जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका / Jankriti International Magazine( बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की 125वीं जयंिी पर समतपिि अंक)
ISSN 2454-2725
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिक
( बाबा साहब डॉ. भीमराव
आठ उांगकलयों में सोलह अांगूठी गले में लोहे की बीस मालाएाँ और हथेली में फाँ साए एक हथौडी कभी भी कहीं भी नज़र आ जाता था
कजसे देख भय से भौंकते थे कु त्ते लोगों के पास सुई नहीं होती थी कसलने के कलए अपनी फिी हुई आाँख जो पागलपन के तमाम लषितणों के बाद भी पागल नहीं था जो मुस्करा कर बच्चों के बीच बााँिता था कबस्कु ि बूढी मकहलाओां के हाथ से ले लेता था सामान और घर तक पहुाँचा देता था और इस भलमनसाहत के बावजूद उनमें एक डर छोड आता था
वह ककतना भला था इसके ज़्यादा ककस्से नहीं कमलते वह ककतना बुरा था इसका कोई ककस्सा नहीं कमलता जबकक वह हर सडक पर कमल जाता था
वह कौन-सा ग्रह था जो उसकी ओर पीठ ककए लिका था अनांत में कजसे मनाने के कलए ककया उसने इतना कसांगार वह कौन-सी दीवार में गाडना चाहता था कील पृथ्वी के ककस कहस्से की करनी थी मरम्मत ककन दरवाज़ों को तोड डालना था जो हर वक़्त हाथ में हथौडी थामे चलता था
कजसके घर का ककसी को नहीं था पता पररवार नाते-ररश्तेदार का कजसकी लाश आठ घांिे तक पडी रही चौक पर
रात उसी हथौडी से फोडा गया उसका कसर
जो हर वक़्त रहती थी उसके हाथ में
जो अपनी ही खामोशी से उठता है हर बार कपडे झाडकर कफर चल देता है
उसके तलवों में चुभता है इकतहास का कााँिा उसके खून में कदखती है खो चुकी एक नदी उसकी आांखों में आया है अपनी मजी से आने वाली बाररश का पानी उसके कां धे पर लदा है कभी न कदखने वाला बोझ उसके लोहे में कपिे होने का आकार उसके पग्गड के नीचे है सोचने वाला कदमाग़ सोच-सोचकर दुखी होने वाला
वह कब से चल रहा है चलता ही जा रहा है सभ् यता के इस खडांजे पर उसे करना होगा ककतना लांबा सणर यह जताने के कलए कक वह मनुष्य ही है.....................................................................
तब!!!!!!!!!
कर्तव्य घुट्टी में पिलाए गये दौड रहे हैं धमपनयों में आज भी रक्त बनकर अपधकार नामालूम से सपदयों की गर्त में खोये बनार्े रहे मुझे इपर्हास मेरी अपतर्त्वहीनर्ा अंपकर् है शर्ापददयों के िटल िर
धमत के ठेके दारों ने बनाया देवदासी समाज ने वैश्या कहााँ रह िायी स्त्री भी बना दी गयी के वल भोग्या मात्र
आह!!!
रचर्े रहे िाखण्ड पजर्ना मुझे कहा गया दुगात देवी चंडी सवतशपक्तशाली उर्ना ही घसीटा गया कहकर अबला प ंदा जलाया गया चौराहे िर लटका दी नग्न देह पनरीह बेबस लाचार बनाकर
मेरा था िररवार मेरा था समाज
मेरा था देश अिना
Vol. 2, issue 14, April 2016. वर्ष 2, अंक 14, अप्रैल 2016. Vol. 2, issue 14, April 2016.