Jankriti International Magazine vol1, issue 14, April 2016 | Page 38

जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका / Jankriti International Magazine( बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की 125वीं जयंिी पर समतपिि अंक)
ISSN 2454-2725
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिक
( बाबा साहब डॉ. भीमराव अ
थे । पर शायद वे सब उसे इस दुसनया के लायक नहीं बना सके-- उसने सोचा । उसने सकस-सकस के सलए क्या-क्या नहीं सकया । पर अपना मतलब सनकाल कर सब उसे ठेंगा सदखा गए ।
शायद इसी को ' प्रैसक्टकल ' होना कहते हैं । वह आज भी ' प्रैसक्टकल ' नहीं हो पाया । के. के. कह रहा था-- '' तुम्हारी समस्या यह है सक तुम सदमाग से नहीं, सदल से जीते हो । इससलए तुम यहाुँ ' समससछट ' हो ।'' क्या इस दुसनया में सदल से जीना गुनाह है-- उसने सोचा । सदमाग से जीने वालों ने इस दुसनया को क्या बना सदया है । लोग सुबह पीठ पीछे सकसी को गाली देते थे । दोपहर में उसी के साथ ' हें-हें ' करते हुए खाना खाते थे । लोग अपना काम सनकालने के सलए गधे को बाप कहते थे । और बाप को गधा । वह ऐसा नहीं कर पाता था । इससलए ' सीधा ' था । ' समससछट ' था । मंसदर में पुजारी भगवान के नाम पर लूटते थे । सङकों पर सभखारी इंसासनयत के नाम पर लूटते थे । आघाद भारत में चारों ओर अुँधेरगदी मची थी । ईमानदार सस्पेंड होते जा रहे थे । कामचोर प्रोमोशन पा रहे थे । धमद और जासत के नाम पर नेता देश को लूट कर खा रहे थे । हर ओर चोर और बेईमान भरे हुए थे । छकद ससफद इतना था सक कोई सौ रुपए की चोरी कर रहा था, कोई हघार की, कोई लाख की और कोई करोङ की । इन सबके बीच वह एक लुप्तप्राय अजनबी था ।
दूर कहीं से रेलगाङी के इंजन की मसिम आवाघ सुनाई दी । उसने पटरी से कान लगाया । पटररयों में रेलगाङी के पसहयों का संगीत बजने लगा था ।
तो इसे ऐसे खत्म होना था । जीवन को पटररयों पर । रेलगाङी के पसहयों से कट कर । अच्छा है, इस जीवन से मुसि समलेगी । हैरानी की बात यह थी सक उसका ससर-ददद अचानक ठीक हो गया । वह रहे या न रहे, सकसी को क्या छकद पङेगा । उसकी मौत कल अखबार के भीतरी पन्ने में एक छोटी-सी हेडलाइन होगी । या शायद वह भी नहीं-- उसने सोचा ।
वह पैर फै ला कर पटरी पर पीठ के बल लेट गया । ऊपर हाइ-टेंशन वायरों से सघरा मटमैला आकाश था । उनसे ऊपर, नीचे उङ रही एक चील को चार-पाुँच कौए सता रहे थे । इंजन की आवाघ अब करीब आती जा रही थी । उसने आुँखें बंद कर लीं । इंजन की आवाघ अब बहुत पास आ गई थी । पास । और पास । पटरी और पसहयों के बीच का संगीत अब ककद श और बेसुरा लगने लगा था । उसने एक लंबी साुँस ली । पल भर और । इंजन उसके ऊपर से गुघरने वाला था । हैरानी की बात यह थी सक उसे डर नहीं लग रहा था ।
एक पल के सलए जैसे उसका वजूद इंजन के शोर में डूब गया । सैकङों टन लोहा जैसे उसके ऊपर से गुघर गया । उसकी आुँखें खुल गई। ं क्या मैं जीसवत ह ुँ--
उसके सदमाग में कौंधा ।
एक पल के सलए उसे सवश्वास नहीं हुआ कोई था जो चाहता था सक वह अभी रहे ।
लङखङाता हुआ वह पटरी से उठ खङ पर एक घटता हुआ धब्बा रह गया था । मौत उ लगा जैसे उसके हाथ-पैरों में जान नहीं रही । स वह घर की ओर चल सदया ।
रास्ते में उसे कई लोग समले । वह उन्हें ब सकसी ने उसकी ओर ध्यान ही नहीं सदया । स ट्रैसछक पुसलसवाले यातायात को भाग्य-भरोस व्यस्त थे । घर के पास नुक्कङ वाली चाय की द ले रहे थे । उसने बगल के पानवाले से एक पैके ट
बङी जल्दी आ गए आज-- घर में घुसत चाहता था सक पत्नी को बताए सक आज वह म पर ' गेम ' खेल रहे बेटे के ससर पर हाथ फे र क आज वह बाल-बाल बचा । पर पत्नी टी. वी. स में नहीं थी ।
खाना डाइसनंग-टेबल पर पङा है-- टी. व
नहा-धो कर उसने खाना खाया और टी. व ' कह कर वह घर से बाहर सनकल गया । उसने सफर रेलवे-लाइन की ओर सनकल पङा ।
यह क्या? पटररयों के बीचों-बीच कोई ब ठीक से सदखाई नहीं दे रहा था ।
तभी दूर से रेलगाङी की सीटी सुनाई दी । बार सफर कुँ पकुँ पी-सी दौङ गई । क्या कोई और
उसने ससर मोङ कर देखा-- साथ वाली पटरी पर एक अके ला इंजन उससे दूर जा रहा था । दूर... और दूर ।
Vol. 2, issue 14, April 2016. व ष 2, अंक 14, अप्रैल 2016. Vol. 2, issue 14, April 2016.