Jankriti International Magazine vol1, issue 14, April 2016 | Page 39

जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका / Jankriti International Magazine( बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की 125वीं जयंिी पर समतपिि अंक)
ISSN 2454-2725
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिक
( बाबा साहब डॉ. भीमराव अ
अचानक वह हाथ में पकङी ससगरेट फें क कर पटररयों के बीचों-बीच बैठी आकृ सत की ओर सचल्लाते हुए दौङने लगा । गाङी के इंजन की रोशनी करीब आती जा रही थी । फटे-पुराने कपङे पहने सबखरे बालों वाली एक नारी आकृ सत पटररयों के बीचों-बीच ससर झुकाए बैठी थी । पटररयाुँ लाुँघता वह बेतहाशा दौङा । रेलगाङी और करीब आ गई
थी । उसे लगा, वह उस युवती को नहीं बचा पाएगा । उसने पूरी जान लगा दी और इंजन के ठीक मु ुँह में से युवती को दूर खींच सलया । रेलगाङी धङा-धङ, धङा-धङ करती हुई पटरी पर सनकलती जा रही थी ।
मरना चाहती थी? गाङी गुघर जाने के बाद उसने युवती को झकझोर कर पूछा ।
युवती के मु ुँह से एक अस्पष्ट-सी ध्वसन सनकली । वह के वल फटी हुई आुँखों से उसे देखती रही । कोई सभखारन है । शायद गू ुँगी-बहरी-- युवती के फटे-पुराने कपङे देख कर उसने सोचा । अब मैं क्या करूुँ?
नारी-सनके तन वहाुँ से ज़्यादा दूर नहीं था । पर उसे सुबह के अखबार के मुख-पृष्ठ पर छपी खबर याद आई-- " नारी-सनके तन या देह-व्यापार का अड्डा? " और उसने युवती को नारी-सनके तन ले जाने का सवचार त्याग सदया ।
इसे पुसलस-स्टेशन ले चलू ुँ क्या? उसने सोचा । पर पुसलसवाले आज तक उसमें सवश्वास नहीं जगा पाए थे । वे मुझ ही से सौ तरह के सवाल पूछने लगेंगे । कहाुँ समली? कब समली? तुम उस समय वहाुँ क्या कर रहे थे? वगैरह-- उसने सोचा । और अगर पुसलसवाले मुझ ही पर शक करने लगे तो? मुझ ही से ररश्वत माुँगने लगे तो?
आसखर वह उस सभखारन को पास के पाकद में बनी एक बेंच पर सबठाकर आगे बच गया । अमावस का आकाश तारों से ढुँका हुआ था । बीच-बीच में कोई टूटता हुआ तारा कु छ देर चमकता और सफर गायब हो जाता ।
सङक पर आ कर उसने राहत की साुँस ली । और तब उसे ख़्याल आया सक आज दूसरी बार वह मरते-मरते बचा था । वह सभखारन उसकी कौन थी? उसे बचाते हुए अगर वह रेलगाङी के नीचे आ जाता तो?
" तो क्या? दुसनया में एक अदद ' समससछट ' कम हो जाता ।" उसने मुस्करा कर घोर से कहा और कोई भूला हुआ गीत गुनगुनाता हुआ घर की ओर चल पङा ।
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आपकी तरफ से हााँ समझ ाँ या नहीं? चार ददन था । दीदी दजयाजी रोकते हैं क्या उसने पछा थ प्लीज भाई के दलए आ जाओ । ठीक है कल सीना फ लाकर गदचन दहलाई । पदत पत्नी को अ । मगर दकसी और के साथ जाना पसुंद नहीं क फै सला सना ददया । यह आठवी नवीं बार हो पहचान दमलती? उसने पछा । तम दकससे बा अगर मैं कह ाँ तम भी नहीं जाओगे मुंच पर? व पहचान की है कोई दकसी के रास्ते क्यों रोके गुंदगी में ध्यान नहीं तम्हारे सड़े ददमाग में यही में जाने देता है मुंच पर नहीं? क्या गोष्ठी में स बोला और परवीन शादकरा उसने उत्तर ददया अल्िीमेिम पर अपने कररयर की बदल दी थी की बात थी । अब बच्चे पैरों पर खड़े थे उसके इस उम्र में भी पहरे ओह भल गयी थी तम्हारे शादी करना चाहता था । क्या काम नहीं करती सेम्पल लेने लड़का आ गया था बात का क्रम बनाने लगी वह काली उड़द दाल के साथ म ढ ुंढने लगी नहीं थी । किहल छोंक चकी थी । फ । अब कै से दनकालती ऐसे ही पका ददया । गलत का मैच अच्छी नहीं लगेगी । उसने दही और क वह उसे छोड़ पायेगा भला । जायेगा या नहीं देख हाददचक आभार एस एम एस इनबॉक्स में दलख उसने दनश्चय कर दलया था । मेरठ से जो कवदय राजनीदत में नहीं रहता मुंच
Vol. 2, issue 14, April 2016. व ष 2, अंक 14, अप्रैल 2016. Vol. 2, issue 14, April 2016.