Jankriti International Magazine vol1, issue 14, April 2016 | Page 141

जनकृति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की 125वीं जयंिी पर समतपिि अंक) जनकृति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 रतव कुमार, शोधार्थी, तहदं ी तवभाग जातमया तमतलिया इस्िातमया, नई तदलिी मों. न.- 9716132750 (बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की 125वीं जयंिी पर समतपिि अंक) यही कारर् है लक उन्होंने स्वतिं भारत के प्रथम लवलधमिं ी रहते हुए ‘लहदं ू कोड लबि’ संसद में प्रस्ततु करते समय लहन्दू लस्त्रयों के लिए न्याय सम्मत व्यवस्था बनाने के लिए इस लवधेयक में व्यापक प्रावधान रखे । भारतीय संलवधान के लनमाणर् के समय में भी उन्होंने स्त्री-परू ु ष समानता को संवधै ालनक दजाण प्रदान करवाने के गम्भीर प्रयास लकए । अम्बेडकर के सामालजक लचन्तन में अस्पृश्यों, दलितों तथा शोलषत वगण के उत्थान के लिए काफी दशणन झिकता है । वे उनके उत्थान के माध्यम से एक ऐसा आदशण समाज स्थालपत करना चाहते थे लजसमें समानता, स्वतंिता तथा भ्रातृत्व के तत्व समाज के आधारभतू लसद्धांत हों । डॉ. अम्बेडकर एक महान सधु ारक थे लजन्होंने तत्कािीन भारतीय समाज में प्रचलित अन्यायपर्ू ण व्यवस्था में पररवतणन तथा सामालजक न्याय की स्थापना के जबरदस्त प्रयास लकए । उन्होंने दलितों, लपछड़ों, अस्पृश्यों के लवरूद्ध सलदयों से हो रहे अन्याय का न के वि सैद्धांलतक रूप से लवरोध लकया अलपतु अपने कायण किापों, आन्दोिनों के माध्यम से उन्होंने शोलषत वगण में आत्मबि तथा चेतना जागृत करने का सराहनीय प्रयास लकया । इस प्रकार अम्बेडकर का जीवन समलपणत िोगों के लिए सीखने तथा प्रेरर्ा का नया स्रोत बन गया । (स्रोत एवं आभार- http://www.essaysinhindi.com/) भारतीय समाज मल ू ताः ाऄनक ु रणमल ु क समाज है । जहाां वास्तववकता से ाऄवधक छाया को प्राथवमकता वमलती है और यही छायाएां समाज को सांचालन करने का कायय करती है । लेवकन ये छाया है कौन? भारतीय समाज वजसे वहदां ू समाज कहना ज्यादा बेहतर होगा । ाआस समाज को बनाने में ब्राह्मण या ाईच्च वगय का सवोच्च स्थान है पर ाआन्होंने ाआस सारे समाज को बनाने औ र ाईसके वनयमों का वनधायरण करने का वजम्मा ाइश्वर पर डाला और ाऄपने को ाइश्वर की छाया मान कर मनमाने ढांग से समाज का वनधायरण और सांचालन शरू ु कर वास्तववकता पर प्रश्न वचह्न लगा वदया । वहदां ू समाज की सामावजक पहचान का प्रश्न वणयव्यस्था से था । ाआस व्यस्था के ाऄनसु ार समाज चार भागों में ववभावजत है- ब्राह्मण, क्षविय, वैश्य और शद्रु । ाआस वणय भेद से जावत भेद का ववस्तार होता है । डॉ. ाऄम्बेडकर ाआस जावत प्रथा के मीनार को समझाते हुए वलखते हैं, "वहदां ू समाज एक मीनार की भावां त है और एक-एक जावत मीनार का एक तल है । ध्यान देने की बात यह है वक ाआस मीनार में सीवढयााँ नहीं है । एक तल से दसू रे तल में जाने-ाअने का कूाइ मागय नहीं हैं । जो वजस तल (जावत) में जन्म लेता है वह ाईसी तल में मरता है । नीचे के तल का व्यवि वकतना भी लायक हो पर ाउपर के तल में ाईसका प्रवेश सांभव नहीं । ाआसके ववपरीत ाउपर के तल का मनष्ु य चाहे वकतना भी नालायक हो ाईसे नीचे के तल में धके ल देने की वहम्मत वकसी में नहीं है ।"1 छाया और वास्तववकता के ाआस भेद को दरू करने के वलये ाऄनेक नायकों का ाईदय हुाअ । वजन्होंने वास्तववकता से ाअम जनता को रूबरू तो कराया ही साथ ही साथ हावशए के समाज को नयी ाअवाज भी प्रदान की थी । ाआनमे कबीर,रै दास, ाऄम्बेडकर, ज्योवतबा फूले, वबरसा मांडु ा ाअवद ाऄनेक ऐसे नायक ाईवदत हुए वजन्होंने समाज के बने बनाये सामावजक वनयमों को चनु ौती दी थी और साथ ही साथ एक नये समाज की सांकल्पना की थी जहाां सभी समान हो, सांपन्न हो । ाअधवु नकता के ाईदय से कुछ नये ाऄवधारणाओ ां के सिू ाईभरे थे - व्यवि, समाज और ाआवतहास । ाआन्हीं सिू ों ने ाईत्तर ाअधवु नकता में ववके न्द्रीकरण को जन्म वदया और वपछड़े, दवलत, स्त्री, ाअवदवासी सामावजक न्याय तथा क्षेविय ाऄवस्मता का सावहत्य काइ धाराओ ां में तीव्र गवत से ाअगे बढ़ने लगती हैं । समाज में ये धाराएां पहले भी ाऄवस्मता में थी परन्तु चेतना और वचांतन के स्तर पर ाआनका ाईभारना हाल की घटना है । ाआसवलए ाआसे ाऄवस्मता ववमशय कहा जाता है । ये ाऄवस्मता ाआस महत्त्व के साथ ाईभर कर सामने ाअाइ वक मानवीय और 1 Vol.2, issue 14, April 2016. वर्ष 2, अंक 14, अप्रैल 2016. मूकनायक - डॉ.बी.आर.अम्बेडकर,संऩादकीय Vol.2, issue 14, April 2016. वर्ष 2, अंक 14, अप्रैल 2016.