Jankriti International Magazine vol1, issue 14, April 2016 | Page 17

जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका / Jankriti International Magazine( बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की 125वीं जयंिी पर समतपिि अंक)
ISSN 2454-2725
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिक
( बाबा साहब डॉ. भीमराव
* निनवद *
हमने साथ चलना शुरू ककया था हमने साथ रहना शुरू ककया था धीरे-धीरे मैं अलग होता चला गया एक कमरा मैंने ऐसा बना कलया है जहाां अब ककसी का भी प्रवेश कनकषद्ध है जो भी इसे पढे, कृ पया इसे आरोप नमाने
यह महज़ एक आत्म-स्वीकृ कत है
उससे दूर रहो कजसमें हीनभावना होती है तुम उसकी हीनता को दूर नहीं कर पाओगे खुद को श्रेष्ठ बताने के चक्कर में वह रोज़ तुम्हारी हत्या करेगा
मैं समांदर के भीतर से जन्मा ह ां लेककन मुझे सी-फू ड वाले शो-के स में मत रखना बुरादे में बदले दूध की तरह रह ांगा तुम्हारी आलमारी में जब जी चाहे घोलकर पी जाना
द्रव में बदला हुआ प्रकाश ह ां तुम्हारी नाकभ मेरे होने के द्रव से भरी है मैं सूखकर कस्तूरी बन गया
साांस की धुन पर गाती है मेरी आत्मा मेरा रृदय घडी है स्पांदन तुम्हारे प्रेम की किक-िॉक तुम्हारे बालों की सबसे उलझी लि ह ां कजतना कखांचू ांगा उतना दुखू ांगा
इस देश के भीतर वह देश ह ां मैं जो हज़ारों साल पहले खो गया इस देह के भीतर वह देह ह ां मैं जो हर अकस्थ-काकस्थ को खा गया
तुम जागती हो कनकवद जागता है तुम दोनों के साथ सारे देव जागते हैं
रात-भर चूमता रहता तुम्हारी पलकों को नींद के होंठों से रात-भर तुम्हारी हथेली पर रेखता रहा कसलविों से भरा है तुम्हारी आांख का पानी फें के हुए सारे कां कड अब वापस लेता ह ां
............................................................ ककव ह ां मैं, उम्मीद का बेिा ह ां
वान गॉग का किा हुआ कान मेरे सीने में कदल बनकर धडकता है उस कान से सुनता ह ां मैं दुकनया की बारीक से बारीक आवाज़ जो कक उम्मीद की आवाज़ हो मेरी माां की आवाज़
और दौडकर उस आवाज़ से कलपि जाता ह ां ककसी साज़ के जैसे. ककसी बछडे की माकनांद.
…........................................................ कनवता का प्रनतनबंब
हममें इस तरह का जुडाव था कक आांखें अलग-अलग होने के बाद भी हम एक ही दृकि से देख सकते थे इसीकलए ईश् वर ने हमें जुडने का मौ़ा ा कदया
हम इस ़ा दर अलग थे कक एक ही उांगली पर अलग-अलग पोर की तरह रहते थे इसीकलए ईश् वर ने हमें अलग कर कदया
हम जुडे इसका दोष न तुम् हें है न मुझे हम अलग हुए
इसका श्रेय न तुम् हें है न मुझे
ऐसे मामले में ईश् वर को मान लेने में कोई हजज नहीं जी हल् का रहता है
हम जुडवा थे
हममें से एक तालाब ककनारे लेिी देह था और दूसरा पानी से झाांकता प्रकतकबांब
देह ने पानी में कू दकर जान दे दी.
प्रकतकबांब उछलकर पानी से बाहर कनकला और मर गया.
दीग़र है यह कक हम कभी तय नहीं कर पाए कौन देह था, कौन प्रकतकबांब.
....................................... बांसुरी
कछपकली में बचा रहता है मगरमच् छ मगरमच् छ में बचा रहता है डायनासोर जांगली भेकडयों ऺ के अांश घरेलू कु त् तों में 1700 साल पुराना एक ककव 17 साला युवा क
जो अधूरा छू ि जाता है, कसणज वही होता है सांप जो कबछड गए अधराह, वही हमसणर होते हैं यह कलखकर मैं बोहेस को याद करता ह ां जैसे कोई कबरहन अपने पी को याद करती हो
महसूस करता ह ां सांपूणज को स् वल् प में सांरकषितत ककया जा सकता ह
Vol. 2, issue 14, April 2016. वर्ष 2, अंक 14, अप्रैल 2016. Vol. 2, issue 14, April 2016.