जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिक
( बाबा साहब डॉ. भीमराव
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका / Jankriti International Magazine( बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की 125वीं जयंिी पर समतपिि अंक)
कलंक यही माना जाता है सक उरहोंने मुसिबोध के पर कतरने चाहे. आज की बात करें तो उदय प्रकाश के पीछे भांसत- भांसत के उस्तरे पड़े हुए हैं.... हंस के संपादक राजेरि यादव ने अपनी बीमार पुस्तक में कु छ लोगों के पर कतर सदए.‛
सुशील ससद्धाथथ ने सासहत्य जगत की कु नबापरस्ती के चाल-चलन और इसके समजाज को बहुत अच्छी तरह से समझा है. उरहोंने पुरानी कहावतों में फे र-बदल करके नवीन मुहावरों को गढ़ने की कोसशश की है. उसी प्रकार मैं भी एक कहावत में फे र बदल करने का दुस्साहस कर रहा ह ाँ. जैसे-पुसलस वालों से न दोस्ती अच्छी न दुश्मनी. मासलश महापुराण पढने के बाद मैं यह दावा करता ह ाँ सक‘ सासहत्यकारों से न दोस्ती अच्छी न दुश्मनी.’
‚ सनझथर बाबा की सकरपा ‛ सासहसत्यक मठों पर कब्ज़ा जमाये बैठे उन मठासधसों पर सीधा प्रहार सकया है सजनके सबना आज भी सम्मलेन, गोष्ठी और पुरुस्कार इत्यासद संभव नहीं है. मठासधसों के अनुयाई अपने बाबाओं
और आकाओं के आगे पीछे लगे रहते है क्योंसक उरहें अपना नाम ससलेबुस या पुरुस्कार के सलए आगे बढ़ाना है. दूसरी तरफ अनुयाई भी कम नहीं वे भी आस्था और दोस्ती मोबाइल की तरह से बदलते रहते है
‚ कु ल समलकर ‛ लेखन जगत की त्रासदी का एक महावाक्य बन गया है सजसमे लेखन, सम्मलेन, पुरुस्कार
और समीक्षाएं... सफल्मों की तरह अंत में..... कु ल समलाकर ठीक हो जाते हैं. व्यंगकार ने ठीक ही कहा है सक योग्य व्यसि के सलए इसी दशथन का ही सहारा है.
‚ बातन हाथी पाइए ‛ ‚ सवाल कै से कै से ‛ और ‚ क्या क्या सदख रहा है ‛ में लेखक, लेखन और उसके घ्रसणत दृसिकोणों को अलग अलग व्यंग सशल्प में ढाला गया है सजनकी मार बहुत दूर और गहराई तक जाती जो समझ सकते हैं वो जरुर समझें ‚ अच्छे-अच्छे वाक्य सलखने वाले लोग भले आदमी के सबसे बड़े सत्रु है ‛
सासहत्य जगत में लेखकों की गररमा बढ़ने वाली एक सशक्षण-प्रसशक्षण की पाठशाला भी है. गररमा बढ़ाने का पूरा पैके ज है- ‚ आजकल ऐसे कायथक्रम पैके ज डील के तहत तय होते हैं. एक पुराना अध्यक्ष एक या दो संभासवत प्रपंची एक चतुर चाटुकार चैतरय संचालक खचाथ इतना समल गया तो डन.‛ गररमा बढ़ाने का सीधा सरल नुस्खा- कहानी पर बोलते हुए पांच चुटकु ले दो शेर, चार अफाह का गोला बनाते दो-चार वाक्य कहानी पर भी कहे जाते.‛
सुशील ससद्धाथथ आधुसनक व्यंग्य परम्परा के एक ऐसे प्रसतसनसध हैं सजस बात को कहने से लोग डरते है वही बात उरहोंने अपने व्यंग्य संग्रह में ठोस तथ्यों को कथ्यों के साथ अनकही बात को कहने का साहस सदखाया है. सजसकी भाषा शैली सरल एवं कथनों में मुहावरों और कहावतों का प्रयोग कर व्यंग सशल्प कला को एक स्तर तक पहुाँचाने में कामयाब हुए हैं.
सुशील ससद्धाथथ इस व्यंग्य संग्रह द्वरा आधुसनक लेखक के पाररवाररक, नए-पुराने सासहसत्यक और गैर- सासहसत्यक गुरु, सशष्य, आधुसनकता और प्रगसतशीलता के प्रसतसनसधयों की बेबाकी से खबर ली हैं. इस व्यंग संग्रह की जमीन बहुत मजबूत है. व्यंग की तकनीक को सवकससत सकया गया है लेसकन सवचारधारात्मक स्तर पर कु छ जगह सहचकोले भी खाती है हमारे गााँव में‘ मासलश’ का अ थ- मरम्मत करना, ठीक करना, कोने में लाना इत्यासद भी होता है अथाथत मासलश
पुराण ने लेखन और लेखक की खूब मरमत की है.
मातिश महापुराण: सुशीि तसद्धार्ि: तकिाब घर: 150
ISSN 2454-2725
िसलीमा नसरीन प्रख्याि बंगलादेशी ल महकमें में हलचल मचा दी. अपनी लेख तनवाितसि हैं. हाल ही में िसलीमा की पुस् तजसका तहंदी अनुवाद महेंद्र तमश्र के द्वार
' तस्वीर खींचना’ आतना असान नहीं होत जजसने ऄपनी तदबीर से ऄपनी तस्वीर ख रचनात्मक ऄंतरात्मा से जनकली अवाज का है. प्रसन्नतादायक आस रूप में जक तमाम अल लेखन ऄब भी जारी है जो जनसन्देह प्रशंसा को ऄब जकस नये कलेवर के साथ पेश करन कु छ पद्य...' हाथ में अइ. आस पुस्तक की ख में संजोया गया है.
आस पुस्तक की सबसे खास बात यह है सामाजजक व्यवस्था का जचत्र खींचने का प्रय दोनों साजहजत्यक जवधाओं में तसलीमा के ल एक नया प्रयोग भी करती जदखती है.
गद्य में संकजलत जकये गये कलामों( लेखों) ला खड़ा जकया है. यहााँ भारत और बंगलाद म्यामार, श्रीलंका, मंगोजलया, सोमाजलया, फ प्रयास जकया गया है जो ईनकी ऄंतराथष्ट्रीय स की पड़ताल कर पािकों को ईनकी गहराआय सफल हैं. बुराआयों, कु रीजतयों, और संकु जचत जा सकती है. यथा थ के किोर धरातल से ब कलाम आससे ईपजे घावों को बार-बार और मध्य युग और प्राचीन सभ्यता और परंपरा क ले जाता है, हालांजक वे जलखती हैं ' ऄमरता
Vol. 2, issue 14, April 2016. वर्ष 2, अंक 14, अप्रैल 2016.
Vol. 2, issue 14, April 2016.