Jankriti International Magazine vol1, issue 14, April 2016 | Page 146

जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका / Jankriti International Magazine( बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की 125वीं जयंिी पर समतपिि अंक)
ISSN 2454-2725
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिक
( बाबा साहब डॉ. भीमराव अ
वतषमान समय में देश ओर दुकनयां में ऐसी धारणा बनाइ जा रही है कक ऄम्बेडकर के वि दकितों के नेता थे । ईन्होंने के वि दकित ईत्प्थान के किए कायष ककया यह सही नहीं होगा । मुझे यह कहने में कोइ संकोच नहीं कक ईन्होंने भारत की अत्प्मा कहंदूत्प्व के किए कायष ककया । जब कहंदूओं के किए एक कवकध संकहता बनाने का रंसग अया तो सबसे बड़ा सवाि कहंदू को पाररभाकषत करने का था । डॉ. ऄम्बेडकर ने ऄपनी दूरदृकि से आसे ऐसे पाररभाकषत ककया कक मुसिमान, इसाइ, यहूदी और पारसी को छोड़कर आस देश के सब नागररक कहंदू हैं, ऄथाषत कवदेशी ईद्गम के धमों को मानने वािे ऄकहंदू हैं, बाकी सब कहंदू है । ईन्होंने आस पररभाषा से देश की अधारभूत एकता का ऄद्भूत ईदाहरण पेश ककया है ।
अम्बेडकर की आहथषक दृहि और वर्षमान में उसकी प्रासंहिर्ा ऄम्बेकडर का सपना भारत को महान, सशक्त और स्वाविंबी बनाने का था । डॉ. ऄम्बेडकर की दृकि में रजातंत्र व्यवस्था सवोतम व्यवस्था है, कजसमें एक मानव एक मूल्य का कवचार है । सामाकजक व्यवस्था में हर व्यकक्त का ऄपना ऄपना योगदान है, पर राजनीकतक दृकि से यह योगदान तभी संभव है जब समाज और कवचार दोनों रजातांकत्रक हों ।
अकथषक कल्याण के किए अकथषक दृकि से भी रजातंत्र जरुरी है । अज िोकतांकत्रक और अधुकनक कदखाइ देने वािा देश, ऄम्बेडकर के संकवधान सभा में ककये गए सत्त वैचाररक संघषष और ईनके व्यापक दृकिकोण का नतीजा है, जो ईनकी देख-रेख में बनाए गए संकवधान में कक्रयाकन्वत ह अ है, िेककन कफर भी संकवधान वैसा नहीं बन पाया जैसा ऄम्बेडकर चाहते थे, आसकिए वह आस संकवधान से खुश नहीं थे । अकखर ऄम्बेडकर अजाद भारत के किए कै सा संकवधान चाहते थे?
हिक्षा, रोज़िार और आरक्षण ऄम्बेडकर चाहते थे कक देश के हर बच्चे को एक समान, ऄकनवायष और मुफत कशक्षा कमिनी चाकहए, चाहे व ककसी भी जाकत, धमष या वगष का र्कयों न हो । वे संकवधान में कशक्षा को मौकिक ऄकधकार बनवाना चाहते थे । देश की अधी से ज्यादा अबादी बदहािी, गरीबी और भूखमरी की रेखा पर ऄमानवीय और ऄसांस्कृ कतक जीवन जीने को ऄकभशि है ।
आस अबादी की अकथषक सुरक्षा सुकनकश्रत करने के किए ही ऄम्बेडकर ने रोजगार के ऄकधकार को मौकिक ऄकधकार बनाने की वकाित की थी । संकवधान में मौकिक ऄकधकार न बन पाने के कारण 20 करोड़ से भी ज्यादा िोग
बेरोजगारी की मार झेि रहे है । बाबा साहब ने दकित वगो के किए कशक्षा और रोजगार में अरक्षण कदए जाने की वकाित की थी ताकक ईन्हें दूसरो की तरह बराबर के मौके कमि सकें । ऄगर कशक्षा, रोजगार और अवास को मौकिक
ऄकधकार बना कदया जाता तो ईन्हें अरक्षण की वकाित की शायद जरूरत ही न होती ।
डॉ. ऄम्बेडकर रजातांकत्रक सरकारों की कमी से पररकचत थे, आसकिए ईन्होंने सधारण कानून की बजाय संवैधाकनक
कानून को महत्प्व कदया । वतषमान में हम देख रहे है कक ककस रकार सरकारें ऄपने स्वाथष और वोट-बैंक के किए कानूनों की मनमानी व्याख्या करना चाहती है, आसके किए हम ईतर रदेश में ऄकतकपछड़ों और ऄकतदकितों या अंध्र रदेश में
मुसकिम अरक्षण और धमाांतररत इसाआयों या मुस्िमानों के किए रंगनाथ कमीशन की ररपोटष को देख सकते है जो सरकारों के कहसाब से तय होते हैं । मजदूर ऄकधकारों पर ऄम्बेदकर का मानना था कक वणष व्यवस्था के वि श्रम का ही कवभाजन नहीं है, यह श्रकमकों का भी कवभाजन है । दकितों को भी मजदूर वगष के रूप में एककत्रत होना चाकहए । मगर यह
एकता मजदूरों के बीच जाकत की खाइ को कम र्कयोंकक यह भारतीय समाज की सामाकजक संर
राजनीहर्क सिक्तीकरण ऄम्बेडकर भारतीय दकितों का राजनीकतक स सीटें ऄनुसूकचत जाकतयों के किए और 41 संकवधान संशोधन कर यह राजनीकतक अरक्षण यह राजनीकतक अरक्षण आन समूहों का ककतन ऄपना जनसमथषन खो देने के डर से कोइ भी रा
देखा जाए, तो दि-बदि कानून के रहते यह
मजी से वोट कर सके । हमने देखा है कक कु छ था, आन वगो के ऄकधकारों के किए, पाटी ि ऄम्बेडकर दूरदशी नेता थे ईन्हें ऄहसास था कक
भी जानते थे कक कसफष अरक्षण से सामाकजक ज्ञानी जैि कसह, बाबू जगजीवन राम, मायावत
गढे जाते रहे हैं ।
ऄम्बेडकर का पूरा जोर दकित-वंकचत वगों में एक सीमाबद्व तरकीब थी । दुभाषग्य से अज ईन के 67 सािों में भी ऄगर भारतीय समाज आन पूरे संवैधाकनक रावधानों पर नइ सोच के साथ जा सके । ऄम्बेडकर का मत था कक राष्ट्र व्यक बनता है । डॉ. ऄम्बेडकर के कवचार से राष्ट्र एक को सुसंस्कृ त तथा राष्ट्रीय जीवन से जुड़ा होन के द्र बनाना चाहते थे । वह व्यकक्त को साध्य औ
डॉ. ऄम्बेडकर ने आस देश की सामाकजक-सांस् कहा कक भारत में ककसी भी अकथषक-राजनी पंकडत दीनदयाि ईपाध्याय ने भी ऄपनी कवचा सीढी पर जो बैठा हअ है, सबसे पहिे ईसक समाज की ऄंकतम सीढी पर जो िोग है ईनका तभी ऄथषपूणष हो सकता है जब भौकतक रगकत कवशेषता, भारत का किचर, भारत की संस्कृ क
Vol. 2, issue 14, April 2016. वर्ष 2, अंक 14, अप्रैल 2016. Vol. 2, issue 14, April 2016.