Jankriti International Magazine vol1, issue 14, April 2016 | Page 185

जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका / Jankriti International Magazine( बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की 125वीं जयंिी पर समतपिि अंक)
यह समय और लेखक होने का मतलब मनोज कु मार पाांडेय
जब मैंने लिखना शुरू लकया तो एक िड़की थी लजसे मैं प्रभालित करना चाहता था । शुरुअत में मैंने लिल्मी गीतों की तजज पर कु छ गीत लिखे थे या बदनाम शायररयों की तजज पर कु छ शायरी की थी लजन्हें मेरे लपता ने मेरे सामने ही जिा लदया था और मेरी जी भर के िानत मिानत की थी । मेरे कान ईमेठे थे । यह लिखने की िजह से सत्ता द्वारा हालसि पहिा दंड था । और इनाम था थोड़े लदन के लिए ही सही पर ईस िड़की का प्यार जो मुझे मेरी आस रचनात्मकता की िजह से हालसि हुअ था । क्या तब भी मेरे मन में रचनात्मकता की कोइ धारणा रही होगी? और क्या यह ईस धारणा से बहुत ज्यादा लभन्न रही होगी लजसके तहत ऄलिििैिा की शहरजाद ने एक पूिाजग्रही हत्यारे शासक को कहालनयााँ सुनाना शुरू लकया होगा और लबना रुके हजार रातों तक सुनाती ही चिी गइ होगी ।
यह बातचीत की बेहद लनजी शुरुअत है । पर मुझे िगता है लक आस तरह से मैं ऄपनी बात ज्यादा तरतीब से रख सकता ह । ाँ मैं डायरी लिखा करता था । जालहर है लक िह डायरी पर नहीं लकसी कॉपी पर लिखी जाती थी । तो मेरा गीत-गोलिंद जब जिा लदया गया तो मैं सतकज हो गया । मैंने देिनागरी िणजमािा के स्िरों और व्यंजनों की जगह को एक लनलित क्रम में ईिट पुिट लदया । और थोड़े ही लदनों में मैं ऄपनी आस गुप्त भाषा में लसद्धहस्त हो गया । आस हद तक लक एक बार लिर यह डायरी मेरे लपता को लमिी और िह कइ लदनों तक ईससे जूझते रहे । ईनके साथी ऄध्यापक भी जूझते रहे । जालहर है लक मुझसे भी पूछताछ की गइ । मुझे नहीं बताना था, नहीं बताया और िे कभी नहीं जान पाए लक मैंने ईस डायरी में क्या लिखा था । क्या मेरे आस बेहद लनजी संघषज का जो मैंने ऄपनी लनजता के लिए रचा था अज कोइ मतिब नहीं है? िणजमािा में ऄपनी तरह से लकए गए हेरिे र को मैं अज एक प्रभािी रचनात्मक लडिाआस क्यों न मानू ाँ ।
मेरा सालहत्य से ररश्ता बहुत देर से बना । यह िही समय था जब पहिे तेरह महीने लिर पूरे पााँच साि के लिए भारतीय जनता पाटी सत्ता में अइ थी । आसके पहिे जब िह तेरह लदन के लिए सत्ता में अइ थी तब मेरा बीए का अलखरी साि था और मैं तब तक राजनीलतक या सालहलत्यक चेतना से पूरी तरह शून्य था । आसके और पहिे जब बानबे में ढााँचा लगरा था तब मैं ऄपनी नलनहाि में रहकर पढ़ता था । ईस समय मेरे असपास जो िोग थे ईन्होंने लमठाइ बााँटी थी । नाचे थे, पटाखे िोड़े गए थे । ऄबीर गुिाि ईड़ाया गया था । मैंने भी यही सब लकया था । मैं ईस समय दसिीं का लिद्याथी था । तब मुझे पता भी नहीं था लक मैं कभी लकस्से कहालनयााँ लिखू ाँगा और लिद्वानों के बीच खड़ा होकर ऄपनी बात रखू ाँगा ।
मैं गााँि से अया ह । ाँ गााँि के बारे में लिखने का सबसे असान तरीका यह है लक अप ऄपनी भाषा में एक गाँिइ टोन िे अएाँ और ऄपने पात्रों के नाम िु ििा गेंदिा िु लिया धुलिया टाआप के रखें और एक जमींदार या सिणज शोषक हो तथा कु छ दूसरे ईसके सताए हुए पात्र हों जो पूरी कहानी में सताए जाएाँ और अलखर में कोइ ईम्मीद या ईजािे की एक नकिी लकरण लदखा दी जाय । या सूरज पूरब पलिम जहााँ कहीं भी हो िहीं ईग अए । एक जमाने में ऐसी बहुत कहालनयााँ लिखी गइ ं और पाठकों के नाम पर, खासतौर पर िामपंथी संगठनों से जुड़े मुदाजर अिोचकों ने ईन्हें खूब खूब उपर चढ़ाया । बहुतेरे अज भी यही कर रहे हैं ।
ISSN 2454-2725
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पत
( बाबा साहब डॉ. भीम
मुझे ऐसा कु छ पढ़ते हुए गुस्सा ऄपमालनत कर रहा है । िह ईसे जान-बूझक तक नहीं रख सकता िह ईनके प्रलत लकतन बाद और बाद में टाटा स्काइ या लडश टीि एकदम कोनों ऄाँतरों तक भी संभि हो च नाम पहुाँच गया है । एक हद तक ही सही ए रूप बहुत हद तक बदि लदया है । ईसने प्र मैगसेसे से िेकर नोबेि तक चेतना को सबको समझने के लिए अपको बहुत पढ़
मैं बचपन से ही बहुत ही डरपोक सामने कााँपता था । बाद में स्कू ि गया तो िड़कों से दोस्ती की तालक बदमाश िड़ आलतहास भूगोि पढ़ा तो जाना लक ऄरे य िोग या देश बहुत ताकतिर िगे जो दोनों एक था लजसमें मैं जन्मा था । िही भारत अ िहािोट हो गया है । आस लस्थलत को एक लस्थलत है? ऐसी बहुत सारी लस्थलतयााँ हैं ज
अलखर लकन चीजों से डरता ह ाँ िेखक के रूप में मेरा डर दोनों एक ही ह बहुत झगड़ा है । और मैं चाहता ह ाँ लक य ईनमें से कु छ को पढ़ते हुए और थोड़ा समझते हुए यह जाना लक सालहत्य एक म के साथ ररश्ते को, मनुष्य के प्रकृ लत के स कोलशश का नाम है । पर यह कोलशश कोइ
धमज, राज्यसत्ता और प्रकृ लत मेरे चिना है और लभड़ना भी है । आनमें से पहि सबसे दारुण दुख आन्हीं दोनों ने लदए हैं । ख िोकतांलत्रक तरीके से चुनी हुइ सरकार म सांप्रदालयकता मेरे लिए धमज का एक प्रोडक् तब भी रहेगी जब लक मान िीलजए लक दुल सत्ता आसे एक मोहरे के रूप में आस्तेमाि खतरनाक होगी सांप्रदालयकता का तांडि
दोनों ही सत्ताएाँ हमारी अजादी का िास्ता देकर करती है धमज िही काम