जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका / Jankriti International Magazine( बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की 125वीं जयंिी पर समतपिि अंक)
और दायरे हैं । ऄपने दायरे से बाहर जाने िािे के लिए दोनों के पास िौलकक ऄिौलकक डर हैं, दंड देने की शलि है । दोनों के पास ऄपने ऄपने ऄंधलिश्वास हैं । दोनों के पास यह दािा है लक अपकी जरूरतों और िौलकक ऄिौलकक व्यलित्ि की समझ ईन्हें अप से ज्यादा है । और ईनके पास ऄपनी बात मनिाने के लिए ऄनेक संस्थाएाँ हैं । लजसे हम समाज कहते हैं िह कइ बार धमज के एक खतरनाक एजेंट के रूप में भी काम करता लदखता है । राज्यसत्ता के एजेंट ज्यादा मूतज हैं ।
लिकास एक और डरािनी चीज है । लजसका नाम सुनकर काँ पकाँ पी होती है । क्या यह ऄनायास ही हो गया है लक लिकास शब्द अज ऄपने लििोम का ऄथज देने िगा है । लकसका लिकास और लकस कीमत पर... क्या लिकास का िही माडि और भी शालतर रूप में अज भी नहीं चि रहा है जो यूरोप ने कभी बेहद कामयाबी से ईत्तर और दलक्षण ऄमेररका में चिाया । या यूरोपीय देशों ने ऄपने ईपलनिेशों में लकया । क्या िही हमारी सरकारें हमारे ऄपने ही देश में हमारे ऄपने ही िोगों के साथ नहीं कर रही हैं! क्या यह एक भयानक ऄश्लीि दृश्य नहीं है लक हमारा िोकतांलत्रक तरीके से चुना गया और ऄपने को चाकर कहने िािा प्रधानमंत्री लकसी ऐसे पू ाँजी के दैत्य से ऄपनी पीठ सहििाए जो खरबों रुपए ऄपने एक लनजी मकान‘ एंटीलिया’ में खचज कर दे । एक ऐसे देश में लजसकी बड़ी अबादी भुखमरी, कु पोषण, मिेररया और ऄलशक्षा से ग्रस्त हो । पर यही हमारा लिकास का मॉडि है ।
मेरे लिए लनजता और सामालजकता दोनों बहुत जरूरी चीजें हैं । पर मैं लजस समाज से अता ह ाँ ईसमें लनजता के लिए ऄिकाश न के बराबर है । एक बेहद स्थूि ईदाहरण का सहारा िू ाँ तो मान िीलजए लक अप डायरी लिखते हैं । तो आस डायरी में लिखी गइ अपकी लनजी बातें अपका भाइ-बहन-मााँ-लपता-दोस्त-पलत- पत्नी-प्रेमी-प्रेलमका कोइ भी ऄलधकारपूिजक पढ़ सकता है और ईसे आसमें कु छ भी गित या ऄनैलतक नहीं िगता । अपको लकसके साथ जीना या मरना है यह भी अपके माता-लपता-ररश्तेदार या सामालजक दबाि तय करते हैं । कहने का मतिब यह लक मैं सामालजकता / सामूलहकता का नकारात्मक रूप ज्यादा देखते हुए बड़ा हुअ ह । ाँ ऐसे में लनजता की बात करता हुअ या लनजता के लिए संघषज करता हुअ कोइ व्यलि मेरे लिए प्रलतरोध की िड़ाइ िड़ता हुअ व्यलि है । यह िड़ाइ लजतनी लनजी है ईतनी ही सामालजक भी है ।
पर बहुत कमाि का समय है यह । जो चीजें अजादी के नारे के साथ अइ ंईन्होंने हमें सबसे ऄलधक गुिाम बनाया । मोबाआि या अधार काडज जैसी चीजें आस बात के कु छ स्थूि ईदाहरण भर हैं । आन चीजों ने हम तक सत्ता के शैतानी पंजे की पहुाँच को बेहद असान बना लदया । रफ्तार का कायदे से मूल्यांकन ऄभी होना बाकी है । पर यह ऄनायास नहीं है लक हमारे समय का एक बड़ा िेखक जब दीिार में रहने िािी लखड़की खोिता है तो िहााँ तेजरफ्तार कारें और मोटरसाआलकिें नहीं हाथी और साआलकि होते हैं । प्रकृ लत लखड़की से अकर िि दे जाती है । पानी आतना साि होता है लक नदी की गहराइ में लगरा लसक्का एकदम साि लदखाइ देता है । िोग एकदम सीधे और सरि हैं । कहा गया लक यह एक काल्पलनक दुलनया है । कौन नहीं जानता लक यह एक काल्पलनक दुलनया है । कथाकार नहीं कल्पना करेगा तो क्या अिोचक करेगा? पर सिाि यह है लक यह काल्पलनक दुलनया क्या कोइ प्रलतरोध नहीं रचती? क्या प्रलतरोध का एकमात्र तरीका लकसी प्रचलित
ISSN 2454-2725
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पत
( बाबा साहब डॉ. भीम
िामपंथीय पररणलत तक पहुाँचना ही है? नक्सििालदयों की तरह हलथयार ईठाए घूम
झूठे लकस्म का अशािाद बहुत ि नष्ट कर लदया था । ईनकी रचनाओं में अश ईनकी मुलश्कि यह भी थी लक जहााँ सचम लक जब अप घटनाओं को एक िैलश्वक स डुबलकयााँ िगाते हैं और साथ में स्मृलत अशािाद अपके असपास भी नहीं िटक
मैंने कहीं पढ़ा था लक‘ कल्पना’ करना पसंद करूाँ गा । स्मृलत मेरे लिए िह भीतर छु पकर बैठी हुइ है । लजसे स्तालनस्ि के स्िप्न यानी कल्पना से मैंने एक सचेत दोनों के ऄभाि में रचना संभि ही नहीं ह जा सकता है लक स्मृलतयााँ मतिब ईत्पीड़ कल्पना का मतिब ईड़ान, ईत्पीड़न के स चीज है जो स्मृलतयों के साथ अपके ररश्त से बचे रहते हैं । मुझे िगता है लक स्मृलत ऄिलस्थलत ही रचना को मुकम्मि बनाने ि
रचनाशीिता के ऄपने हलथयार अजमाने की जरूरत पड़ती है । पुराने हलथ चुके हलथयारों को त्यागना भी पड़ता है । ईससे आतर कइ बार िक्ष्य का भी मामिा संदभज में बेहद ऄजूबे लकस्म का है, लहंद पशुओं को हााँकने के काम में िाता है । बह
भाषा और यथाथज का ररश्ता बेह यथाथजिादी रचनाएाँ पढ़ते हुए सालहत्य म िोककथाएाँ या अधुलनकता( लजसने हम के पहिे का सालहत्य पढ़ता ह ाँ तो िहााँ यथ पड़ती है । तो जो अज की यथाथजिादी