Jankriti International Magazine vol1, issue 14, April 2016 | Page 34

जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका / Jankriti International Magazine( बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की 125वीं जयंिी पर समतपिि अंक)
ISSN 2454-2725
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिक
( बाबा साहब डॉ. भीमराव अ
जैसे ही आमी ऑनफसर फ़ोन पर बातें करने लगता है सेल्समेन मन ही मन सोर्ने लगता है की मैं इन्हें अपना असली काम बताऊाँ या नहीं अगर मैने इन्हे बता नदया की मैं पोनलसी का काम करता ह ाँ तो ये नजस
ईमानदारी और आत्मीयता के साथ मुझसे बात कर रहे हैं नहीं करेंगे | और समझ जायेंगे की असल में मैं पानलसी के नलये ही यहााँ आया ह ाँ क्या करूाँ, क्या काम बताऊाँ, अगर ऐसा कोई काम बता नदया नजसके बारे में मुझसे इन्होने कु छ पूछ नलया तो क्या जवाब दू ंगा, मैं इतने अच्छे इन्सान के साथ ये कु छ और समय नबताना र्ाहता ह ाँ कु छ तो सोर्ना ही पड़ेगा |
इतने में ऑनफसर की फ़ोन पर बात ख़त्म हो जाती हैं और वो स्वारी कहते हुए नफर अपनी बात कहता है आपने बताया नहीं आप क्या करते है सेल्समेन ने थोडा नहर्नकर्ाते हुए कहा मेरी नकराने की दुकान है | आमी ऑनफसर ने कहा व्हेरी गुड मतलब आप जॉब में नहीं है आपका नबजनेस है वो भी बारह महीने र्लने वाला व्हेरी नाईस.... सेल्स मेन ने ये प्रनतनिया भी अपेनित नहीं की थी की उसकी नकराने की दुकान को इतना महत्वपूणच माना जायेगा
इतने में र्ाय नाश्ता आ जाता है ऑनफसर कहते है लीनजये आप | सेल्समेन थैंक यू कहकर र्ाय का कप अपने हाथ में लेता है | आमी ऑनफसर उसे नबनस्कट भी लेने के नलये कहते है, अरे लीनजये ये खास नबनस्कट है, सरहद से लाया ह ाँ, खासतौर पर अपने पररवार के नलये और आसपास वालो के नलये भी | आप भी टेस्ट कीनजये सेल्समेन कहता है सर, अब तो लेना ही होगा | सेल्समेन मन ही मन सोर्ता है, मैं कहााँ बीमा पानलसी के बारे में सोर् रहा था आज मैं इतने बड़े ऑनफसर के घर पर उनके साथ र्ाय नाश्ता ले रहा ह ाँ उनके जीवन और पररवार के बारे, में जान रहा ह ाँ यही क्या कम है सेल्समेन के नलये कभी- कभी एक अच्छे इन्सान नमलना एक बड़ी पानलसी नमलने से भी ज्यादा महत्वपूणच हो जाता है टारगेट तो हर महीने नमलेंगे पर ऐसे लोग हमेशा नहीं नमलते इसी सोर् के साथ आज वो अपना काम ख़त्म कर‘ एक गहरी अनुभूनत के साथ वापस लौट आता है |’
ईमेल-idealshobha1 @ gmail. com मोबाईल नम्बर-९९७७७४४५५५
फोन की घंटी की आवाज सुनकर आटा मथत ओर से कं पकं पाती आवाज सुनाई दी, ' स्नेह पूछती रह गयी परन्तु दूसरी ओर से फोन कट च कवषय में सोचती रही । उनका मेरे प्रकत स्नेह व स्नेह रखती थीं । इसी कारण से कपछिे पन्रह कद उनसे कमिकर आई थी! डा. के अनुसार वे धीर रात ही रात में ऐसा क्या हुआ कक आरती थी, कवश्वास ही नहीं हो रहा । कजतना सोचती उतन ही है, हो सकता है उसे कु छ पता ही न हो । आ को अपने पास रख किया था, जो घर के छोटे-छ
" मैडम जी, अस्पताि आ गया...।" आट गया । देखते ही किपट कर फू ट फू ट कर रोने पडा । मैंभी चुपचाप पीछे-पीछे चि पडी । जाकर उस पर यकीन करना था तो मुकककि, पर क अन्दाजा हो गया था कक वे अब कु छ ही कदनों
वैसे तो अब उनके जीने का मकसद भी पूरा ह बच्चों को भी बुिा किया था । वे चाहती थी क । छोटा बेटा अनूप और छोटी बेटी अनु कवदेश म
वे भी समय पर पहुुँच गये थे । बडे बेटे श्रवण ने िेटे आरती टकटकी िगाए अपने बच्चों को कफराकर पूछेंगे, " माुँ तुम कै सी हो? जल्दी ही
पर ऐसा कु छ नहीं हुआ । ये शब्द सुनने को का बस, सभी डाक्टर से सिाह- मशकवरा करते रह तभी तो डाक्टर से बात कर रहे हैं, हो सकता ह कु शिता की कामना करते हुए आंखें बन्द कर
Vol. 2, issue 14, April 2016. व ष 2, अंक 14, अप्रैल 2016. Vol. 2, issue 14, April 2016.