जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका / Jankriti International Magazine( बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की 125वीं जयंिी पर समतपिि अंक)
ISSN 2454-2725
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिक
( बाबा साहब डॉ. भीमराव अ
प्रो० अजय कु मार साव हहंदी हवभाग, हसलीगुडी कॉलेज
हसलीगुडी, दाहजषहलंग हिन-734001, िहिम बेगाल
मो०: 8509734578 shaw. ajaykumar1 @ gmail. com
घरेलू कामगारों का चलन बहुत पुराना है, पर अघाद भारत में औद्योगीकरण के तहत शहरीकरण की प्रक्रिया घक्रित
हुइ और अज भी ब-दस्तूर जारी है । आसका पररणाम घरेलू कामगारों और पररवार के माक्रलक सदस्यों के संदभभ में क्रजतना संवेदनशील रहा है, ईतना ही जक्रिल, ऄंतक्रवभरोधी और क्रवडंबनात्मक भी । घरेलू कामगारों के क्रहत में क्रजतने कानून बने, क्रनस्संदेह आनकी घरूरत है, पर यह मानवीय संवेदना के धरातल पर ही क्रवकक्रसत है, जबक्रक साक्रहत्य में
आसकी जक्रिल यथाक्रस्थक्रतयों के बीच क्रवकक्रसत ऄंतक्रवभरोधी एवं क्रवडंबनात्मक मन: क्रस्थक्रतयों का अकलन और मूलयााँकन मुख्य लक्ष्य रहा है । ऄमरकांत की कहानी ' बहादुर ', भीष्म साहनी की ' संबल के बाबू ', यशपाल की ' कु त्ते की पू ंछ ', शेखर जोशी की ' दाज्यू ' जैसी कहाक्रनयााँ ऄवश्य ही स्मरणीय हैं, पर ये कहाक्रनयााँ या तो संवेदनात्मक भाव-
भूक्रम पर खङी हैं या क्रवचारधारात्मक अिोश से लैस है । संवेदनात्मक पहलू और क्रवचारधारात्मक संभावनाएाँ अज ऄसंभव संबावना ही है । कृ ष्ण बलदेव वैद का ईपन्यास ' एक नौकरानी की डायरी ' और गीता श्री की कहानी ' डाईनलोड होते हैं सपने ' अज घरेलू कामगारों और माक्रलकों के संदभभ में क्रजन क्रवडंबनाओं का संके त क्रकया गया है, ईसका चरम ऄपनी स्वाभाक्रवक जक्रिलताओं और क्रवडम्बनाओं के साथ मृदुला गगभ की कहाक्रनयााँ ' ऄनाडी ', ' ईसका क्रवद्रोह ', ' बाहरी जन ', ' क्रकस्सा अज का ' तथा ईपन्यास ' कठगुलाब ' और ऄक्रनत्य में ऄक्रभव्यक्त है ।
ऄक्रस्मता का प्रत्यक्ष संबंध प्रक्रतपक्ष की ध संबोधन । मृदुला गगभ क्रलखती हैं--- " पुराने वक्त कहते हैं । शब्द बदला है, ऄथभ नहीं ।" 1 यह मानक्रसकता का ही पररणाम है । आतना घरूर है शब्द ' कामगार ' ऄक्रनवायभ बदलाव की संभाव
कोइ भी बाहरी व्यक्रक्त जो पैसे के क्रलए या क्रक एजेंसी के माध्यम से जाता है, जो स्थायी / ऄस् श्रेणी में रखा जाएगा ।" 2 स्पष्ट है क्रक आनके प्रक्र नौकर कहा जाता है तब व्यक्रक्त के प्रक्रत भाव व् होता है । काम छोिा-बङा नहीं होता । आसका ऄधीनता की बू नहीं अती है । ऄन्य कामगारों है ।
समय के साथ आन कामगारों के प्रक्रत माक्रल
मालक्रकन वकीलन का ऄनुभव ईललेख योग्य रह रही है, गुघरे वक्तों में नहीं... वकीलन क अदमी को हवालात में बंद करवा सकते हैं, क्र बदलाव घक्रित हुअ है क्रक माक्रलकों की ताना माक्रलक अज भी झूठे मामले बनवा कर हवाल का ऄनुभव है--- " ऄब नौकर शब्द की जगह पहले से ईसका सम्मान बच गया है ।" 4 ' काम व्यावहाररक क्रस्थक्रत है ही, आससे भी बङी वास् ऄपमाक्रनत महसूस नहीं करते । आस संबोधन का
मृदुला गगभ ने घरेलू कामगारों को क्रनरी संवेदना से न तो सींचा है, ना ही क्रवचारधारात्मक अग्रह का संबंल प्रदान
क्रकया है । ईन्होंने माक्रलक और घरेलू कामगारों के अचरण को ईनके पारस्पयभ में बहुअयामी तिस्थ ऄध्ययन का क्रवषय बनाया है । कारण यही है क्रक अचरण सोच से संचाक्रलत होते हैं, तो सोच प्रक्रतपक्ष के मान-मूलयों के प्रक्रत संवीकार-
ऄस्वीकार के माध्यम से बनी ऄक्रस्मता-बोध ही है । आसकी परख के क्रलए आनके प्रक्रत प्रयुक्त संबोधन में क्रनक्रहत ऄक्रस्मतापरक ऄनुभूक्रत, घरेलू काम के प्रक्रत नघररया, मुख्यधारा के बीच हाक्रशयापन के क्रवक्रवध अयामों का ऄध्ययन
करते हुए ऄंतत: घरेलू कामगारों की ऄक्रस्मता के क्रदशागत स्वरूप का मूलयााँकन प्रस्तुत अलेख का ऄभीष्ट है ।
1. संबोधन: ऄक्रस्मतापरक ऄनुभूक्रत
2. घरेलू काम: ऄक्रस्मताओं की क्रवडंबना
घरेलू काम के प्रक्रत स्वयं घरेलू कामगारों क मक्रहलाओं की व्यस्तता और मध्यवगीय मानक्रस
हीन और ऄपमानजनक भी प्रतीत हुअ । साथ हीनता बोध का सूचक ही ऄक्रधक महसूस ह घरूरत पङी । घरेलू काम ऄपनी प्रकृ क्रत में अज सकता है क्रक पुरुष की बराबरी में अक्रथभक अ सामंती छक्रव से मुक्रक्त का ऄनुभव करती हैं । स सवाल स्त्री की सामाक्रजक ऄक्रस्मता को अहत
Vol. 2, issue 14, April 2016. व ष 2, अंक 14, अप्रैल 2016. Vol. 2, issue 14, April 2016.