Jankriti International Magazine vol1, issue 14, April 2016 | Page 166

जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका / Jankriti International Magazine( बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की 125वीं जयंिी पर समतपिि अंक)
ISSN 2454-2725
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिक
( बाबा साहब डॉ. भीमराव अ
डालती हुइ सुरक्रभ िण्डन क्रलखती हैं--- " घर जैसे स्थान पर क्रहंसा का कोइ चश्मदीद गवाह मौजूद न होने की वजह से क्रहंसा साक्रबत करना कक्रठन हो जाएगा ।.... 13 । आस हालात में काम छोङने के ऄलावा और कोइ ईपाय नहीं रहता । यहााँ
ऄक्रस्मता के हनन का संकि मक्रहला कामगार को हाक्रशये की क्रघंदगी जीने को मजबूर कर देती है ।
ग सामुदाक्रयक: घरेलू कामगारों के प्रक्रत रूच सामुदाक्रयक धारणा माक्रलकों के अचरण को िू र-क्रहंसक बना देती है? कहानी ' ऄनाङी ' की सुवणाभ जब बाइ से ऄपने नाखून पाक्रलश करने की आच्छा रखती है, तब की अहत मन: क्रस्थक्रत ईललेखनीय है--- " ऄपने रंगती है तो बाइ क्रकत्ता मन लगाकर । क्रजत्ती बार राँगेगी, ईत्ती बार सुखायेगी और सुवणाभ को! ऐसे जैसे कु सी पर ििका मार रही हो ।" 14 यहााँ सुवणाभ की आच्छा का कोइ मोल नहीं है तो आसीक्रलए क्रक वह काम करने वाली है । ऄपमान और कु ं ठा का कारण यही है क्रक सुवणाभ सब कु छ ऄपने सामने देखती है, पर ऄपने क्रलए कु छ भी पाती नहीं । क्रतस पर, अलमारी में बंद कर रखे जाने की बात सुवणाभ को कामवाली से चोरी के ऄपमानजनक दंश का भी ऄनुभव करा जाती है ।
कहानी ' ईसका क्रवद्रोह ' हो या ' बाहरी जन ' कामगार को कोइ भी गाली-गलौज कर जाए, प्रक्रतरोध का ऄंधकार नहीं, क्योंक्रक वे काम करने वाले होते हैं, ईसका मान-सम्मान क्या । समस्या यह नहीं क्रक ईसके साथ बुरा होता है, समस्या है क्रक वह क्रवरोध करें तो कै से? ईसके भी सपने हैं । ईसका क्रवद्रोह के युवा नौकर के सपने हैं । क्या होगा सपनों का? आसका ऄत्यंत यथाथभ ऄनुभव होता है गीता श्री की कहानी ' डाईनलोड होते हैं सपने ' में । कामगारों के साथ ऐसे संकि, ऄसुरक्षा, ऄपमान, कु ं ठा के पीछे कामगारों के प्रक्रत माक्रलकों की सामुदाक्रयक धारणा ही मुख्य कारण होती है ।
4. कामगारों का ऄक्रस्मता-बोध: क्रदशागत स्वरूप
घरेलू काम के प्रक्रत माक्रलक और कामगारों का नजररया प्राय: एक जैसा होने के कारण कामगार ऄपनी ऄक्रस्मता की रक्षा में क्रबद्रोही नहीं हो पाता । वैसे आन कामगारों को माक्रलकों के क्रवरुद्ध खङा करने का क्रवक्रचरधारात्मक प्रयास भीष्म साहनी ने ऄवश्य क्रकया, पर ऄमरकांत, यशापल, शेखर जोशी ने कामगारों के प्रक्रत संवेदनात्मक लेखन क्रकया । आस
पृष्ठभूक्रम में मृदुला गगभ की रचनाधक्रमभता ऄक्रधक यथाथभपरक है । ईन्होंने संवेदना और क्रवचारधारा की जगह माक्रलक और कामगारों की ऄक्रस्मताओं के वतभमान द्वंद्वात्मक, ऄंतक्रवभरोधी एवं क्रवडंबात्मक क्रदशागत स्वरूप को ही लेखन का क्रवषय बनाया । आनके यहााँ घरेलू कामगार मौन हैं, पर शांत नहीं । मुखर होकर क्रवद्रोह नहीं कर पाने की क्रनयक्रत है, पर ऄपनी चेतना में कहीं ऄक्रधक प्रक्रतक्रियाशील और प्रक्रतवादी हैं ।
' कठगुलाब ' की नमभदा की ऄंत: ध्वक्रन नक्रमता के क्रवरुद्ध ऄपनी सामर्थयभ में स्वत्व की रक्षा आस प्रकार करती है--- " रहने दो बीवीजी, कोसने मत दो! नौकरी का ऄकाल न पङ रहा । एक छोङो दस क्रमले है । कर लेंगे कहीं और ।" 15 ऄक्रस्मता का ऄनुभव आस क्रदशा में है क्रक माक्रलकों की मन-मघी अदतें नमभदा स्वीकार नहीं करती, पर आस ऄसंक्रमता का क्रदशागत स्वरूप पुनः नए पररवारों में संघषभ से जुङा हुअ है । ऄक्रस्मता का गक्रतमान स्वरूप यही है । आसके कारण सुरक्रभ िण्डन मेहरोत्रा के शब्दों में--- " माक्रलक और कामगार के बीच सत्तात्मक संबंध ईनके साथ होने वाले भेद-भाव या ईनकी क्रशकायत को नकारा जाने वाला रवैया भी ईन्हें चुप करा जाता है ।" 16 सत्ता ऄक्रस्मता का स्रोत है । नमभदा के
पास ऄसीमा और दजभन बीबीसी का भरोसा ह मेरी क्रबचारी आकली बीबी! बुङ-बुङ करती नम है क्रक नमभदा ऄके ली नहीं है, ऄके ली ही नहीं क्र ईसकी ऄक्रस्मता के सवाल भी खङा कर देती ह
गंभीर मुद्दा यह है क्रक कामगारों के समक्ष एडजस्ि करें या तब तक एडजस्ि करें, जब त
ईत्पीङक माक्रलकों के घर काम न करना ईनके काम करने पर मजबूर क्रकया ।... जलदी ही क नहीं कर सके ।" 18 यह स्वाभाक्रवक है क्रक क्रवर के यहााँ माक्रलकों के ईत्पीङन के प्रक्रत कु छ औ मुखर नहीं है, पर तीव्रता और तीक्ष्णता में ऄ और कहें, गधे-बंदर, छछूंदर तुम हो । यह लो ऄ मु ाँह से कु छ नहीं कहा, पर आसका मतलब यह ईसके क्रवद्रोह की प्रक्रिया के बारे में मृदुला गग... रसोइ घर का दरवाघा धङाक से मारकर अ... आतनी घोर से क्रक पङोक्रसयों के कानों तक भ है ।" 19 अगे यह भी सोचता है--" वह चाहत ईधर नहीं खदेङा जा सकता " 20 क्रवद्रोह की यह भी क्रवचारणीय है क्रक माक्रलक ईसे क्रनकाल
है तो ईसे ऐसी संभावना क्रदखती ही नहीं है । ऄ थी, पर ऄब समय बदल चुका है ।
ऄक्रस्मता महघ सिलता का पयाभय नहीं ह
साथभक ऄनुभूक्रत है । आसी क्रदशा में ये कामगार रहते हैं । कु छ ऐसा ही हम कहानी ' क्रकस्सा अ माक्रलकों वकीलन नघरऄंदाघ कर जाती है, ज
बदतमीघ जवाब मानकर भी बीबी चुप लगा ईससे ।" 21 आस संदभभ में यह ध्वक्रनत है क्रक मा
क्रनरीहता और मौन-मूक समझौता की जगह द्वन् मुखर प्रक्रतवाद के रुपये की गड्डी लेकर भाग करती थी, ईसको पूरा करती हुइ कहीं से न तो क्रसछभ आतना ही पयाभप्त और साथभक ऄनुभूक्रत है की घरूरत है । ऄंगूरी पुक्रलस को नहीं बताती
Vol. 2, issue 14, April 2016. व ष 2, अंक 14, अप्रैल 2016. Vol. 2, issue 14, April 2016.