Jankriti International Magazine vol1, issue 14, April 2016 | Page 169

जनकृति ऄंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (बाबा साहब डॉ. भीमराव ऄम्बेडकर की 125वीं जयंिी पर समतपिि ऄंक) जनकृति ऄंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (बाबा साहब डॉ. भीमराव ऄम्बेडकर की 125वीं जयंिी पर समतपिि ऄंक) गोंड समदु ाय में िह कथा आस प्रकार है-प्राचीन काल में कभी एक बार ऐसा कलडूब (महाप्रलय) हुअ था और चारों ओर पानी ही पानी फै ला हुअ था. के िल ऄमरू कोट (ऄमरकंटक पिित) का टीला ही पानी की सतह के उपर वदखाइ दे रहा था. िहााँ पर एकमात्र फरािेन सइलांगरा (ज्येि सइला-गांगरा = िी-परुु र् ) का एक जोड़ा एक कच्छुअ और एक कौिा के साथ जीवित था. फरािेन सइलांगरा ने दो ऄडं ाल (बच्चों) को जन्म वदया. गोंडी भार्ा में ‗ऄडं ाल‘ िब्द का मतलब बच्चा होता है. दो ऄडं ाल में एक पत्रु और एक कन्या थी. पत्रु का नाम अवं द रािेन पेररयोर और कन्या का नाम सक ु मा पेरी था. गोंडी में पेररयोर और पेरी का ऄथि क्रमिः लड़का और लड़की होता है | ७. गोंडी जन कथाओ ं के ऄनुसार –गोंड लोग समस्त भारत में द्रतवड सभ्यता के नायक ईन्नायक बने एिं ईत्तर भारत, ईत्तरापथ, मेसोपोटावमया, वसन्धु घाटी सभ्यता, हरप्पा अवद एिं सभी महान सभ्यताएं ईन्होंने ही बसाइ,ं जो विि एिं वलंग पजू ा की सभ्यताएं थीं जो यूरेतशयन अयों के अने तक तनबाषध चलती रहीं तजन्होंने शंभू महादेव को ऄपने कूटनीतत से वश में करने हेतु दक्ष कन्या पावषती को प्रयोग तकया और परु ाणों की रचना कर वमथ्या प्रचार वकया, वजससे ऄनावद काल से गोंड समदु ाय में जो िभं ू िेक और वलंगो की पररपाटी चली अ रही थी िह खवण्डत हो गइ | आस प्रकार जब हम गोंड प्रांत, गोंड िेत्र, गोंड भार्ा, गोंड समुिाय में प्रचतलि कथानकों, पुरा-कथाए,ं रीवतयों अवद को ध्यान से देखते हैं तो कुछ विविि तथ्य ज्ञात होते हैं.... वस्तुतः यह ईपरोक्त गाथा ईस कथा व घटना का तमथ्याकरण एवं तवकृ तीकरण है जब तशव ने समुद्र मंथन से वनकला कालकूट विर् पान एिं स्िगि से गंगावतरण अवद के ईपरांत ब्रह्मा, विष्णु से मैत्री के साथ ही देिलोक, जम्बद्रू ीप एिं विश्व के ऄन्य समस्त खण्डों एिं द्रीपों तथा देि-ऄसरु अवद सभी को एक सत्रू में बांधने हेतु ितक्षण भारि की बजाय कै लाश को ऄपना अवास बनाया एिं दि की पत्रु ी सती से वििाह वकया और कालांतर में देिावधदेि कहलाये | सती अयोंिति की नहीं ऄवपतु देिभवू म-वहमप्रदेि की वनिासी थीं, ईस समय तक अयष या अयाषवतष थे ही नहीं | १.गौंड परु ा कथाओ ं के ऄनसु ार नौ खण्डों िाली धरती पर पाच ू डं ों से सवम्मवलत होकर बना है गडं ोदीप ( ं भख ऄथाषत गोंडवाना लेंड ) एिं चार खण्डों िाला है ऄन्डोदीप (ऄंगारा लैंड ऄथाषत लारेतशया ) २. धरती का स्िामी िम्भू सेक ( विि-िभं ू )..िभं ू मल ू ा ..मल ू -िम्भू ..स्ियंभ.ू . समस्त जीिों का स्िामी –पिपु वतनाथ ( महादेि ) है | गडं ोदीप के राजा वलंगो ( वििवलंग ) हैं | ये सब पदवियां है ..क्रवमक | ३. जीि ि जीिाश्म का जन्म दाता सल्लो-सांगरा है जो धन-ऊण, नर-मादा. दाउ-दाइ तत्ि है | चंवू क गोंडिाना लेंड में भारत ि ऄफ्रीकी वकनारा जल के वकनारे पर एिं भमू ध्य रे खा पर था ऄतः गमि जल में सवि-प्रथम जीवाश्म की ईत्पति गोंडवाना लेंड –भारि –ऄफ्रीका में हुइ | ४. एक महान कलडूब ( जलप्रलय ) का िणिन है वजसमें सारी पृथ्िी डूब गयी परन्तु ऄमराकूटा पिित ( ऄमरकंटक ) नहीं डूबा एिं एक जोड़ा फरािेन साइ-सा ं ंगरा (िी-परुु र्), एक कछुअ, एक कौिा बचे | वजनसे बाद में पनु ः सृवि हुइ | आसके बाद जल ईतरने पर नमिदा नदी ( ऄथाित नर..मादा ईत्पवत्त स्थान की प्रथम नदी ) ईत्पन्न हुइ जहां पहले ऄन्दर तक सागर की भजु ाएं प्रविि थीं ईनके विलप्तु होने पर विन्ध्य ि सतपडु ा, गारो, महादेि अवद पिित श्ृख ं लाओ ं का जन्म हुअ | ५. द्रतवड शब्द अज सभी दविण भारतीय जन के वलए प्रयक्त ु होता है परन्तु वकसी भी दविण भारतीय भार्ा में आस िब्द की ईत्पवत्त का िणिन नहीं है यह िद्ध ु गोंडी िब्द है. गोंडी सभ्यता में दइ िवक्त की प्रधानता है. गोंडी में दइ के बीरो (ईपासकों) को ‗दइनोर बीर‘ का सतं क्षप्त रूप दाइबीर--- से द्रतवर है तजससे द्रतवर या द्रतवड रूप बना है—गोंडी गीत –―दइनोर-बीर ताल दरबीर असं ीनेड दरिीड मातोनी...‖ का भाव है --- गोंडी दइ िवक्त से तेरा जन्म हुअ है आसवलए दाइ का बीर याने दइ का ईपासक तू दरबीर है और अज तू दरबीर नाम से जाना जाता है| यह सभी द्रिीड भार्ाओ ं की जननी है आसवलए यह द्रविड िब्द सभी दविण भारतीय भार्ाओ ं में प्रचवलत है. वकन्तु ईनकी ईत्पवत्त मात्र गोंडी भार्ा में हैं | ६.तवश्व की प्रथम भाषा गोंडी भाषा की ईत्पवत्त िभं -ू मल ू ा के गोयदांडी ( डमरू ) से हुइ है | भारिीय शास्त्र में भी महािेव के डमरू की ध्वतन से ही वणों व बोली का प्रािुभािव माना जािा है| Vol.2, issue 14, April 2016. वषष 2, ऄंक 14, ऄप्रैल 2016. यह शायद ईस काल की घटना है जब वक्रटेिस काल ऄतं में गोंडिाना लेंड के विघटन के होने पर ऄफ्रीकी भूभाग ईत्तर की ओर वखसक कर यरू ोवपयन भख ू डं से टकराकर टेवथस सागर के पविमी ि मध्य भाग को धीरे धीरे विलप्तु कर रहा था ईसके ऄिविि जल से के वश्पयन सागर, भमू ध्य सागर अवद बनने की प्रवक्रया में थे | भारतीय भूखंड संयुक ्त गोंडिाना लेंड ि ऄन्टाकि वटका तथा अस्रेवलयन भख ू ंड से पृथक होकर ईत्तर -पविम की ओर बढ़ते हुए यरू े वियन टेक्टोवनक प्लेट के वतब्बतीय भाग से टकराकर, टेवथस सागर की विलवु प्त प्रारम्भ होचक ु ी थी एिं इरान, ऄरब अवद मध्य एविया, वतब्बत ि ईत्तरापथ बन चक ु े थे परन्तु के िल लिणीय बालू के मैदान थे जो टेवथस सागर के वनिेप से बने थे | ईत्तरी वहम प्रदेि वस्थत समस्त यरू े विया, वतब्बत ि भारतीय प्रायद्रीप, वहदं क ू ु ि का पिितीय भाग का सवम्मवलत भभू ाग पर जो देि-लोक कहलाया ---पौरावणक हमत, वहरण्यगभि, ब्राह्म ि पद्म कल्पों .से होते हुए ब्रह्माण्ड ि पृथ्िी के सृजन ईपरान्त िाराह कल्प में मानि ऄितररत होचक ु ा था |...जहां कै लाि, समु रुे , पामीर, स्िगि, क्ष्रीरसागर अवद थे | गोंडवाना लेंड में ईत्पन्न भारिीय प्रायद्वीप तस्थि नमििा घाटी में तवतससि एवं ईिर भारि िक तवकास करिे हुए अये ( तशव के समथिक- ) मानव एिं ईिर भारिीय भूभाग तितवष्टप ( तिब्बि ) एवं सरस्विी –दृषविी के सप्ततसंर्ु क्षेि सप्तचरुिीथि में तवतससि ( तवष्ट्णु- आद्रं के समथिक ) मानव ( तनयंडरथलहोमो सेतपयंस समस्ि तवश्व में फ़ै ल चुके भारिीय िेव-मानव ) ईन्नत हुए --प्राणी ( ज्यरु ावसक एिं ऄन्य सभी प्रकार के जीि-जतं ु अवद ) ि मानि..(होमो सेवपयंस.) द्रारा एक सतम्मतलत सभ्यता --- ब्रह्मातवष्णु-महेश- स्वय्मम्भाव मनु, दक्ष, कश्यप-ऄतदतत-तदतत द्वारा स्थातपत तवतवध प्रकार के अतद-प्राणी सभ्यता.. ( कश्यप ऊतष की तवतवध पतत्नयों से ईत्पन्न तवश्व की मानवेतर संतानें नाग, पशु, पक्षी, दानव, गन्धवष, वनस्पतत आत्यातद ) एवं देव.ऄसुर सभ्यता का तनमाषण तकया | मल ू भारतीय प्रायद्रीप से स्िगि ि देिलोक ( पामीर, समु रुे , जम्बू द्रीप, कै लाि में दविण –प्रायद्रीप से ईत्तरापथ एिं वहमालय की मनष्ु य के वलए गम्य ( टेवथस सागर की विलवु प्त ि वहमालय के उंचा ईठने से पिू ि ) ..नीची श्ेवणयों से होकर मानि का अना जाना बना रहता था... यही सभ्यता कश्यप ऊतष की संतानों – देव-दानव-ऄसुर अतद तवतभन्न जीवों व प्रातणयों के रूप में समस्त भारत एवं तवश्व में णै ली एवं तवश्व की सवषप्रथम स्थातपत सभ्यता देव-मानव सभ्यता कहलाइ | स्िगथ, Vol.2, issue 14, April 2016. वषष 2, ऄंक 14, ऄप्रैल 2016.