Jankriti International Magazine vol1, issue 14, April 2016 | Page 143

जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका / Jankriti International Magazine( बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की 125वीं जयंिी पर समतपिि अंक)
ISSN 2454-2725
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिक
( बाबा साहब डॉ. भीमराव
' ठाकु र का कु ाअां ' कहानी के सांदभय में वलखते हैं " ठाकु र का कु ाअां के वल एक कु ाअां नहीं है, बवल्क सारा वहांदू समाज ठाकु र का कु ाअां है, वजसमें ाऄछू तों को डूब मरने की सुववधा तो है पीने का पानी लेने की सुववधा नहीं है ।" 7
प्रेमचांद ने ाऄपने कथा सावहत्य में दवलत चेतना को बखूबी ाईजागर वकया है । लेवकन ाईनके दवलत चेतना पर ाऄनेक सवाल भी ाईठाये गए । ' कफ़न ' कहानी में घीसू व माधव के ाऄमानवीय होने का वचिण वकया है और घीसू व माधव के चररि से ाऄपना ाऄपमान दवलत समाज समझते है । वही ' गोदान ' ाईपन्यास में एक पाि से कहलवाया गया है वक " हम या तो ाअज मातादीन को चमार बना देंगे या ाईनका और ाऄपना रि एक कर देंगे... तुम हमें ब्राह्मण नहीं बना सकते तो हम तुम्हें चमार बना सकते है ।" 8 पर सवाल ाईठता है वक क्या ब्राह्मण को चमार बना देने से या खुद ब्राह्मण बनने की लालसा से ाआस समस्या का समाधान हो सकता है!
" रहने दो हमें ाऄछू त, वहांदू हमें बनावो ना कु वें से हमें वनकालो ना, खाते से हमें वगराओ न ।" 9
पाांडेय बेचन शमाय ' ाईग्र ' के ाईपन्यास में ' बधुाअ की बेटी ' में ाअश्रय-ववहीन भांगी जावत की स्त्री की समस्याओां का वचिण है । रेणु की रसवप्रया, ठेस ाअवद कहावनयाां दवलत पािों के जीवन पर ाअधाररत है, वजनमें जावत भेद के सांबांधो के ाऄन्तर को सटीक रूप से वदखाया गया है । वहीं जगदीश चन्द्र का ाईपन्यास ' धरती धन ना ाऄपना ' में दवलतों की सामावजक, ाअवथयक और साांस्कृ वतक वस्थवत को वदखाया है । " वजस भूवम पर वो रहते हैं, वजस जमीन को जोतते है, यहााँ तक वक वजन पर छप्परों में रहते हैं । ाईनका ाऄपना नहीं है ।" 10
रमवणका गुप्ता की कहानी ' बह जुठााइ ' भी ाआस परम्परा में मुख्य है । वजसमें वबहार के सामांती प्रथा के शोषण की कथा है । ाआस कथा में लम्बे समय से दवलत वगय के साथ होने वाले शोषण को वदखाया गया है । ाआस कहानी में दवलत वगय के नववववावहता को पहली रात गाांव के सामांत के घर गुजारनी पड़ती है । लेवखका ने दवलत युवाओां में ाऄनुवचत कायों के ववरोध में लड़ने का साहस ाआस कहानी के माध्यम से वदखया है ।
दवलत सावहत्य का ाईद्देश्य समझाते हुए रजत रानी ' मीनू ' वलखती है " दवलत सावहत्य का ाईद्देश्य वकसी को पददवलत बनाना नहीं स्वयां ाईससे मुि होने का प्रयास ही दवलत सावहत्य है ।" 11 ाआसीवलए गैर दवलत लेखन पर प्रमावणकता का प्रश्न लगाया गया तथा ाऄपने द्वारा भोगे गये यथाथय को ही ाऄपने ाऄनुभव को ही दवलत सावहत्य का यथाथय माना गया ।
दवलत कथाकारों पर गााँधी और माक्सय के प्रभाव के बजाए डॉ. ाऄांबेडकर के वचांतन का ाऄवधक प्रभाव है । दवलत समाज में एक प्रथा थी वक भांगी समाज में ाऄगर कोाइ रस्म या वववाह हुाअ करता था तो
7 िंस- मैनेजर ऩांडेय, अक्टूबर 1992
ाईस ाऄवसर पर नववववावहत वर और वधु क ाआसी प्रथा पर ओमप्रकाश वाल्मीवक की क ाआसके माध्यम से दवलतों के ाऄपमावनत तथ स्वातन््य चेतना का सन्देश वदया है । ाआस कह
ओम प्रकाश वाल्मीवक स्त्रोत वाल्मीवक समाज का सबसे बड़ा सच सचमुच ाआस रीवत को तोड़ा था । मेरे भााइ ज कर वदया था वक मेरा बेटा सलाम नहीं करने जाने वदया था ।" 12
' शवयािा ' दवलत दूसरे दवलत का शोषण करता है । ाआस कहा कहानी के नायक सूरजा बल्हार का न पक्क होने देते है । " ाऄांटी में चार पैसे ाअ गए तो हमारी छाती पर हवेली खादी करेंगे... वह ज... रहते रहो... वकसी को एतराज नहीं होगा ।" 13 और यहााँ तक की सही ाईपचार न होने प तक नहीं देते है । ाआसी तरह ओमप्रकाश वाल् वचिण और ाईसकी ाऄवस्मता की एक पहचान
सूरजपाल चौहान मानवसकता के ाऄहां की पराकाष्ठा का वचिण ' वतकोनी हांसी ' और ' ाऄाँधेरे के बीचो-बीच ' प्र वचिण वकया है । ाआनमें ाईनकी ' सुरांग ' कह ववभागाध्यक्ष से ही नहीं बवल्क स्वयां की ाअ हो गए थे । घर में वपताजी बीमारी से लड़ रह बच्चों के बाप हो कर पढ रहे हैं । मै पुनाः सो
जयप्रकाश कदयम क वहांदू धमय के रक्षक ब्राह्मण के प्रपांच के वशका बावजूद भी ाऄपने पुि को शहर पढ़ने के वल
8 गोदान- प्रेमचंद, ऩृष्ठ संख्या-223
9 हिंदी में उदू ू साहित्य-भगवान दास, ऩृष्ठ संख्या-114
10 धरिी धन न अऩना-जगदीश चंद्र, ऩृष्ठ संख्या-8
11 हिंदी दलऱि किा-साहित्य- रजि रानी ' मीनू ', ऩृष्ठ संख्या-27
12 जूठन- ओमप्रकाश वाल्मीकक, ऩृष्ठ संख्या-46
13 शवयािा- ओमप्रकाश वाल्मीकक, ऩृष्ठ संख्या- 1
14 सुरंग- डॉ. दयानंद बटोिी, ऩृष्ठ संख्या-11
Vol. 2, issue 14, April 2016. वर्ष 2, अंक 14, अप्रैल 2016.
Vol. 2, issue 14, April 2016.