Jankriti International Magazine vol1, issue 14, April 2016 | Page 36
जनकृति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine
ISSN 2454-2725
(बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की 125वीं जयंिी पर समतपिि अंक)
जनकृति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine
ISSN 2454-2725
(बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की 125वीं जयंिी पर समतपिि अंक)
एक ओर अनपू अपनी बहन से कह रहा था, 'दीदी ,मै घर जाकर आराम करना चाहता हू,ं आप तो यहीं रुक रहीं हैं
ना.....?'
"नहीं ...नहीं अनपू ,मैं भी बहुत थक गयी हू,ं भख
ू भी बहुत िगी है।" "ठीक है,तमु भी चिो।भगतु तो है ही माुँ के
पास..।" 'भगतु ! तुम यहीं रहना माुँ के पास,कहीं जाना नही...समझे! कुछ बात हो तो हमें फोन करवा देना"
"जी भैया।"
चक
ु े थे।आरती जी की अकन्तम इच्छा थी कक, ' उनका अकं तम संस्कार भगतु ही करे ।शरीर का जो भी अगं ककसी के
काम आ सके वह उसकी ओर से दान समझा जाए।दक
ु ान व उसका ककराया भगतु को कमिे तथा घर को बेसहारा िोगों
के किए आश्रम बना कदया जाए।'
डा.व नसस अपनी गकतकवकधयों में िग चक
ु े थे।चारों बहन- भाई अपनी माु ँ के पाकथसव शरीर को कबना देखे, कबना स्पशस
ककए अपनी-अपनी राह चि कदए.......।
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धीरे -धीरे सारे बहन भाई वहाुँ से कखसक किए। कुछ देर बाद डा. चैक-अप करके जाने िगे तो भगतु हाथ जोडकर पैरों
में कगरकर कगडकगडाते हुए बोिा,"डा.बाबू हमारी माुँ जी ठीक हो जाएगं ी ना! ,हमारी माुँ जी को बचा िीकजए।" कहतेकहते वह रो ही पडा ।सबु ककयों की आवाज सनु कर उसकी नींद खि
ु गयी।वह सोचने िगी इस पराए बच्चे के मन में
मेरे किए ककतना ददस है। जब से अस्पताि में दाकखि हुई हू,ं वह अपने घर भी नहीं गया।कदन - रात मेरी सेवा में िगा
हुआ है ।इसने कबना ककसी स्वाथस के मेरी सेवा की,पर मैंने इसके किए क्या ककया....?सोचते -सोचते इजं क्े शन के असर
से नींद के गहर में डूबती चिी गयी।सोते-सोते पता नहीं क्या आभास हुआ कक हडबडा कर उठ गयीं, देखा कक भगतु
उनके पैर दबा रहा है।भगतु ने आवाज देकर नसस को बि
ु ाया।िेककन उसने कबना क्षण गंवाए नसस से कागज किम
मगं वाकर जल्दी-जल्दी कुछ किखा और कागज नसस को पकडाते हुए कहदायत दी कक 'यह कागज डा.साहब को दे देना
,पर मेरे जाने के बाद।'कहकर आख
ं ें बंद कर िी।भगतु यह सब देखकर जोर जोर से रोने िगा।ऐसा िगा जैसे आज
उसकी आख
ु ने और
ं ों का सैिाब उमड कर बाहर आ रहा है।आरती जी की सांसे धीरे - धीरे उखडने िगी।आख
ं ें भी खि
बंद होने िगी,हाथ के इशारे से भगतु को अपने पास बि
ु ाया और प्यार से कसर पर हाथ फे रने िगी।भगतु उनका हाथ
अपने हाथ में िेकर चमू ने िगा और बोिा," अम्मा जी अब कै सी हो ...आप कफकर ना करें ....आप जल्दी ही ठीक
हो जाएगं ी....आपको कुछ नहीं होगा......माुँ जी...!" उसके कान इन्हीं शब्दों को सनु ने के किए ही तो तरस रहे थे अभी
तक।एक बार तो िगा उसके बच्चे उसके पास खडे माथे पर हाथ रखकर कह रहे हैं ।एक बार अच्छी तरह आंखें
खोिकर देखा तो वहां दो नसस, दो डाक्टर खडे थे,एक हाथ भगतु के हाथ में दसू रा उसके कसर पर ही था कक उनकी
गरदन एक और िढु क गयी।भगतु फूट- फूट कर रोते हुए अपनी माुँ जी के शरीर से किपट गया।डा.के फोन करने पर
चारों बहन- भाई भी उसी क्षण पहुचं गये । आरती जी द्वारा किखा कागज अनपू को देते हुए डा.बोिे,," क्षमा करें , हम
माुँ जी को बचा नही सके ।" चारों बहन भाई एक दसू रे की ओर देखने िगे।सभी उत्सक
ु थे यह जानने के किए कक माुँ
ने अपनी जमा-पंजू ी ककस- ककस को ककतनी दी।
"भैया,बताओ ना, माुँ ने ककसको क्या कदया है...?"अनपू ने कागज श्रवण की ओर बढा कदया और माथे पर
आया पसीना पौंछने िगा।
सभी बारी -बारी से कागज पढ कर एक दसू रे की ओर बढाते रहे।कागज पर किखे शब्द उनकी संवदे नाओ ं व
इनसाकनयत पर मक
ू चोट कर रहे थे।छोटी बेटी अनु के हाथ से कागज छूट कर नीचे कगर गया।सभी के चेहरे सफे द पड
Vol.2, issue 14, April 2016.
वषष 2, अंक 14, अप्रैल 2016.
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