Jankriti International Magazine vol1, issue 14, April 2016 | Page 35

जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका / Jankriti International Magazine( बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की 125वीं जयंिी पर समतपिि अंक)
ISSN 2454-2725
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिक
( बाबा साहब डॉ. भीमराव अ
" माुँ जी, आप सोने की कोकशश करें, अपने कदमाग पर ज्यादा जोर मत डािें ।" जाते-जाते पास में खडे बच्चों को भी समझाया, " कोई भी इनसे ऐसी बात ना करें जो इनके कदि कदमाग पर असर करे ।"
" ठीक है कसस्टर, आप कचन्ता ना करें ।" श्रवण ने कहा । तभी छोटी बेटी अनु ने कमरे में प्रवेश ककया । उसे देखकर आरती को थोडी राहत महसूस हुई कक उसकी िाडिी बेटी आ गयी अब कोई कफक्र नहीं । पर यह क्या.... उसने भी एक नजर से देखा और अपने बहन-भाईयों में जा कमिी और पूछा, ' कै सी है अब कस्थकत? अस्पताि में और ककतना समय िगेगा? "
कसस्टर के कहने के बाद वे सोने की कोकशश कर रहीं थी पर बच्चों के बातों की आवाज कानों में अस्पष्ट सी सुनाई देने िगी । मन- ही-मन भगवान से क्षमा मांगने िगीं कक उसने बेकार ही अपने बच्चों की नीयत पर शक ककया । उसके बच्चों को तो अपनी माुँ की ककतनी कचन्ता है शायद यही कारण हो जो उससे ज्यादा नहीं बोिे । एक फोन पर ही अपना काम-धाम छोड कर आ गये ।
डा. ने आकर कदन भर की ररपोटस पढी और कसस्टर को कु छ कहकर एक इंजेक्शन दे कदया । उसके बाद नींद आने िगी । पर ददस के कारण बीच-बीच में नींद खुि जाती । आंखॆ बंद देखकर बच्चों ने सोचा माुँ सो रही है अनूप और श्रवण आपस में बकतयाने िगे । अनूप बोिा," भैया! माुँ ने सारी उम्र मेहनत की । ररटायर होने के बाद भी दो-तीन वषस तक काम करती रहीं ।" " तुम ठीक कह रहे हो और बाद में तो माुँ की तनख्वाह भी अच्छी हो गयी थी ।" श्रवण बोिा
" पर माुँ ने अपनी सारी जमा-पू ंजी पता नहीं ककसके नाम की होगी?" अनु बोिी ।
" अगर माुँ को कु छ हो गया तो....? " अनूप ने कहा ।" अरे.... क्या बेवकू फों वािी बात करता है, कु छ क्या होगा, वो तो होगा ही, सब सामने है तुम्हारे । तुम्हें ध्यान नहीं अभी-अभी डाक्टर क्या कह कर गये हैं.... माुँ के पास ज्यादा समय नहीं है । एक ककडनी तो फे ि हो ही चुकी है । दूसरी भी नब्बे प्रकतशत खराब हो चुकी है ।" कहते-कहते श्रवण चुप हो गया ।
" हां भैया, डाक्टर ने तो यह भी कहा है कक ककडनी का इन्तजाम हो जाए तो वे ठीक हो सकती हैं ।" अनु बोिी ।" पर इसके किए तो बहुत बडी रकम चाकहए, क्या तुम दोनों इन्तजाम कर िोगे?" राधा बोिी ।
" नहीं.... नहीं, मैं ये जोकखम नही उठा सकता, मुझे तो वैसे भी दो कदन बाद वाकपस बैंग्िौर जाना है । बहुत जरूरी मीकटंग थी यहाुँ इसकिए आ गया था " तभीउसकी पत्नी भी बोि उठी- " दीदी, हमें समय रहते माुँ जी से पूछ िेना चाकहए कक उन्होंने मकान के कागजात व जमा-पू ंजी ककसके नाम की ।"
" हां भाभी, आप कबल्कु ि सही कह रही हैं ।" यह अनु की आवाज थी । वह चुपचाप िेटे- िेटे अपने बच्चों की बातें सुनती रहीं । अब नींद कोसों दूर थी । शब्दों के शूि रृदय को बींध रहे थे । तभी बडे बेटे के बोि कानों में कपंघिे शीशे की तरह पडे,," जैसे ही माुँ की आंख खुिेगी हम में से कोई एक माुँ से पूछ िेगा कक गाुँव वािा मकान, बाजार वािी
दुकान और यह घर ककसके नाम ककया है ।" छ अपने घर िेकर आई थी, क्योंकक उसके कपता जी को ग्रेच्यूटी के पैसे भी तो कमिे थे कपछिे म
" तुम कचन्ता मत करो शगुन, जैसे ही माुँ उठेंगी,
एक ही करवट िेटे-िेटे वह थक गयीं तो मु ंह करने िगा । िेककन उसकी अपनी औिाद ने त दूर ।
न स आकर थोडी- थोडी देर में बी. पी. चैक कर रहा । उनकी कबगडती हाित देखकर मासूम भग
कहते हैं जीवन के अकन्तम क्षणों जाता है । वही सब उनके साथ भी हो रहा था । व जीवन की नैया को उसके पकत छोड गये थे, त िगाया था । गांव की जमीन का एक टुकडा बेच कर बडा आदमी बनाना । बैंक से िोन िेकर म पर आने िगी । ईश्वर की कृ पा से बच्चे भी अच् कभी कचन्ता में डूबी होती तो अनूप बेटा यह सब सम्भाि िू ंगा ।" इन्हीं कहम्मत भरे शब्दों स
जब छोटे को अमेररका जाने के किए बहुत बड मकान पर बैंक कजस की कककतें तनख्वाह में स होती रही । गहने-कपडों से उसे स्वयं कोई िगाव क्या करना था । पर..., ककतने दुख की बात है..... कमाई का कहसाब मांग रहे हैं...! क्या इसी कद आंसूओं की अकवरि धारा बह कनकिी । आंस है... आप रो क्यों रही हैं?" उसकी मासूकमयत फे रते हुए उसके किए आशीष की झडी िग की । पैरों के साथ-साथ हाथों की सूजन भी बड का धयान रखना इन्हें उदास मत होने देना... सम
Vol. 2, issue 14, April 2016. व ष 2, अंक 14, अप्रैल 2016. Vol. 2, issue 14, April 2016.