Jankriti International Magazine vol1, issue 14, April 2016 | Page 165

जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका / Jankriti International Magazine( बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की 125वीं जयंिी पर समतपिि अंक)
ISSN 2454-2725
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिक
( बाबा साहब डॉ. भीमराव अ
होता महसूस होता है । अशय आतना है क्रक घरेलू काम में स्त्री-पुरुष में से क्रकसी को रुक्रच नहीं है । कहानी ' क्रकस्सा अज का ' में वकीलन के पास पािी में जाने का गवभ है, पर ऄपने काम के क्रलए भी बाक्रलका रामलीला को रखती है? क्रकसी भी काम करते ही ' बङी मुक्रश्कल है ' का जुमला बहुत प्यारा है ।
घरेलू काम को कामगार मजबूरी में ही करना स्वीकारते हैं । डूठे बतभन मााँजना, पोंछा लगाना क्रकसे ऄच्छा लगता है? कहानी ' ऄनाङी ' में सुवणाभ के पररवार की माली हालत पर माक्रलक सेठ के द्वारा सहानुभूक्रत प्रकि करने पर सुवणाभ
की भावनात्मक प्रक्रतक्रिया क्रववेचनीय है--- " आतना तरस अ रहा है तो भेज दो ना आस्कू ल ।... क्रिर कौन करेगा झाङ़ू- ििगा, कौन मलेगा भाङे ।" 5 घरेलू काम की जगह स्कू ल जाना पसंद है । सुरक्रभ िण्डन मेहरोत्रा का ऄनुभव है---- " यह
सोच सांस्कृ क्रतक क्रवचारधारा से जुङी है क्रक बतभन मााँजने का काम गंगा और कमतर माना जाता है ।... कामगारों के नजररये से ईनके पास कोइ ऄन्य चुनाव न होने की वजह से वह हीन काम करते हैं । प्राय: सभी नहीं चाहते है क्रक ईनकी बेक्रियााँ आस पेशे में अए ।" 6 गौरतलब यह है क्रक कामगारों की नघर में भी यह कोइ काम नहीं है, बक्रलक मजबूरी में ढोया
गया बोझ-सा है । वे ऄपनी संतान को तो आस क्षेत्र में देखना भी नहीं चाहते । घरेलू काम घर के सदस्यों के मान-सम्मान पर बट्टा लगाने वाला क्रदखता है, तो कामगारों के क्रलए हीन और गंदा होने के कारण एक बङी मजबूरी है । अश्चयभ है क्रक घर है, तो घर के काम क्रनकलेंगे ही, पर यह घरूरी क्रकसी के क्रलए नहीं । काम करते हुए ईपलक्रब्ध का बोध नहीं होता ।
आस क्रवडंबना पर सुरक्रभ िण्डन की क्रिप्पणी द्रष्टव्य है--- " यह बात नोि करने की है क्रक भले ही कामगार ऄपने काम को सम्मान से नहीं देखते, मगर ईनकी ईम्मीद होती है क्रक माक्रलक ईनके साथ मान-सम्मान का व्यवहार करे ।" 7 मान- सम्मान का भाव अचरण में ही संक्रचत होता है । घरेलू काम के प्रक्रत जब सद्भावना ही नहीं रही, तब मजबूरी में ही सही, आस काम को करने वाले को सम्मान का अचरण कै से क्रमलेगा? आस दृक्रष्ट से कामगारों और माक्रलक सदस्यों के बीच परस्पर का अचरण स्वाभाक्रवक नहीं रहकर क्रवडंबनात्क हो जताता है ।
मृदुला गगभ के ईपन्यास ' कठगुलाब ' में नमभदा ऄपेक्रक्षत अचरण के ऄभाव में ऄपने काम का महत्व ऄवश्य ही प्रक्रतपाक्रदत करती है----- " ऄरे मैं ना होती तो कर सके थे, ये बङे-बङे बंगले, कारखाने ।.... मैं ना होती तो आस कु क्रतया के बच्चे अवारा, नशेङी बनते, डाक्िर आंजीक्रनयर ना ।" 8 मृदुला गगभ ने प्रक्रतपाक्रदत क्रकया है क्रक महत्व की दृक्रष्ट से मध्यवगीय पररवार की सामाक्रजक ऄक्रस्मता के पयाभप्त ही नहीं, सारे ऄवसर गचने में मक्रहला कामगारों की मुख्य भूक्रमका
होती है । पररवार की सामाक्रजक ऄक्रस्मता की मुख्य भूक्रमका में कायभरत कामगारों के प्रक्रत सामान्य अदर का भाव भी नहीं होता है, यह तब तक क्रवडंबना बनी रहेगी, जब तक कामगार आन कामों में ईपलक्रब्धयों की जगह महज ऄथोपाजभन
की संबावना को तलाशते रहेंगे । ऄथभ सत्ता का स्रोत मात्र है । देने वाला सत्तासीन और लेने बाले की दशा सत्तासीनों के ऄधीन की होती है । यहााँ यह ऄभीष्ट है क्रक घरेलू काम के प्रक्रत नघररया में बदलाव की जरूरत है । आसके ऄथभ-संदभभ की जगह सृजन-संदभभ को व्यवहार में ऄपनी सोच का क्रहस्सा बनाना होगा । ऐसी धारणा से ही ईपलक्रब्ध-लाभ संभव है । ऄक्रस्मता ऄक्रजभत ईपलक्रब्ध के प्रक्रत सामाक्रजक गौरव बोध है । घरूरत है कामगारों के द्वारा क्रकए गए ऐसे घरेलू कायों की सृजनात्मकता को सामाक्रजक-पाररवाररक संदभभ में गौरव-बोध के साथ माक्रलकों की स्वीकृ क्रत की । काम के प्रक्रत माक्रलक-कामगार दोनों की धारणा में ऄपेक्रक्षत बदलाव से ही ऄक्रस्मता का सृजनात्मक बोध संगम है ।
3. मुख्यधारा के बीच का ' हाक्रशया ': क्रवक्रव
सामाक्रजक क्रवकास में प्रत्यक्ष-ऄप्रत्यक्ष रूप अते हैं, जबक्रक आस क्रवकास के लाभ से व
प्रक्रतवादमूलक होता है । यह सदा मुख्यधारा क हैं, वे ऄपने समय के क्रवकास की क्रदशा में शा
मुख्यधारा के बीच हाक्रशया के रूप में क्रलए ज ऄजीब क्रवडंबना है क्रक जीवन की सारी सुक्रवध ईसमें साथभक ढंग से हस्तक्षेप नहीं कर पाने त रक्षा का ईपाय करे ।" 9( र49) हाक्रशयापन म समुदाय के रूप में तो दक्रलत-अक्रदवासी भी ह
के रख-रखाव में लगे रहने के बावजूद आनके स आन्हें मुख्यधारा के बीच का हाक्रशया कहा जा
जीवन बोध के पयाभय हैं । आस संदभभ में हाक्रशयेप
क) अक्रथभक अयाम: ईपन्यास ' कठगुलाब पर न पहुाँची, तो पैसे कािने को दौङेंगी हमारी ब रूप से दो संदभभ कामगारों को ऄपमान और किौती, दूसरा, काम का बोझ बच जाना । हक्र सरोकार से बेखबर हैं, साथ ही सारे कपङे जम
पर लगे रहने की क्रववशता रहती है । संकि का काम को तो महत्व क्रमलता नहीं, पर काम नें क
है क्रक मक्रलक काम के प्रत्येक क्षण का क्रहसाब
ख) यौक्रनक: मक्रहला कामगार की ईपक्रस्थक्रत नौकरानी की डायरी ' में क्रदखाया है--- " मााँ ऄ हक समझते हैं ।" 11 स्त्री-मुक्रक्त में देह मुक्रक्त की संदभभ से गुघरती हैं, तब प्रतीत होता है क्रक द सच्चे ऄथभ में देह-मुक्रक्त को साथभक कर पाएगा की मााँ का ऐसा ही ऄनुभव है । ईपन्यास ' कठग घर पर रहो । रह गइ । छ: महीने ना गुघरे होंगे क्रक
के यौनाचार के कारण जन्मे संकि और ऄप कामगार ऐसे अचरण के कारण ऄसुरक्रक्षत रह करती हैं । वह नमभदा की तरह या तो काम ही छ
Vol. 2, issue 14, April 2016. व ष 2, अंक 14, अप्रैल 2016. Vol. 2, issue 14, April 2016.