Jankriti International Magazine vol1, issue 14, April 2016 | Page 48
जनकृति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine
ISSN 2454-2725
(बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की 125वीं जयंिी पर समतपिि अंक)
बाटं ा नहीं जा सकता ईसे ककसी सीमा मे बधं ा नहीं जा सकता ईसी तरह दो देशो को कोइ नहीं रोकता ऄपनों से कमिने
से। ज़ाककर को बहुत कदन बाद भारत से एक खत कमिा जो ईसके दोस्त सरु े न्र ने भेजा था। वह रे कडय ो मे काम करता था
वही ईसकी सबीरा भी काम करती थी। सरु े न्र ने हािे कदि बाया ककया की अ जल्दी ऄपने देश और यायार से कमि। पर
देश के ऐसे हािात थे की न कोइ ईधर जा सकता है और न ही कोइ आधर अ सकता है। िेककन प्रोफे सर बन गए
ज़ाककर के कदि मे अज भी सबीरा के प्रकत प्रेम कबद्यमान है। कहानी मे न हीं सबीरा शादी की है और न ही जाककर
शायद ईसे ईममीद है की ऐसा कदन अयेगा कजस कदन वो ऄपने प्रेम से कमिेगा और एक हो जाएगा।
बटवारे के कशकार व्यकि को ऄपनी जड़ो से जड़ु ने की बेचैनी हमेसा सताती रहती है। कबभाजन की त्रदासी को
देखे तो हमे यसपाि का झठू ा सच याद अता है और खसु वतं कसंह, कुरू त् ि
ु ऐन हैदर की ईपन्यासों की याद अती है।
कबभाजन के वक दो देशों और ज़मीनों का होता बकल्क कबभाजन व्यकियों का भी होता है। ककस तरह िोग बेघर
होकर एक जगह से दसू रे जगह जाने पर मजबरू हो जाते है ऄपने घरो को छोड़ कर तंबओ
ु मे रहने को कबवश होना
पड़ता है मार-काट गदर मची रहती है और जो बच गए ईन्हे कनत नए किों से गजु रना पड़ता है। वही ईपन्यास मे
भारत-पाक कबभाजन के साथ-साथ बांग्िादेश की भी बात होती है जब पवू ी और पकिमी पाककस्तान का बटवारा होता
है। ईस दौरान ईस समय के दौर मे कदन मे सड़के सनु ी और रात मे ऄधं ेरा कर रहना और डरे सहमे िोगो की कस्थकत यह
ऄत्यंत भयावह कस्थकत होती है। ज़ाककर ईन सारी चीजों का गवाह है और आतं ज़ार हुसैन जाककर के माध्यम से ऄपनी
बातों को बताते है। अज भी देश के सीमा वािो आिाकों का कमोबेश यही हाि है।
ऄपना घर अकखर ऄपना होता है ईसे कोइ नहीं छोड़ना चाहता यह तो राजनीकतक कारण है जो िोग अज भी बबाूद
हो रहे है। सरु े न्र जब व्यासपरु के कोटिा वािे हाककम कजसे पछ
ू ता है- “हाककम जी!ऄप पाककस्तान नहीं गये?‛
“नहीं िािा”
कारण ?
“िािा!कारण मािमू करते हो? तमु ने हमारा ककिस्तान देखा है?‛
“नहीं।‛
जरा कभी जाके देखो। एक से एक घाना पेड़ है। पाककस्तान मे मेरी कि को ऐसी सी छाव कहााँ
कमिेगी?”
जबकक हकीम जी के सारे पररवार पाककस्तान जा चक
ु े है पर वे नहीं जाना चाहते है। ईसी तरह ऄफ़जाि की नानी
ऄपनी जमीन नहीं छोड़ना चाहती थी तो ईन्हे बाढ़ का बहाना बना कर पाककस्तान िाया गया था पर वह अज भी
कहती है की “बढ़ ईतार गयी होगी मैनु वापीस िे चि।” ऄपनी जमीन से िगाव जो है। पर बाढ़ तो ईधर ईतर ही गयी
जनकृति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine
ISSN 2454-2725
(बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की 125वीं जयंिी पर समतपिि अंक)
होगी पर आधर चढ़ गयी जाने का रास्ता कहााँ है?। एक बाढ़ कजसने हमेसा के किए दोनो देशों के िोगो का रास्ता बंद
कर कदया।
धीरे -धीरे ईस नए शहर की ऄच्छाइ को भ्रिाचार, ऄसकहष्णतु ा, और िािच ने कनगि किया और एक नया
राष्र बनाने की शकि कम होती गयी। िोगों मे ऄब बस िड़ना-झगड़ना और कबना मतिब के कइ कायू होने िगे।
दहस का भावीसी ईन िोगो के हाथ मे अ गया जहा चिाने का काकबकियत तो है ही नहीं भ्रिाचार और धाकमूक
कट्टर ता ईन्हे बबाूद कर रही है। तभी तो मौिवी साहब के पछ
ु ने पर कक “क्या ये ऄच्छा नहीं हुअ की पाककस्तान
बनाया गया?” ज़ाककर का जवाब होता है कक ‚ ऄच्छी कचजे भी बरु े हाथों मे ऄच्छी नहीं रहती।” याकन िोग कसफू
राजनीकतक करणों को देखकते है। कशक्षा को हेय दृकि से देखते है यह तमाम कारण है जो ईसे देश चिाने िायक नहीं
समझती। ईसमे यवु ा वगू कसफू हड़ताि और जिसो मे नारे िगते है और सिामत जैसा व्यकि ऄपनी एक िस्कर याकन
पिटन बनाता है और िोगो को िड़ने के किए कहता है। चाय दक
ु ान पर यवु ाओ ं को देश की िड़ाइ के किए ईकसाता
है। जब यवु ा ही ऐसे कायों मे संिग्न हो जाएंगे तो देश का भकवष्य कहा जाएगा । पाककस्तान अज अतंकवाद से जझू
रहा है , नयी- नयी घटनाएं सामने अती रही है। अज देश तो बट गया पर ज़दु ा होने का टीस कही न कही मन के
कोने मे कजदं ा है।
सब डोर ककत पतंग की तरह थे जो कही ककसी ऄनजाने छत पर जा कगरे थे। आन सारे िोगो की कइ कहकनयों
को कहते हुये ‘आन्तज़ार हुसैन’ दौकनक जीवन की महत्वहीन बातों मे कइ बार ऄपने ऄप्रत्यक्छ कहानी िेखन के
ऄदं ाज से चक
ू ते है और कुछ प्रत्यक्ष बाते किखते है। भारत-पाककस्तान का माहौि और अम जन की प्रकतकियाएाँ जो
िोग रोज पछ
ु ते रहते थे कक ऄब क्या होगा िड़ाइ होगी या नहीं। यहााँ प्रबद्ध
ु जनो की नपंसु कता भी देखी जा सकती है।
ईपन्यास के ऄदं र जो सबसे रृदय कबदारक दृश्य है वो तब है जब ज़ाककर के मरते हुये कपता ईसे ऄपने परु खों के घर की
चाभी सौपते है, जो घर से दरू बसे रूपनगर मे है और वह घर ऄब ईनका नहीं रहा। ईनके कपता कहते है-“ये चाभीय
कवश्वास है, आस कवश्वास की रक्षा करना और ईन िोगो की दया याद रखना जो ईस दकु नया मे रहते है जो हम छोड़ अए
है।” ईपन्यास मे राजनीकतक मकडजाि का कचत्रण बहुत ही सहज और रोचक भाषा मे ककया गया है । ऄपनी ऄनठू ी
कथ शैिी और आसं ानी सरोकारों के संवदे नशीि अकिन के कारण ईपन्यास ऄपनी कवकशि ईपकस्थती दजू करता है।
कवभाजन की कस्थकत ऄत्यंत भयावह होती है चाहे वह भारत-पाक कबभाजन हो, बंगिादेकशयों का पिायन
हो या वतूमान दौर मे सीररया की कस्थकत। देश कोइ भी हो ऄपनी जड़ो से कटने का ददू सभी को है। आतं ज़ार हुसैन ईसी
ददू को शब्दों मे बया करते है। ईनके एक-एक पंकि कबभाजन की त्रासदी एवं कबखरती मानवीय सवेदनाओ ं का
अख्यान है। कबभाजन की त्रासदी को और भी कइ िेखकों ने ऄपनी कृ कतयों मे व्यि ककया है परंतु कबभाजन के साथ
ऄपनी जमीन से जड़ु ी यादों को कजस तरह आतं ज़ार वकणूत करते है। वह ऄन्यत्र नहीं कमिता है। सवं दे नाओ ं की आसी
धाराति पर आतं जार ऄन्य िेखकों से कोसो दरू कनकाि जाते है।