Jankriti International Magazine vol1, issue 14, April 2016 | Page 170

जनकृ ति ऄंिरराष्ट्रीय पतिका / Jankriti International Magazine( बाबा साहब डॉ. भीमराव ऄम्बेडकर की 125वीं जयंिी पर समतपिि ऄंक)
ISSN 2454-2725
जनकृ ति ऄंिरराष्ट्रीय पतिक
( बाबा साहब डॉ. भीमराव
आन्द्रलोक, क्षिष्णुलोक, क्षििलोक, ब्रह्मलोक.... िुमेरु-कै लाि.. पामीर – अक्षद पिथतीय प्रदेिों में एिं स्िय्नन्भाि मनु के पुत्र- पौत्रों अवद द्रारा, कािी, ऄयोध्या अक्षद महान नगर अक्षद िे पृथ्िी को बसाया जा चुका था | क्षिश्व भर में क्षिक्षिध िंस्कृ क्षतयााँ नाग, दानि, गन्धिि, ऄसुर अवद बस चुकी थीं | तहमालय के ितक्षण का समस्ि प्रिेश द्रतवड प्रदेश कहलािा था.. जो सुिूर ईिर िक व्यापार हेिु अया-जाया करिे थे |
आस प्रकार.... समस्त सुमेरु या जम्बू द्रीप देव-सभ्यता का प्रदेि था | यहीं स्िगि में गंगा अवद नवदयााँ बहती थीं,. यहीं ब्रह्मा-विष्णु ि विि, आंद्र अवद के देिलोक थे... विि का कै लाि, कश्यप का के वश्पयन सागर, स्िगि, आन्द्रलोक अवद.. यहीं थे जो ऄवत ईन्नत सभ्यता थी –-- जीि सृवि के सृजनकताि प्रथम मनु स्वयंभाव मनु व कश्यप की सभी संतानें.. भाइ-भाइ होने पर भी स्िभाि ि अचरण में वभन्न थे | विविध मानि एिं ऄसुर अवद मानिेतर जावतया साथ साथ ही वनिास करती थीं | भारतीय भूखंड में ईत्पन्न ि विकवसत मानि स्िगि – वििलोक कै लाि ऄवद अया जाया करते थे... देिों से सहवस्थवत थी... जबवक ऄमेररकी भूखंड( पाताल लोक) ि ऄन्य सुदूर एविया – ऄफ्रीका के ऄसुर अवद मानिेतर जावतयों को ऄपने क्रू र कृ त्यों के कारण ऄधमी माना जाता था | युद्ध होते रहते थे | तशव जो स्वयं वनांचल सभ्यिा के हामी एवं मूल रूप से ितक्षणी भारिीय प्रायद्वीपीय भाग के िेविा थे तकन्िु मानवों िथा भारिीय एकीकरण के महान समथिक के रूप में ब्रह्मा-तवष्ट्णु-आंद्र अति ईिरी भाग के िेवों के साथ कायि करने हेिु कै लाश पर बस गए एिं दि पुत्री सती.. तत्पिात वहमिान की पुत्री पाििती से वििाह वकया | िे सभी जीि ि प्रावणयों – मानिों अवद के वलए समभाि रहते थे ऄतः देिावधदेि कहलाये | यहााँ की भार्ा देव भाषा – अतद- संस्कृ त-देव संस्कृ त थी जो.. अवदिासी, िनान्चलीय, स्थानीय कबीलाइ ि दविण भारतीय जन जावतयों की भार्ा अवद प्राचीन भारतीय भार्ाओं से संस्काररत होकर बनी थी |
अधुवनक भार्ा विज्ञावनयों का कथन है...‘ विश्व भर में भार्ाओं के अश् चयिजनक साम् य से यह वनष् कर्ि वनकलता है वक अयि तकसी एक स् थान, जैसे भारि, से पतश्चमी एतशया और यूरोप में फै ले । संस् कृ त संसार की प्राचीनतम और समृद्धतम भार्ा है । हर प्रकार के सावहत् य का, वजनमें िेद-पुराण प्रमुख हैं, बहुत बड़ा भंडार ईसके पास है और है िब् द बनाने तथा भाि ्‍ यक् त करने का सरल एिं ऄनुपम ढंग तथा विश् ि भार्ा बनने की िमता । ऐसी दशा में संस् कृ त यतद अयष-सभ् यता की पूवष की मूल प्रचतलत भाषा रही हो तो अश्चयष क्या |‘ यही तथाकवथत अयि
सभ्यता पूिि की मूल प्रचवलत भार्ा देि-संस्कृ वत.. देि-लोक की भार्ा--अवद संस्कृ त थी वजसे देि-िाणी कहा जाता है | वेदों की रचना आसी िेव भाषा में एवं आसी िेवभूतम पर हुइ वजन्हें विि ने चार विभागों में वकया, वजनके ऄििेर् लेकर प्रलयोपरांत मानिों की प्रथम-पीढी िैिस्ित मनु के नेतृत्ि में वतब्बत से भारतीय िेत्रों में ईतरी |
ऄथाित भारिीय ितक्षण प्रायद्वीप पर, वहमालय से पूिि जब ईस समय न गंगा-वसन्धु का मैदान था, न ईत्तर भारतीय िेत्र... आनके स्थान पर टेतथस सागर का तकनारा था जो बालू व खारे पानी का मैदान था... ईस समय भी भारत में अतद-मानव रहता था जो गोंडिाना लेंड बनने के साथ ही ईत्पन्न हो चुका था | ऄतः महाद्वीपों के पृथक होने पर भारतीय प्रायद्वीप पर तवतक्सत अतद-मानव के मतस्तष्क में प्राच्य गोंडवाना लेंड अतद की सारी स्मृततयाँ बनी रहीं | नमिदा नदी की घाटी में डायनासोरों के कं काल, ऄििेर्, जीिाश्म ि ऄंडे प्राप्त हुए हैं | भारत के नमिदा घाटी, जािा सुमात्रा, दविण ऄवफ्रका के रोडेवसया, क्रोमन्यान और ग्रीनाल्डी में अवद मानि के
ऄििेर् पुरातत्िविदों को प्राप्त हुए हैं. ईक्त सभ रेखा पर ही वस्थत हैं |
वहमालय के ईत्थान के सािी ि जम्बूद्री भारतीय थे जो विकास के दौरान सरस्िती – दृ समस्त विश्व में फै ले | स्िय्नन्भाि मनु के पुत्र-प सा स्थान होगा | तब विष्णु.. अवद बाराह क मानि बसा एिं समस्त सारी धरती पर फै ला |
पौरावणक कथन ि चररत्र एिं स्थान प्रायः अ – अख्यानों में प्राप्त होते हैं क्योंवक ईस सम कल्पनायुक्त लगते हैं | वस्तुतः कल्पना शब् तवचार से ईत्पन्न है |
वचत्र-3.. अतद-देवी दुगाष..– सूंड वाले हा काल का डायनासोर के समान जीि-) पर महाभारत से---सौजन्य गूगल)
वचत्र-४... तशव-पावषती के साथ चाआन चाआनीज़ मानि- वििगण या कु बेर---विि कणािटक... – वचत्र – वनवििकार)
वचत्र ५- सूंड वाला तसंह जैसा तवतचत्र मूवति... ऐहोल, विजय नगर कालीन.. तु ंगभद्रा घा
मध्य भारत एिं ितक्षण का भारिीय प स्वयं पृथ्वी की अयु तनतश्चि की गयी है | एिं स्थानीय लोग आस भूदेिी का जन्म स्थान बने रहे जो मूवतियों ि हस्त-वचत्रों में वदखाइ देत
विि – महादेि-पिुपवत( जायजनिोर अवददेि माने जाते हैं जो वनिय ही िंभूसेक कहा जािा है जो बाि में ईिर में कै लाश प
देिाक्षधदेि कहलाये तथा परिती काल में उन्द्ह क्षिकाि हेतु प्रायद्वीप में भेजा |
Vol. 2, issue 14, April 2016. व ष 2, ऄंक 14, ऄप्रैल 2016. Vol. 2, issue 14, April 2016.