Jankriti International Magazine vol1, issue 14, April 2016 | Page 16
जनकृति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine
ISSN 2454-2725
जनकृति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine
(बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की 125वीं जयंिी पर समतपिि अंक)
रक्त में खुशी
मैंने पछ
ू ा
थोड़े संकोच थोड़े स्नेह से
“ कै से हैं पति
हैं िम्ु हारे अनक
ु ू ल"
उसने कहा
मतु िि मन से लजािे हुए
“ जी, बहुि सहयोगी हैं
समझिे हैं मेरी सीमा
अपनी भी ”
उस तिन मेरा मन बतियािा रहा हवाओ ं से फूलों से
पछ
ू िा रहा हालचाल राह के पत्थरों से
प्रसन्निा छलकिी रही रोम-रोम से
यंू ही टहलिे हुए चबा गया नीम की पतियां
पर खश
ु ी इस किर थी रक्त में तक कम न हुई मन की
तमठास
मैंने खिु से कहा
चलो खश
ु िो है एक बेटी तकसी की
और भी होंगी धीरे -धीरे ।
„„„„„„„„„„.
बथुआ
अजब कहानी है बथआ
ु की भी
तबना बोये ही उग आिा है
खेिों में
फसलों की सोर से सोर तमलािे हुए
खेिों की सोहनी में
तकसान
सोह िेिे हैं बथआ
ु
कहिे हैं
Vol.2, issue 14, April 2016.
ISSN 2454-2725
(बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की 125वीं जयंिी पर समतपिि अंक)
बहुि हो गया है खेिों में
अरकस-बथआ
ु
हालााँतक वे जानिे हैं उसकी सीरि
वे जानिे हैं
फसल बचाने के तलए तनकाल तिया जािा है
जो बथआ
ु
मोल तलया जािा है
वही
जीवन बचाने के तलये ।
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एक घर था
पहाड़ को जानना
सयू य उतिि
पहाड़ मतु िि
सयू य अस्ि
पहाड़ मस्ि
हो सकिा है कुछ लोगों के तलये
यह सच हो
िधू के रंग तजिना
पर इसे परू ा-परू ा सच मान लेना पहाड़ का
बहुि कम जानना है
पहाड़ को ।
एक घर था
तजसमें रहिे हुए
हम रहना नहीं चाहिे थे उसमें
हम चाहिे थे एक ऐसा घर
तजसमें हवा आिी हो
रौशनी आिी हो
और तजसकी तखड़तकयां
सपनों की राह न रोकिी हों
हमें तमला भी एक घर
तजसमें कई तखड़तकयां थीं
और जगह हमारी सोच से ज्यािा
इिनी ज्यािा
तक िो जनों के बीच
अब जगह ही जगह थी ।
वहां सपने
हवा के साथ तमलकर
खाली जगह में
बवडं र की िरह मडं रा रहे थे ।
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वषष 2, अंक 14, अप्रैल 2016.
Vol.2, issue 14, April 2016.
वषष 2, अंक 14, अप्रैल 2016.