Jankriti International Magazine vol1, issue 14, April 2016 | Page 27

जनकृति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की 125वीं जयंिी पर समतपिि अंक) बाबा भीम .................. लेते हैं जन्म सभी मरते भी हैं सभी कुदरत की इस ननयनत में उलझे रहते कई परंतु जीने और मरने में फकक होते हैं कई मर कर भी कोई हो जाता है अमर बन जाता है जीवन का जीवंत पयाकय बाबा भीम! तमु ऐसे ही थे, जन्म तम्ु हारा असाधारण था पैदा हुए खदु गल ु ामी में गए नदखा मनु ि मागक भावी पीऩियों को, नकया था संघषक तुमने ब्राह्मणवाद और सामतं वाद के प्रपच ं ों से, लडे भी इनसे आजीवन तमु । हे मनु िदतू ! समता के लौह परुु ष एकता के प्रतीक ज्ञान के भडं ार थे तमु अनितीय । जारी है लडाई तम्ु हारी आज भी हो रहा है उदय तम्ु हारे सपनों का राष्ट्र धीरे -धीरे , बह रही है बदलाव की बयार धीरे - धीरे , धीरे -धीरे का बहाव और कटाव होता है अटल, गहरा, स्थाई, अटल बदलाव के जीवंत महानायक थे तमु , हो तमु , रहोगे तमु , बाबा भीम । Vol.2, issue 14, April 2016. जड़ें ----है एक दनिणी ध्रवु और एक उत्तरी मनष्ट्ु य, समाज, बंटे और बंटे व्यनित्व इनमें दो ध्रवु ों पर हम भी लेनकन हमारे शब्द, अथक, स्वर हैं एक है न यह भ्रम न कपोल कल्पना है यह वह नवश्वास अतं है नहीं नजसका, चेतना मेरी शब्द तम्ु हारे चेतना तम्ु हारी शब्द मेरे हैं जडु े एक तार से जडें नजसकी जमीन में लेनकन देखते हम आसमां में ! वर्ष 2, अंक 14, अप्रैल 2016. जनकृति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की 125वीं जयंिी पर समतपिि अंक) ---------------वो आई और साफ ककया जठू े बर्तन,गदं ा आगं न पर साफ ना कर सकी अपनी मालककन का मन। थक कर पसर गयी उसी आगं न में एक कगलास पानी की उम्मीद में मालककन बडी अच्छी थी एक ग्लास कनकाला आरओ की र्रफ देखा,और नल से पानी लेकर बाई को दे कदया बाई खश ु होकर चली गयी मालककन ने बच्चों को बल ु ाया ग्लास ना छूने की कहदायर् दी और ककचन के कोने में रख कदया। मालककन बहुर् अच्छी है र्भी र्ो कोने में एक कप, प्लेट भी नजर आरहे हैं। काम वाली कफर आई सब साफ ककया उसका धल ु ा शद्ध ु , उसका पोछा शद्ध ु पर स्वयं है सकदयों से अशद्ध ु वो कहर्ी है ऐसा नहीं है मालककन बहुर् अच्छी है पर कोने में रखे कप,प्लेट कहर्े हैं कक, सालों पहले ऐसा ही था और आज भी ऐसा ही है। वो कल कफर आएगी सब साफ करे गी जठू े बर्तन,गदं ा आगं न पर नहीं साफ कर पाएगी अपनी मालककन का मन।। Vol.2, issue 14, April 2016. ---------------वो पाथ रही है..... कुछ उम्मीदें....... कुछ आशाएँ...... गमी की दोपहर में ईटं भट्ठे पर बैठी गीली कमट्टी को साँचे में भर के कबना रुके ,लगार्र.. वो पाथ रही है ... एक ड्राईगरुम ं एक बेडरुम एक ककचन एक स्टडीरुम र्म्ु हारे ब्रान्डेड सोफे ,टीवी, बेड और वाडतरोब के कलए। वो पाथ रही है... टू बीएचके थ्री बीएचके बगं लो और कवलाज कक, उन में रह सके वो कनजीव खकु शयाँ जो र्मु ने खरीदीं हैं खदु की कीमर् पर, र्म्ु हे कहाँ फुसतर् कक रहो इनमें र्मु र्ो देर रार् आर्े हो और सब ु ह की रौशनी के साथ कफर कनकल पडर्े हो कुछ और खकु शयों को खरीदने की जद्दोजहद में। वो पाथ रही है.... मकन्दर की सीक़ियाँ मकस़्िद की कमनारें स्कूल के कमरे वर्ष 2, अंक 14, अप्रैल 2016.