जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका / Jankriti International Magazine( बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की 125वीं जयंिी पर समतपिि अंक)
ISSN 2454-2725
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिक
( बाबा साहब डॉ. भीमराव अ
वकसी और से न कह दे िह तुम्हारी बात ''( पिाताप) '' साम्प्रदावयक नहीं था िह
विर भी मरा पुवलस की गोली से ।'' '' हादसे यू ं ही
घटते रहते हैं अक्सर वनदोष, भोले-भाले
अव्यिहाररक व्यवियों के साथ मरे गये हैं सदैि िे ।''( मारे गये हैं िे) '' झोंपड़ी में वदया जलाना आनंद का श्रोत है सूयभ की रोिनी बहत तेज है दीिारें परत छोड़ रही है घर का मोह वमटेगा अब ।''( अवस्मता)
िैलेंद्र चौहान के यहां अपनी बात कहने के वलए वजन अलामतों का इस्तेमाल वकया गया है िे इस हद तक आम है वक वजस व्यवि को समकालीन कविता का खुमार चढ़ा हआ हो उसके वलए इनके भीतर पैठकर इन्हें समझना बहत ही कवठन होता है । असल में जैसा वक कहा गया है चौहान अपने जेहन में वजन बातों को लेकर कविता के गभभ में उतरते हैं िे बातें उनके आसपास की हैं और आम जनजीिन से सराबोर हैं इसवलए उनके यहां बात का कविता बनना आसान होता है । मतलब यह वक उनको बहत दंड पेलने की जरूरत नहीं पड़ती । हां, यह बात जरूर है वक बात को गु ंथने के वलहाज से वजस ररद्म की जरूरत होती है, उसके वलए वजतना जरूरी हो, उतनी कारीगरी को इन कविताओं में देखा जा सकता है । लेवकन आपको यह नहीं लगेगा वक कारीगरी चढ़कर कविता की सिारी कर रही है । हां, बाजिि जहां ऐसा हआ है िहां कविता कम और लफ्ज़ों की भरमार ज्यादा वदखाई देती है । जहां तक मेरी जानकारी है इस बीमारी से हमेिा नहीं बचा सकता लेवकन संजीदा कवि कोविि करता है वक इस बीमारी से जल्दी से जल्दी मुवि पाई जाय । मैं दोनों तरह की वमसालें यहां पेि कर रहा ह । ं
'' जाजभ बुि और लादेन दो चेहरे हैं एक व्यवि के ''
'' सूचना अब पू ंजी के अभाि से झरती है पू ंजी पर आकर ही खत्म होती है '' '' एक औरत को वजसकी आंखों में तैरती नमी मेरे माथे पर िाहा बन सके '' मैं प्यार करना चाहता ह ं तुम्हें
तावक तुम इस छोटी दुवनया के लोगों से आंख वमलने के कावबल बन सको ।''( मैं तुम्हें प्यार करना चाहता ह) ं '' जब होते हैं हम कवि तब आदमी नहीं होते जब करते हैं बात कलुआ, रमुआ, सुवखया, होरी की कोरी, चमार अघोरी की
तब हम बहत दूर होते हैं उन वस्थवतयों, पररवस्थवतयों एिं संवस्थवतयों से ।''( वचवड़या और कविता)
मैंने यह भी देखा वक जहां अनुभि इरादों को म चढ़कर बोलती है और जहां पर सूचनाओं औ कविता लेख की िक्ल इख्त्यार कर ले रही नहीं '' और इसी तरह की कु छ और कविताएं ह
यहां जो बात मुझे खास तौर पर कहने की जरू रहा था िे कविताएँ ही इस संग्रह में बहतायत म है । हर हाल में अपना धैयभ नहीं खोती और अ गयी होंगी और वसरजते िि वकसी अवतररि कह ं तो, '' और यह वक / नदी को नदी कहा ज बीट से / गंदला गए हैं पत्तों / हम अपना अवस्तत् कोई स्त्री / पुरुषों से / जो पुरुष चाहते है वस्त्रयों से '
Vol. 2, issue 14, April 2016. वर्ष 2, अंक 14, अप्रैल 2016. Vol. 2, issue 14, April 2016.