( स्रोत: http:// www. spandanfeatures. com /)
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका / Jankriti International Magazine( बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की 125वीं जयंिी पर समतपिि अंक)
ISSN 2454-2725
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिक
( बाबा साहब डॉ. भीमराव अ
ज्योकतबा फु िे एवं ईनकी पत्प्नी साकवत्री बाइ है ।
डॉ. अम्बेडकर का पूरा संघषि तहंदू समाज ओर राष्ट्र के सशक्तीकरण का ही था । डॉ. अम्बेडकर के तिन्िन और दृति को समझने के तिए यह ध्यान रखना जरूरी है तक वे अपने तिन्िन में कहीं भी दुराग्रही नहीं है । उनके तिन्िन में जड़िा नहीं है । अम्बेडकर का दशिन समाज को गतिमान बनाए रखने का है । व िमान समय में राजनीतिक सुतवधा के तहसाब से हर कोई डॉ. अम्बेडकर को अपने अपने िरीके से पररभातषि करने में िगा हुआ है, कु छ उन्हें देविा बनाने में िगे हैं िो कु छ उन्हें के वि दतििों की बपौिी मानिे हैं और कई उन्हें तहन्दुओं के तवरोधी नायक के रूप में रखिे हैं । और िो और, भारि के कु छ मार्कसिवादी उन्हें मार्कसि के अग्रदूि के रुप में देखिे हैं । कु छ अम्बेडकर के धमि-पररव िन के सही ममि को समझे तबना ही आज दतििों को तहंदुओं से अिग कर उन्हें एक धमि के रूप में रखने की मांग करने िगे हैं ।
कोइ आस पर बात ही नहीं करना चाहता कक डॉ. ऄम्बेडकर का पूरा संघषष कहंदू समाज ओर राष्ट्र के सशक्तीकरण का ही था । डॉ. ऄम्बेडकर के कचन्तन और दृकि को समझने के किए यह ध्यान रखना जरूरी है कक वे ऄपने कचन्तन में कहीं भी दुराग्रही नहीं है । ईनके कचन्तन में जड़ता नहीं है । ऄम्बेडकर का दशषन समाज को गकतमान बनाए रखने का है । कवचारों का नािा बनाकर ईसमें समाज को डुबाने-वािा कवचार नहीं है । ऄम्बेडकर मानते थे कक समानता के कबना समाज ऐसा है, जैसे कबना हकथयारों के सेना । समानता को समाज के स्थाइ कनमाषण के किये धाकमषक, सामाकजक, राजनीकतक,
अकथषक एवं शैक्षकणक क्षेत्र में तथा ऄन्य क्षेत्रों में िागू करना अवश्यक है । डॉ. ऄम्बेडकर मानते थे कक धमष की स्थापनायें जीवन के किये ईत्प्रेरक होती है, आसी कारण से वे मार्कसषवाद के पक्ष में नहीं थे ।
ह ंदू समाज में सामाहजक बदलाव के वा क थे- अम्बेडकर भारत के सवाांगीण कवकास और राष्ट्रीय पुनरुत्प्थान के किए सबसे ऄकधक महत्प्वपूणष कवषय कहंदू समाज का सुधार एवं अत्प्म-ईद्धार है । कहंदू धमष मानव कवकास और इश्वर की राकि का स्रोत है । ककसी एक पर ऄंकतम सत्प्य की मुहर िगाए कबना सभी रुपों में सत्प्य को स्वीकार करने, मानव-कवकास के ईच्चतर सोपान पर पह ंचने की गजब की क्षमता है, आस
धमष में! श्रीमद्भगवद्गीता में आस कवचार पर जोर कदया गया है कक व्यकक्त की महानता ईसके कमष से सुकनकश्रत होती है न कक जन्म से । आसके बावजूद ऄनेक आकतहाकसक कारणों से आसमें अइ नकारत्प्मक बुराआयों, उं च-नीच की ऄवधारणा,
कु छ जाकतयों को ऄछू त समझने की अदत आसका सबसे बड़ा दोष रहा है । यह ऄनेक सहस्राकददयों से कहंदू धमष के जीवन का मागषदशषन करने वािे अध्याकत्प्मक कसंद्धातों के भी रकतकू ि है ।
कहंदू समाज ने ऄपने मूिभूत कसंद्धातों का पुनः पता िगाकर तथा मानवता के ऄन्य घटकों से सीखकर समय समय पर अत्प्म सुधार की आच्छा एवं क्षमता दशाषइ है । सैकड़ों सािों से वास्तव में आस कदशा में रगकत हइ है । आसका श्रेय अधुकनक काि के संतों एवं समाज सुधारकों स्वामी कववेकानंद, स्वामी दयानंद, राजा राममोहन राय, महात्प्मा
आस बार कजस बात ने राष्ट्र का ध्यान अककषषत संघ के तरफ से कहा गया है –‘ जैसे बुद्ध के समय में समाज को बुराआयों से मुक्त कराने का थे । ईनके पहिे वीरसावरकर, महामा गांधी ऄम्बेडकरवादी ऄकभभूत हैं ।
आस संदभष में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तथा आसस सामाकजक समानता पर जोर दे रहे है । संघ के
पाप नहीं है तो आस संसार में ऄन्य दूसरा कोइ ऄकधकांश ईन्हीं साहसी ब्राह्राणें व क्षकत्रयों के
शासकों द्वारा जबरन धमष पररवतषन स्वीकार न ईन्होंने कहंदुत्प्व को नीचा कदखाने की जगह खुद
कहंदू समाज के आस सशक्तीकरण की यात्रा को
न ही वे पक्षपाती थे । दकितों को सशक्त करन ओर राष्ट्र को सशक्त करने का ऄकभयान था ।
ईतने ही रासंकगक है कक ऄगर समाज का एक सशक्त कै से हो सकता है?
वे बार बार सवणष कहंदुओं से अग्रह कर रहे बनेगा । डॉ. ऄम्बेडकर का मत था कक जहां सभ धारणा जन्म िेगी । अशा के ऄनुरूप ईतर न ऄंग्रेजी सरकार ने भिे ही दकित समाज को समस्या कानून की समस्या नहीं है । यह कहंदू स समाज के कवकभन्न वगो को अपस में जोड़ने क
ऄम्बेडकर ने भिे ही कहंदू न रहने की घोषण ईन्होंने आन कवदेशी धमों में जाना ईकचत नहीं म सकते र्कयोंकक वे ऄपने धमष का पािन करते ह और इसाआयत ग्रहण करने वािे दकितों की द ईठाना पड़ता है । कवदेशी धमों को ऄपनाने से व्
Vol. 2, issue 14, April 2016. वर्ष 2, अंक 14, अप्रैल 2016. Vol. 2, issue 14, April 2016.