जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका / Jankriti International Magazine( बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की 125वीं जयंिी पर समतपिि अंक)
ISSN 2454-2725
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिक
( बाबा साहब डॉ. भीमराव अ
'' कहीं का न रखा इस भ्रम ने वक धमभ और ईश्वर की अंधश्रिा मन को मुि कर सकती है दुखों से इवतहास में दजभ हैं िे सारी कहावनयां जब ईश्वर की चौखट पर तोड़ वदया दम जीिन और प्रेम के वलए प्राथभनाएं करते हए मनुष्य ने ''
और विर मौजूदा भारतीय समाज की पारंपररक विभागणी की िजह से पसीने और मेहनत पर जो जुल्म हए हैं और उन जुल्मों को मेटने की बजाय िोवषतों पर दया की मुहीम चलाई गयी है, जो इतनी भयानक है वक वजसका बयावनया
नामुमवकन है । मामला यहीं नहीं रुकता आज के दौर में आम मेहनतकि और ईमानदार इनसान के साथ जो हो रहा है और साथ ही साम्राज्यिाद जो गरीब मुल्कों के साथ कर रहा है, इन तमाम बातों को इस छोटी कविता में वजस खूबसूरती से वसरजा गया है, अपने आप में सेल्ि ररयलायजेिन की एक यूनीक वमसाल है । कविता है, '' दया: दवलत संदभभ में '' इस कविता ने मुझे देर तक रोके रखा ।
कविता में हजार बातें अनकही छोड़ दी गयी है, जो कही गयी बातों के आधार पर ही समझी जा सकती हैं । बानगी के रूप में चंद पंवियां पढ़कर देखें-
'' टाटा समथभ है देि और िासकों पर दया करने के वलए वबड़ला लक्ष्मी नारायण पर.......................... '' िल्डभ बैंक, आई. एम. एि, ए. डी. बी अमरीका दया कर रहे हैं तीसरी दुवनया के गरीब देषों पर............................. '' सिणों ने बड़ी दया की रात-भर दवलत प्रश्न हल वकया सामूवहक नरसंहार हआ
उन्होंने खेद प्रकट वकया '' पग-पग पर लोगों ने
मुझ पर दया की '' हर दया चस्पा है
मेरे मन पर मेरा हर घाि ररस रहा है मिाद बन कर ।''
इस तरह की और भी कई मजबूत और सौंदय करने लगती हैं । हमें जिाब देने लगती हैं । हमें झ है, यह कहते हए वक क्या जिाब है इस छोटी करना, पर हमारे पास इन सिालों का क्या जि हए वनतांत असुरक्षा के बािजूद सुरवक्षत होने क
'' पूछती है अब क्यों मरते हैं इतने लोग कौन होते हैं मारने िाले कहां से आती है इतनी गोला-बारूद? क्या करती है पुवलस, सेना क्या करते हैं ये मंत्री और हम नहीं कर सकते क्या कु छ भी?''( क्या हम नहीं कर सकते कु छ भी)
इन सिालों का क्या जिाब हो सकता है जब व
'' सभी इस बात से पूणभ-रूपेण एक मत थे वक आ विचार पर विचार करना बहत मुनािे का व्यिस( विचार: अगली िताब्दी की ओर)
और अब िे कविताएं जो मुझे बेहद पसंद है ।
को मात करते नज़र आते हैं िहां अदब परिान पर होता है और पाठक को ले बैठता है, अपन
की समझ में कोई नया रास्ता वनकाले सके । ऐस
Vol. 2, issue 14, April 2016. वर्ष 2, अंक 14, अप्रैल 2016. Vol. 2, issue 14, April 2016.