहती हाँ प्रजतजदन.(पृ.127)
तसलीमा बैलेंस से अगे बिकर अना चाहती है -''बैलेंस बिी खतरनाक चीज है. बैलेंस करना पड़े तो ऄपनी
प्रजतभा, इमानदारी और साहस सभी को छोड़ना होगा’. समय के अततायीपन को झेलते रहने के कारण त्रस्त स्त्री
की के वल यहीं अकांक्षा शेष 'जो मैं हाँ वह हो जाउं' और वह समझ गयी है जक 'परुु ष को पालने से जबल्ली
पालना बेहतर है'. समय की ऄजनजितता आतनी बि गयी है जक 'जीजवत रहना बहुत कुछ बस के दरवाजे पर, खड़े
रहने जैसा' लगता है. 'इश्वर', जजसे नीत्शे ने कब का कह जदया था जक वह 'मर चक
ु ा है' यहााँ तसलीमा की कजवता
में 'मृत्य'ु के रूप में अता है.
नवीन की ओर बिने की एक ऄकुलाहट के साथ तसलीमा की यह पस्ु तक गद्य और पद्य का एक ऐसा सयं ोजन
है जहााँ साजहत्य की जवधाओ ं को एक दसू रे के परू क के रूप में कायथ करते हुए देखा जा सकता है. जनजित रूप से
लेजखका के रूप में समाज को नवीन सन्देश देने और जवसंगजतयों पर जोरदार सवाल खड़ा करने में यह पस्ु तक
सफल रही है और आसकी वास्तजवक सफलता तो तब होगी जब पािक के व्यवहार में यह ईतर जाये.
- पज
ू ा तिवारी
शोध छात्रा
हैदराबाद के न्द्रीय तवश्वतवद्यालय
आन कजवताओ ं में ईत्तर-अधजु नक यगु के सत्रं ास, ऄके लेपन और कंु िाओ ं को भी देखा जा सकता है. जब न होना
ही होने का अभास करता है और ऐसे में तसलीमा का यह कहना 'मझु े ऄके ला मत समझना कभी, तम्ु हारी
प्रेमहीनता मेरे साथ रहती है’ ईनकी समसामजयक समय की संवदे ना की पकड़ को ही प्रदजशथत करती है. वतथमान
संबंधों की जजटलता को तसलीमा भी महससू करती हैं 'कुत्ता और जबल्ली को प्रेम करना असान है, मनष्ट्ु य को
नहीं.’ आन सबके बीच एकाकीपन ही सबसे बड़ा साथी बनकर अता है 'भल
ू जाओगे तो लगेगा जैसे, पैर में काटने
वाला जतू ा ईतर गया'. ऄब के वल स्मृजत को संजोये रखने की चाह भर बाक़ी रह गयी है और ईसी के सहारे जीवन
जबता देने की मश
ं ा जदखती है, जजसने वतथमान समय की जनसंगतता की नब्ज को पकड़ा है
आस पस्ु तक के पन्नों से गजु रते समय यह देखा जा सकता है जक जो जवषय गद्य में हैं कइ बार ईन्हीं जवषयों को
अधार बनाकर पद्य भी जलखे गये हैं, जजसके कारण ईनपर पनु रावृजत का अरोप भी लगाया जा सकता है. जकन्तु
यह पनु रावृजत जान बझू कर थोपी हुइ नहीं बजल्क सहज रूप में अइ है. ईन्हीं समस्याओ ं से बार-बार झझू ते हुए,
ईन्हीं घटनाओ ं से बार-बार रूबरू होते हुए, रचना के फलक पर चाहे वह गद्य हो या पद्य, जवषयों में समानता और
एकरुपता होना स्वाभाजवक है. यह समानता या दोहराव नकारात्मक न होकर सकारात्मक है. यहााँ गद्य और पद्य में
ईिाये गये समान जवषय एक-दसू रे के परू क बन गये हैं. जो रचना को सम्पणू तथ ा प्रदान करती है. ईदाहरण के जलए
बांग्लादेश पर जलखे गये अलेख के जलए 'भाषा जदवस' कजवता और धमथ पर जलखे अलेख के जलए 'इश्वर'
कजवता और जबल्ली पर जलखे अलेख के जलए 'जबल्ली के साथ अत्मीयता' और 'जबल्ली चाहती है
जचतं ाहीनता' जैसी कजवतायें, स्त्रीवाद पर जलखे गये लेख की जवद्रोहात्मकता को कजवताओ ं में परू क के रूप में
देखा जा सकता है. आस पनु रावृजत से तसलीमा स्वयं भी पररजचत हैं और आस सम्बन्ध में ऄपना पक्ष साफ़ करते हुए
यह बताना नहीं भल
ू ती जक चाँजू क ईन्होंने औरतों के दःु ख को नज़दीक से देखा है, चाँजू क वे राजनीजत का जशकार हुइ
Vol.2, issue 14, April 2016.
वषष 2, अंक 14, अप्रैल 2016.
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