जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका / Jankriti International Magazine( बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की 125वीं जयंिी पर समतपिि अंक)
बािजूद) यथालस्थलतिाद में ही जाकर गकज हो जाता है । क्योंलक िह कल्पना के साथ कोइ रचनात्मक ररश्ता कायम नहीं कर पाता ।
यहााँ से शुरू करूाँ तो मुझे िगता है लक अधुलनकता ने भाषा और यथाथज के संबंध को गड़बड़ा लदया है । ऄभी का यथाथज आतना िं तासी भरा और बहुरूपी है लक ईसको व्यि करने का एक असान रास्ता तो िही है, जो अज की आिेक्रालनक मीलडया कर रही है, जहााँ सब कु छ एक ईत्तेजक‘ स्टोरी’ है पर आसी के साथ बेहद क्षलणक भी है । दूसरा रास्ता संघषज भरा है । आसमें यथाथज का पीछा करना पड़ता है चुपचाप, देर और दूर तक, ईसकी मायािी ऐयाररयों के जाि को तोड़ना पड़ता है । आस बीच भाषा की खोज भी चुपचाप चिती रहती है । क्योंलक भाषा एक अइने की तरह बताजि करती है लजसमें ईस बहुरूपी यथाथज की परछाइ ंपड़ती रहती है और ईसे बदिती रहती है । दूसरे शब्दों में कहें तो यथाथज की खोज और भाषा की खोज दोनों ऄिग ऄिग न होकर एक ही हैं मेरे लिए ।
मैं यथाथजिाद से भागता ह ाँ पर अधुलनकताजलनत तमाम दूसरी लिकृ लतयों की तरह िह मेरे भीतर आस हद तक धाँसा हुअ है लक कइ बार थोड़ा बहुत कामयाब हो पाता ह ाँ तो ज्यादातर बार लिर-लिर से लबछिकर
ईसी में लगर पड़ता ह ाँ । यह भाषा से मेरी लनजी िड़ाइ है ।
समय बहुत भयानक है । पर यह सभी पररितजनकारी शलियों के आम्तहान का भी समय है । यह ईन्हें भी कु छ रचने के लिए प्रेररत करने िािा समय है जो ऄपनी किम लकसी संग्रहािय को दान कर चुके हैं और ईन्हें भी लजन्होंने ऄभी तक किम पकड़ने की तमीज भी नहीं सीखी । क्योंलक आतना जानने समझने के लिए न बहुत किाकारी की जरूरत है न बौलद्धकता की, लक यह समय ईनके पक्ष में खड़े होने का है जो लिकास के प्रोजेक्ट के लशकार हैं, जो सांप्रदालयकता के प्रोजेक्ट के लशकार हैं, जो राज्यसत्ता की ऄबालधत रृदयहीन लनरंकु शता के लशकार हैं । जालहर है लक ऐसा कहते हुए मेरे मन में किाकार बौलद्धकों के प्रलत कोइ ऄसम्मान का भाि नहीं हैं न ही मैं ईन्हें खाया ऄघाया बुलद्धजीिी कहने का दुस्साहस कर सकता ह ाँ पर यह समय जरूर ईन्हें जााँचने िािा है ।
लकताबों को प्रलतबंलधत करने के लिए तोड़िोड़ शुरू हो गइ है । िे लकसी एक लकताब के बहाने पूरा का पूरा पुस्तकािय जिा देंगे । जल्दी ही यह तोड़िोड़ अपके साथ भी शुरू हो सकती है । अपके हाथ पैर तोड़े जा सकते हैं । अपके घर के सामने प्रदशजन लकया जा सकता है जैसा ऄभी ऄनंतमूलतज के घर के सामने लकया गया । अपको देशलनकािा लमि सकता है । न्गुगी िा थ्योंगो की तरह अपको जेि भेजा जा सकता है । पाश, मानबहादुर लसंह, िोकाज या के न सारो िीिा की तरह अपकी हत्या हो सकती है । अपको ऄपने लिखे के एक एक शब्द की कीमत चुकानी पड़ सकती है । सिाि यह है लक क्या हम आसके लिए तैयार हैं?
सिाि यह भी है लक ऄभी बातचीत में जो भी चीजें अइ हैं ईनका सामना लकस तरह से लकया जाय । एक िेखक या किाकार के रूप में जो लक ऄपनी जनता का सांस्कृ लतक प्रलतलनलध दािा होने करता है । ऐसे समय में लहंदी के एक ऄदने से िेखक के रूप में मैं लकसका प्रलतलनलध ह ाँ? लजस भाषा में मैं लिखता ह ाँ ईस पर भी तमाम अरोप हैं । कोइ ईसे ऄपनी सहभाषाओं की हत्यारी कहता है तो कोइ ईसका एक सिणज और लपतृसत्तात्मक चररत्र होने की बात करता है । हम लजस समाज में रहते अए हैं ईसका ऄसर तो हमारी भाषा पर होगा ही... और कोइ भी बन रहा समाज ऐसी चीजों से लभड़ता भी है पर यह सब सिाि परम माता ऄंग्रेजी
ISSN 2454-2725
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पत
( बाबा साहब डॉ. भीम
की बात करते हुए नहीं ईठाए जाते । ऄ दुःस्िप्न में बदि देती है लिर भी िह माड भी सत्ता की भाषा नहीं रही िह दलक्षणपंथ खेि में कइ ऐसे लहंदी िेखक भी शालमि स्थानीय हो पाना ईनके लिए ऄसंभि होत
अधुलनकता ने हमें बहुत सी ऄच् को हीन स्िीकार करना भी लसखाया । लबन में भी स्िीकार करना लसखाया । शमज करन लचंतन में जो बहुत कु छ हमारी ताकत हो शमज बना । तो एक िेखक के रूप में िड़न भी ।
मेरी मुलश्कि यह है लक एक ऐस यह भी लिडंबना ही है लक यह बात ऄलभ ही थोड़े से िोग हैं जो अपको पढ़ते हैं औ िड़ते हैं, लशकायत करते हैं, अपसे संिा कािम लिखा करता था । एक हफ्ते मैंने र पंिह बीस िोन अते थे ईस हफ्ते पचास यहााँ ईस तरह की िड़ाआयों की बात नह पुरस्कार की तरह हैं । िे अपकी सििता
तो आतने कम पाठकों के साथ अ जाता है । एक िेखक के लिए यह गायब हो जाना चाहता ह ाँ पर लकसी और तर िोककथाएाँ लिखना है । लजसकी पहुाँच ईन मैं चाहता ह ाँ लक मेरी कहालनयााँ ईनकी आत तोड़िोड़ कर सकें । आस तरह लक ईनका ऄपना सुख दुख भी जोड़ सकें ईसमें ऄप िगने िािा सपना है पर मैं रोज देखता ह ाँ
संगमन २०( मंडी)
मनोज कु मार पाांडेय जन्म: 7 ऄक्टूबर, 1977, लससिााँ, आिाह