Jankriti International Magazine vol1, issue 14, April 2016 | Page 144

जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका / Jankriti International Magazine( बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की 125वीं जयंिी पर समतपिि अंक)
ISSN 2454-2725
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिक
( बाबा साहब डॉ. भीमराव
लगता है । जैसे वकतना बड़ा पाप सुक्खा ने कर वदया । पांवडत धमय का हवथयार लेकर कहता है " प्रायवित करना पड़ेगा तुझे सुक्खा- प्रायवित । जल्दी से ाऄपने बेटे को शहर से वापस बुला और प्रायवित करने का ाईपाय कर ।" 15 यहााँ तक वक सुक्खा को खेत-खवलयान में घुसने के वलये सख्त मना वकया जाता है या यू ां कहे वक ाईसको सभी कामों से रोक वदया जाता है । ाअवखर ाऄपने पुि को शहर भेज कर पढाना क्या ाआतना बड़ा गुनाह है? ओमप्रकाश वाल्मीवक का कथन है वक " सामावजक ववपन्नता के बावजूद सुक्खा ाऄपने ाआकलौते बेटे को शहर पढ़ने भेजता है । यह मामूली-सी घटना गाांव के ाअपसी सांबांधो के खोखलेपन और दामन के हथकां डो को ाईखाड़कर रख देती है ।" 16
' ाऄांधेरी बस्ती ',' यह ाऄांत नहीं ',' ाऄांगारा ',' मांगली ',' पहचान ' ाअवद ाऄनेक कहावनयों में नारी के दैवहक ाअक्रमणों के ववरुि सांघषय करने की शवि वदखती है । तो वहीं ' रीत ' कहानी में ववरासत से चली ाअ रही परम्परा को तोड़ा जाता है, वजसमे नववववावहता को पहली रात जमींदार के घर गुजारनी पड़ती थी ।
कहानी का मूल्याांकन करते हुए वलखती ह मवन्दर-प्रवेश ऐसा ाऄवधकार नहीं है, वजसे ाऄ समानता का ाऄवधकार है । यह ाईसी तरह का को चचय में और एक वसख को गरुद्वारा में जान
वहांदी कथा सावहत्य में दव, ाऄसमानता और ाईत्पीड़न की समस्त घटन सावहत्य के माध्यम से दवलत ाऄवस्मता को सामवजक, ाअवथयक और शैवक्षक न्याय की ब
ाआसी तरह ' यह ाऄांत नहीं ' कहानी के माध्यम से वकस तरह दवलत वस्त्रयों के साथ बलात्कार जैसे घटना होने पर भी वहाां की कानून व्यवस्था ाईनका साथ नहीं देती है और कहती है वक '' फू ल वखलेगा तो भौरें मांडराएांगे ही... ।" 17 ' यह ाऄांत नहीं ' कहानी की नावयका वबरमा के साथ छेड़खानी जैसी घटना जब होती है तो वहाां का पुवलस ाआांस्पेक्टर वबरमा की ररपोटय नहीं वलखता है । वो कहता है " छेड़ाखानी हुाइ है... बलात्कार तो नहीं हुाअ... तुम लोग बात का बतांगड़ बना रहे हो । गाांव में राजनीवत फै लाकर शाांवत भांग करना चाहते हो । मै ाऄपने ाआलाके में गु ांडागदी नहीं होने दू ाँगा... चलते बनो ।" 18
डॉ. कु सुम मेघवाल की ' मांगली ' कहानी भी चवचयत है जो शोषक एवां बलात्कारी पुरुषों पर शेरनी की तरह जवाब हमला करने वाली स्त्री की कहानी है । मांगली एक मजदूर और ववधवा औरत है । ठेके दार के झाांसे में ाअकर वो ाईसके सवेंट क्वाटयर में रहने लगती है पर ठेके दार की सहानुभूवत एक षड्यांि था, जो सांरक्षण की ाअड़ में ाईसका भक्षण करना चाहता है । जब ठेके दार मांगली से जबरदस्ती करना चाहता है तो मांगली ाईसका वशकार नहीं होती बवल्क शेरनी की तरह ाईसका सामना करती है " मांगली ने फु ती से ाऄपना घू ाँघट हटा वलया और ाअव देखा न ताव, ाऄपने चूल्हे के पास पड़ी जलावन की मोती लकड़ी ाईठााइ और दे मारे ठेके दार के वसर में । ठेके दार को मांगली के ाऄांदर वछपी एस नारी शवि का भान नहीं था ।" 19
जावत-व्यवस्था होने के कारण ब्राह्मणों का वचयस्व होना ाअम बात है और ाइश्वर एवां मवन्दरों पर ाआनका जन्मवसि ाऄवधकार है । वजसके कारण वनम्न जावत के लोगों को मवन्दर नहीं जाने वदया जाता है । ाआसी क्रम में वववपन वबहारी की कहानी ' वगि ' प्रमुख है । जो ब्राह्मण व्यवस्था को चुनौती देती है और मवन्दर-प्रवेश के वनषेध पर क्रोवधत होकर ाअपनी जावत वालो के वलये ाऄलग मवन्दर वक स्थापना करता है । रजत रानी ' मीनू ' ाआस
15 छप्ऩर- जयप्रकाश कदूम, ऩृष्ठ संख्या-36
16 संचेिना- ओमप्रकाश वाल्मीकक. ऩृष्ठ संख्या-82
17 यि अंि निीं- ओमप्रकाश वाल्मीकक
18 यि अंि निीं- ओमप्रकाश वाल्मीकक
19 मंगऱी- डॉ. कु सुम मेघवाऱ
20 हिंदी दलऱि किा-साहित्य- रजि रानी ' मीनू '
Vol. 2, issue 14, April 2016. वर्ष 2, अंक 14, अप्रैल 2016.
Vol. 2, issue 14, April 2016.