जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका / Jankriti International Magazine( बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की 125वीं जयंिी पर समतपिि अंक)
ISSN 2454-2725
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिक
( बाबा साहब डॉ. भीमराव अ
तमलिा है एक रावर् कई बार छल कपट की माया से छलिा है कई बार मुझे …
अज शहर और गाँव का वमजाज धीरे-धीरे बदल रहा है. सुवनयोवजत तरीके से भाइ चारे को खत्म करने की कोवशश की जा रही. वजस भाइचारे को आवतहास में दफन करने की जो नाकाम कोवशश की जा रही है ईसे रौशन करने की वजम्मेदारी कवव लेता है और कववताओं में स्वयं को रखकर सृजनकमय करता है. कभी वह कववता बन जाता हैं, तो कभी राम, तो कभी रावण, तो कभी सामान्य व्यवक्त, हर कववता में कवव खुद नजर अता है, जैसे – वफल्म देखते समय दशयक नायक में ऄपना प्रवतवबम्ब देखने की कोवशश करता है ईसी प्रकार कवव भी ईसी प्रविया को ऄपनाता है – कजि बहुि है इस छोटे से तकसान पर एक कतव की िरह जो समाज की तचंिा में डूबा रािभर जागिा है... इस बार हर बार से ज्यादा तकया कजि को खंडहर से बाहर तनकलना चाहा आज तिर से वही तकसान है जो कतव की िरह तचंिा में डूबा तचंिा ग्रस्ि.
‘ बंजर जमीन’,‘ दवलत’ और‘ मजदूबराबरी र चौक’ जैसी कववताएँ समाज की सामावजक, अवथयक गैर
बराबरी शोषण ईत्पीड़न की मावमयक व्यथा को प्रस्तुत करने में सफल रहे. तीनों ही कववताओं में स्वयं से और समाज से सीधे संवाद करते हैं‘ वमट्टी का सावहत्य’ संग्रह की कववताओं को जैसे-जैसे पढ़ते जायेंगे वैसे – वैसे कववताओं का
फलक ववस्तार लेना शुरू कर देता है. कवव की अँखों के सामने धरती लुट रही है तो ईन्हें दुःख होता है. लेवकन आस धरती को बचाने के वलए वे वकसी ऄवतार का आंतजार नहक करते और स्वंय पहल करते हैं – लुट रही है धरा धरोहर मेरी आूँखों के समन्दर...... पिा नहीं कौन-सा अविार होगा सबकु छ बचाने के तलए चलो कोई शुरुआि करें हम िब िक धरिी के कु छ बचे हुए जेवर बचाने के तलए
‘ कु छ-कु छ याद है’ कववता ने व्यवक्तगत तौर पर मुझे बहुत प्रभाववत वकया. ईसमे गाँव की झलक, वमट्टी की महक, कववता का सौन्द, य जीवन दशयन वछपा हुअ है. युवा कवव लव कु मार की कववताएँ व्यवक्त के ऄपने ऄंतद्वंद्व तक पहुंचता है. चू ँवक भारत के ज्यादातर सावहत्यकार शहरी जीवन का प्रवतवनवधत्व करते वदखाइ देते हैं वही लवकु मार ग्रामीण जीवन ऄवभव्यवक्त को परवाज देने में सफल हो जाते हैं
लेखक: लव कु मार लव / प्रकाशक: आधार प्रकाशन / कीमि: 150
सुशील ससद्धाथथ का व्यंग्य संग्रह‘ म प्रसंगों, तथ्यों और कथ्यों का सामना करना प सामना करना पढता है. सुशील ससद्धाथथ ने ल सकया है सजसके कारण ‚ मासलश पुराण ‛ आ पुस्तक बन गयी है.
सुशील भाई ने आधुसनक समीक्षा ल उसका नतीजा समीक्षक को तो भुगतना ही पढ
सजतने पृष्ठ उस सकताब में हों. लोग क्यों? लेखक सकस दल का है यह‘ अ’ पर सलखता हो. अ के ब से गये. ब तुमसे कु छ नहीं कहेगा. पर संपादक तुमको छापना बंद कर
सहंदी सासहत्य धडों, दलों
इस व्यंग संग्रह की सबसे ज्यादा सक तमाम लेखों में मठों, मठासधसों
प्रहार लेखक ने सकया है. के सरित है. सबकी मासलस एक है आसद जहााँ दम तोड़ देते है. वही ाँ इसीसलए मासलश महापुराण के है ‛
इस पुस्तक में व्यंग इतनी गहराई सल रह नहीं सकता. संवाद शेली में मासलश प आधुसनकता, प्रगसतशील आरदोलन एवं नव स
यसद पाठक को इन आरदोलन के बा पाठक को इसे समझने के सलए सकसी सुधी व्य असली है.‘ कु छ अनुभवी बताते हैं सक लेखक पााँव कटवा देते है. उनमें शासमल लेखक सामन से ही देखने को ही वरीयता दी जाती है. अप जीवन के भीतर उड़ना चाहता है तो उसके पर
Vol. 2, issue 14, April 2016. वर्ष 2, अंक 14, अप्रैल 2016. Vol. 2, issue 14, April 2016.