जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका / Jankriti International Magazine( बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की 125वीं जयंिी पर समतपिि अंक)
ISSN 2454-2725
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिक
( बाबा साहब डॉ. भीमराव
सामावजक चेतनाएां और ाऄवधकार के प्रश्न वफर से पररभावषत हों । ये ाऄवस्मताएां समाज के ाऄवस्तत्व को ाऄवधक ठोस और मूतय बनाती है ।
दवलत ववमशय ाऄवनवाययताः सामावजक सांरचनाओां और ववचारधारात्मक वनवमयवतओां के मुकाबले ाईभरता है । सावहत्य के क्षेि में दवलत-ववमशय या दवलत सावहत्य का सबसे पहले वजक्र साठ के दशक में महाराष्र में हुाअ । मराठी में दवलत सावहत्य का प्रादुभायव दवलत ाअांदोलन के फलस्वरूप हुाअ । वहांदी दवलत सावहत्य का ाईद्भव बीसवीं शताब्दी के नौवें दशक से माना जाता है । दवलत सावहत्य वकसे कहते है? ाआसे लेकर मतभेद रहा हों वकां तु ाआतना स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है ाआस वववशष्ट सावहवत्यक ाऄवधारणा का ाअधार ाऄम्बेडकरवादी ववचारधारा है । ओमप्रकाश वाल्मीवक का मत है वक " वणय-व्यस्था में ाईपजी घोर ाऄमानवीयता, स्वतांिता-समता ववरोधी सामावजक ाऄलगाव की पक्षधर सोच पररववतयत कर बदलाव की प्रवक्रया तेज करना दवलत सावहत्य की मूल सांवेदना है । डॉ ाऄम्बेडकर और ज्योवतबा फू ले की जीवन-दृवष्ट दवलत सावहत्य की ाउजाय है ।" 2
दवलत सावहत्यकारों एवां ाईसके ाईत्पीड़न के ाआवतहास को देखें तो वह प्राचीन काल से ही दवलत और गैर-दवलतों में ाऄलग-ाऄलग परम्पराएां रही है । जहाां प्राचीन में रामायण और महाभारत काल में एकलव्य और शम्बूक का प्रसांग वमलता है । जहाां एकलव्य का ाऄांगूठा द्रोण ने ाआसवलए कटवा वलया वक वह धनुववयद्या में सबसे महान और वनपुण न बन जाए । वही रामायण में शम्बूक के तपस्या करने पर ब्राह्मण वांश में हाहाकार मच जाता है और ब्राह्मणों को बच्चों की ाऄकाल मृत्यु होने का डर सताने लगता है । ाआसवलए मयायदा पालन के नाम पर शुद्र ाईपासक शम्बूक की हत्या राम से कराते है । दवलत समाज का ये एक रूप हमें शुरूाअती दौर में देखने को वमलता है ।
मध्यकाल में दवलत समाज का एक ाऄलग रूप देखने को वमलता है । जो समाज में ाऄपने ाऄवस्तत्व के पहचान के वलये ाअवाज ाईठाते है । सम्पूणय सामावजक व्यवस्था के ताना-बाना और शास्त्र को चुनौती देते है परांतु वफर भी ाईस समय ाईन्हें ाऄपनी पहचान नहीं वमलती है । रैदास को सांत वशरोमवण की वसवि प्राप्त करने के बाद भी पांवडतो ने गांगा स्नान नहीं करने वदया था । ाआसवलए ाईन्हें ' कटौती में ही गांगा ' की घोषणा करनी पड़ी ।
ाअधुवनक काल में डॉ. ाऄम्बेडकर की वचांतन प्रणाली ने जरुर दवलत चेतना को मजबूती दी तथा सांववधान में सभी को समानता का ाऄवधकार देकर ाआस व्यवस्था में बदलाव वकया । परांतु समाज में यह ाऄसमानता ाअज भी मौजूद है ।
जावतप्रथा जैसी व्यवस्था ने ाऄभी भी ाअम जन को ाऄपनी वगरफ्त में फां सा रखा हैं । ाअजादी के काइ वषों के गुजरने के बाद में वस्थवत में कोाइ सुधर नहीं हैं । भारतीय समाज ाअज भी हीनता से ही वनम्न जावत के लोगों को देखती है, ाईनका शोषण करती है और ाअगे बढ़ने से हमेशा रोकती है । डॉ. श्यौराज वसांह बेचैन के शब्दों में " भारतीय समाज ववववधताओां का समाज है । जहाां ाअहार-ववहार, रोटी-बेटी के ररश्ते, धमय-जावतयों के भेद, जन्म और मौत तक की यािाएां ाऄपने ही जावत समूहों में सीवमत हों, वहाां समाज के सबसे ाउपरी स्तर का
व्यवि सबसे वनचली सीढी के समाज के साथ की ाऄपीलों और सुधारकों की कोवशशों के दुगयवत ाऄवधक हुाइ है ।" 3
वहांदी सावहत्य में ज बीसवीं शताब्दी के नवीं दशक से होता है । दवलत समाज की ाअवाज बनते है । वजसे स दूर करना था । डॉ. ववमल थौरात ाआस सांदभ ाऄस्पृश्यता ववरोधी ाअांदोलन का सावहवत्यक कहा जा सकता । वह सामावजक ववषमता वम
वहांदी सावहत्य में रूप में दवलत सावहत्य की एक लांबी परम्पर सावहत्य प्रचुर मािा में वलखा जा रहा है । दव एवां ाईसकी ाऄवस्मता के पहचान के वलये ल लेखन पर प्रश्न वचह्न लगते है तथा मानते है क दवलतों द्वारा वलखा गया सावहत्य दवलतों के
डॉ. शारण कु म दया की दृवष्ट होती है । हमें सहानुभूवत और द से नफरत है । यह दृवष्टकोण हमारे सवदयों क लगता है । गैर-दवलतों के सावहत्य को दवलत बात गैर-दवलतों के सांदभय में कह रहा ह ां ।" 5 वकन्ही-वकन्ही सावहत्यकारों और ाअलोचकों दवलत होना जरुरी नहीं है, जरुरी है वक दवलत
वहांदी कथा सावहत् दवलतों का ववषय बना कर ाऄनेक ाईपन्यास कफ़न, सवा सेर गेंह ाऄनेक रचनाएाँ है वजसम
3 िंस ऩत्रिका 1999, ऩृष्ठ संख्या-87
4 मराठी दलऱि कवविा और साठोत्तरी हिंदी कववि
5 किा मालसक िंस ऩत्रिका, हदसंबर 1995
2 प्रज्ञा साहित्य- ओमप्रकाश वाल्मीकक, अतिथि संऩादक
6 अमर उजाऱा, दैतनक रऩट-काशीनाि लसंि, 26-2
Vol. 2, issue 14, April 2016. वर्ष 2, अंक 14, अप्रैल 2016.
Vol. 2, issue 14, April 2016.