Jankriti International Magazine vol1, issue 14, April 2016 | Page 26
जनकृति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine
ISSN 2454-2725
(बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की 125वीं जयंिी पर समतपिि अंक)
घर अब कई-कई कदनों तक उदास-उदास ही रहेगा
वह महीनों तक सनू ापन महसूस करता रहेगा
घर ककसी को नहीं बताएगा
कक उसके पास रहनेवाला एक सदस्य
परदेश कनकल गया है
जो पता नहीं कब तक लौटेगा
घर में पसरी उदासी देखकर
लोग अपने आप समझ जाएगं े
कक घर का मन सनू ा-सनू ा क्यों है
जब भी कोई परदेश कनकलता है
घर का महुँु ऐसे ही लटक जाता है!
रा ै ो
--रात है तो
एक आस है
कक टूटेंगी
उदासी की सारी लकीरें
चेहरा
मसु कुराएगा
रात है तो
कवश्वास है
कक कचंता की रे खाएं
सो जाएगं ी
और माथा
कसलवटों से
मक्त
ु हो जाएगा
रात ही
बेसरु े गीतों से
बचाने का
लबादा ओढा देती हैं
Vol.2, issue 14, April 2016.
जो कजदं गी गाती हैं
हमेशा
जनकृति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine
ISSN 2454-2725
(बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की 125वीं जयंिी पर समतपिि अंक)
कमरचई में जब िूल लगती हैं
मन आस में हरा हो जाता है
कदन जद्दोजेहद का नाम है
मौसम प झड़ का मौसम ै
---
ममरचई
---
िूलों से बने इत्र की गमक के बारे में
पता है
कभी कोई बन-ठनकर कबलकुल सटकर गजु रता है तो
मन करता है कक
कठठक कर खबू सारी हवा भर लंू िे िडे में
लेककन िूल पसंद हैं
नहीं जानता हुँ
आुँगन में
जगह-जगह कमरचई के पौधे रोपे हए हैं
इसकी हररयल तीखी गधं
मझु े मदहोश कर देती है
पोटली में रखी रोकटयां
जब अपनी गरमा गरम गधं तोड देती हैं
भनू ी कमरचई के सहारे
मैं तब भी दल
ु क चलता हुँ
रोकटयाुँ ऐठं जाती हैं दोपहर तक
तब भी
कमरचई उन्हें एक कदव्य स्वाद में ढाल देती हैं
कुदाल उतनी ही तेजी से
जमीन को पचु कारती हैं
दोपहर बाद भी
कमरचई का स्वाद
जीभ में घल
ु ा रहता है शाम हो जाने के बाद भी
वर्ष 2, अंक 14, अप्रैल 2016.
ककसी ने कहा
कक यह मौसम पतझड का मौसम है
मैंने इसे एक खश
ु खबरी की तरह सनु ा
ककसी ने कुछ कहा कक नहीं
मैं नहीं जानता
मगर मैंने सनु ा
कक अब वृक्ष पहले से अकधक हरे हो जाएगं े
वह िूलों से लद जाएगा
कचकडयों की आश बढ जाएगी
वे देर तक गीत गाएगं ी
बस कुछ कदनों की बात है
मौसम इतना खश
ु गवार हो जाएगा
कक चेहरे भी िूल की तरह कखल उठें गे
मैंने यही सनु ा
कक यह मौसम एक उम्मीद की तरह आया है
सपं कक
ग्राम व पोस्ट- लालपरु
वाया- सरु पत गजं
कजला- सपु ौल (कबहार)
कपन-852 137
िोन-9473050546, 9546906392
Vol.2, issue 14, April 2016.
वर्ष 2, अंक 14, अप्रैल 2016.