Jankriti International Magazine vol1, issue 14, April 2016 | Page 147

जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका / Jankriti International Magazine( बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की 125वीं जयंिी पर समतपिि अंक)
ISSN 2454-2725
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिक
( बाबा साहब डॉ भीमराव अ
समृद्व और श्रेष्ठ बनाने में सबसे बड़ा योगदान दकित समाज के िोगों का है । आस देश में अकद ककव कहिाने का सम्मान के वि महकषष वाकल्मकी को है, शास्त्रों के ज्ञाता का सम्मान वेदव्यास को है । भारतीय संकवधान के कनमाणष का श्रेय
ऄम्बेडकर को जाता है ।
वतषमान में कु छ देशी-कवदेशी शकक्तयां हमारी आन सामाकजक-संस्कृ कतक धरोहरों को कहंदृत्प्व से ऄिग करने की योजनाएं बना रही है । ऄब कु छ िोगों द्वारा यह कसद्ध करने का रयास ककया जा रहा है कक डॉ. ऄम्बेडकर ने मार्कसष के कवचारों का कवस्तार ककया है । ईन्होंने समाज पररवतषन की मार्कसषकसयन रणािी में कु छ नइ बातें जोड़ी हैं । िेककन ऐसा नहीं है, वे
भूि जाते है कक मार्कसष का दशषन के वि दो तीन सौ साि पहिे का है । माकष स की पंूूजीवादी व्यवस्था में जहां मुठ्ठी भर धनपकत शोषक की भूकमका में ईभरता है वहीं जाकत और नस्िभेद व्यवस्था में एक पूरा का पूरा समाज शोषक तो दूसरा शोकषत के रुप में नजर अता है । कजसका समाधान ऄम्बेडकर सशक्त कहंदू समाज में बताते है र्कयोंकक वह जानते थे कक कहंदू धमष न तो आसे मानने वािों के किए ऄफीम है और न ही यह ककसी को ऄपनी जकड़न में िेता है । वस्तुतः यह मानव को पूणष स्वतंत्रता देने वािा है । यह कचरस्थायी रुप से कवकास, संपन्नता तथा व्यकक्त व समाज को संपूणषता
रदान करने का एक साधन है । शायद माकष सवाकदयों को एक भारतीय नायक की जरुरत है और ऄम्बेडकर से ऄच्छा नायक ईन्हे कहां कमिेगा, आसकिए वह ऄम्बेडकर का पेटेंट करवाने में जुट गए है । डॉ. ऄम्बेडकर के पास भारतीय समाज का अंखों देखा ऄनुभव था, तीन हजार वषों की पीड़ा भी थी । आसकिए ऄम्बेडकर सही ऄथों में भारतीय समाज की ईन गहरी वस्तुकनष्ठ सच्चाआयों को समझ पाते हैं, कजन्हें कोइ मार्कसषवादी नहीं समझ सकता ।
ऄम्बेडकर का सपना था कक समतामूिक समाज हो, शोषण मुक्त समाज हो, दरऄसि अज ईनका यही सपना सबसे
ज्यादा रासंकगक है और आसी के कारण ऄम्बेडकर भी सबसे ज्यादा रासंकगक है । ईनके समूचे जीवन और कचंतन के कें द्र में यही एक सपना है । एक जाकतकवहीन, वगषकवहीन, सामाकजक, अकथषक, राजनीकतक, िैंकगक और सांस्कृ कतक
कवषमताओं से मुक्त समाज । ऐसा समाज बनाने के किए कहंदू समाज का सशक्तीकरण सबसे पहिी राथकमकता होगी । यही ऄम्बेडकर की सोच और संघषष का सार है । अज ऄम्बेडकर आस देश की संघषषशीि और पररवतषनकारी समूहों के हर महत्प्वपूणष सवाि पर रासंकगक हो रहे हैं, आसी कारण वह कवकास के किए संघषष के रेरणा स्रोत भी बन गए है । मेरा
मानना है कक कहंदुत्प्व के सहारे ही समाज में एक जन-जागरण शुरू ककया जा सकता है । कजसमें कहंदू ऄपने संकीणष मतभेदों से उपर ईठकर स्वयं को कवराट्-ऄखंड कहंदुस्तानी समाज के रूप में संगकठत कर भारत को एक महान राष्ट्र बना सकते हैं ।( स्रोत: http:// www. spandanfeatures. com /)
आज के समय में आददवासी दवमर्श को लेकर चलने लगी है । वहीं उनके उपेदित जीवन वृत् प्रमादणक और सर्क्त रूप से दजश हो रहा आददवादसयों की आवाज़ अलग- अलग भा सुनाई पड़ती है । दवगत वषों में भारत के अल गोंड, कबूतरा, कां जर, दमज़ो, सहररया आदद प भाषाओां में सदिय लेखन आददवासी दवमर्श क
आददवासी भारत के मूल बादर्ांदा, इस धरती क का सहयात्री जो सहनर्ीलता की हद तक सह उसके पास अदभव्यदक्त की ताकत नहीं थी दफर माध्यम से अदभव्यक्त होता रहा । आज आददव माध्यमों से अपने अदधकारों की लडाई लड रह
इसी श्ृ ांखला में मराठी उपन्यासकार बाबाराव अनवरत जीवन सांघषश का दमतावेज़ है ।‘ आ दजसका दहांदी अनुवाद तोंडाकु र लक्ष्मण पोत आददवादसयों का जीवन गैर आददवादसयों के लोगों के आने से पूवश दकस तरह सब खुर्हाल था । जो सेठ प्यारेलाल जैसे गैर आददवादसयों र्ोषण और दवमथापन जैसी अनेक सममयाओ उपन्यास का मुख्य पात्र भीम्या के नेतृत्व में आ के दवरूद्ध एकजुट होते हैं । आददवासी उनके द जांगल और ज़मीन को नष्ट कर दवकास की क मुख्यधारा की अवधारणा से है । यहााँ उपन्यास दनवास करते इन जनसमूहों को उनके जमीनों स की बातें हो रही हैं, दजन्होने दवकास के र्ोध
Vol. 2, issue 14, April 2016. वर्ष 2, अंक 14, अप्रैल 2016. Vol. 2, issue 14, April 2016.