Jankriti International Magazine vol1, issue 14, April 2016 | Page 22
जनकृति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine
ISSN 2454-2725
(बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की 125वीं जयंिी पर समतपिि अंक)
जनकृति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine
ISSN 2454-2725
1-
(बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की 125वीं जयंिी पर समतपिि अंक)
1. मटका
मझु को भरने की
कोशिि करती
नन्हीं पशनहाररन
यौवन की खमु ार आने पर
घघुंु ट के पीछे छुप जाएगी
रोज मीलों दरू से
मझु को भरकर लाएगी
लेशकन मैं नहीं रीतुंगु ा
रोज तड़के वो भरे गी मझु े
उसके शसर पर
ताज बन सज जाउुंगा
कुछ ज्यादा ही छलकुंु गा
खि
ु ी से जब उचक कर
उसकी पतली कमर पर
लद जाउगाुं
मझु को भरने की
कोशिि में
पशनहाररन का यौवन
चाहे झरु रि यों में
क्यों न बदल जाए
पर मैं तशनक न मटकुंु गा
खाली ही रहगुं ा
झल
ु स कर गेंहआ रुंग
इक शदन मेरे रुंग में
शमल जाएगा
वो उम्र भर मझु को
भरती रहेगी और
उम्र भर मझु से
उसकी नस-नस का
लहू ररक्त
होता जाएगा
4-
खदु कुशी करने की
चंद्रमा उगते हैं
वकहद
जब
चार वजहें हैं-
मस्ु काती हैं
किग्री बेमतलब गई
तम्ु हारी आँखें ।।
महबबू ने दामन
..............
कझटका
आकममयों ने कधककारा
22. जल का छींटा
बरसो शवरह की
धौकनीं से
धीरे धीरे िुंु क
शजस धरती को
मरुस्थली शकया
तम्ु हारे मौन से झरती
बुंदु ो के झरु मटु से
क्या सचमचु
पसीज गई धरा
अथवा ये मौन के वल
जल का छींटा भर था
अतंमन को
झल
ु साने के शलए।
मौसमों
और
बताओ जरा
वक्त ने दो हमथड़ मारा
ककसको याद करके
..................
रो देते हैं
5-
संदु ररयों
बादल
मत देखो खाबों में
................
रे शमी राजकुमार....
देखती हो
3-
तपती धपू , या बरखा होगी
पड़ेगा चाहे सीत-ओस
पत्थर कुंकड़ पैरो के छाले
चैंशधयाई आख
ुं ों में उसकी
शिर भी रहेंगे
अठखेलते सपने शनराले
Vol.2, issue 14, April 2016.
नेपथ्य में
नकदयों.....
तो देखो.....
कयँू पक
ु ारती रहती हो
पसीनों से सने
अमलताश के रंगों को
ककसान..
वे नहीं सनु ेंगे
कजसकी महक
नहीं सनु ेंगे
हवा में
नहीं.....
वल्लाह.....!
सनु ेंग।े ।
वल्लाह.....!
करती है।।
वर्ष 2, अंक 14, अप्रैल 2016.
Vol.2, issue 14, April 2016.
वर्ष 2, अंक 14, अप्रैल 2016.