जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका / Jankriti International Magazine( बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की 125वीं जयंिी पर समतपिि अंक)
ISSN 2454-2725
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिक
( बाबा साहब डॉ. भीमराव अ
की भावना पैदा होगी । उन्होंने स्वयं अन्तजाणतीय लववाहों तथा सहभोजों को प्रोत्सालहत लकया । जब कभी इस प्रकार के अवसर उन्हें लमिते तो वे उनमें अवश्य ही सलम्मलित होते थे ।
दतलिों की तिक्षा, संघर्ि और संगठन पर बल:
अम्बेडकर का लवश्वास था लक दलितों के उत्थान में के वि उच्च वर्ो की सहानुभूलत और सद्भावना ही पयाणप्त नहीं है । उनका मत था लक दलितों का तो वास्तव में तब उत्थान होगा जबलक वे स्वयं सलक्रय तथा जागृत होंगे । इसलिये उन्होंने घोषर्ा की लक लशलक्षत बनो, आन्दोिन चिाओ और संगलठत रहो ।
दलित वगण की लशक्षा के बारे में अम्बेडकर का मत था लक दलितों के अत्याचार तथा उत्पीड़न सहन करने तथा वतणमान पररलस्थलतयों को सन्तोषपूर्ण मानकर स्वीकार करने की प्रवृलत का अन्त करने के लिए उनमें लशक्षा का प्रसार आवश्यक है । लशक्षा के माध्यम से ही उन्हें इस बात का आभास होगा लक लवश्व लकतना प्रगलतशीि है तथा वे लकतने लपछड़े हुए है । उनका मानना था लक दलितों को अन्याय, अपमान तथा दबाव को सहन करने के लिए मजबूर लकया जाता है ।
वे इस बात से दुखी थे लक दलित इस प्रकार की पररलस्थलतयों को लबना कु छ कहे स्वीकार कर िेते हैं । वे संख्या में अलधक होने के बावजूद उत्पीड़न को सहन कर िेते हैं, जबलक यलद एक अके िी चींटी पर भी पैर रख लदया जाए तो वह
प्रलतरोध करते हुए काट डािती है । इन पररलस्थलतयों को समाप्त करने के लिए अम्बेडकर दलितों में लशक्षा के प्रसार को बहुत महत्वपूर्ण मानते थे । उन्हें के वि औपचाररक लशक्षा ही नहीं अलपतु अनौपचाररक लशक्षा भी दी जानी चालहए ।
व्यवस्थातपका में दतलि वगि के पयािप्त प्रतितनतधत्व का समथिन:
अम्बेडकर का मानना था दलित वगण को अपने लहतों की रक्षा के लिए लवधायी कायों को अपने पक्ष में प्रभालवत करने के लिएं राजनीलतक सिा में पयाणप्त प्रलतलनलधत्व लमिना चालहए । अत: उनका सुझाव था लक के न्द्रीय तथा प्रान्तीय लवधान मंडिों में दलितों की भागीदारी हेतु पयाणप्त प्रलतलनलधत्व के लिए कानून बनाया जाना चालहए ।
इसी प्रकार उनका मानना था लक लनवाणचन कानून बनाकर यह व्यवस्था की जानी चालहए लक प्रथम दस वषण तक दलित वगण के वयस्क मतालधकाररयों द्वारा पृथक लनवाणचन के माध्यम से अपने प्रलतलनलध का लनवाणचन लकया जाना चालहए तथा बाद में दलित वगण हेतु आरलक्षत स्थानों पर सम्बलन्धत लनवाणचन क्षेि के सभी वयस्क मतालधकाररयों द्वारा लनवाणचन लकया जाना चालहए ।
Vol. 2, issue 14, April 2016. वर्ष 2, अंक 14, अप्रैल 2016.
सेवाओं में पयािप्त प्रतितनतधत्व की मांग:
अम्बेडकर का मत था लक दलित वगण के उत् प्रलतलनलधत्व लदया जाना चालहए । उनके अनुस उनके अनुसार दलित वगण को सेवाओं में पयाणप्त प्रावधान करने चालहए ।
कायिपातलका में पयािप्त प्रतितनतधत्व की म
डॉ. अम्बेडकर का मानना था लक दलित वगण पयाणप्त प्रलतलनलधत्व लमिना चालहए । उनको भ उपेक्षा होने की संभावना हो सकती है । लकन्त वह अपने अलधकारों तथा लहतों के प्रलत होने व लवशेष नीलतयों का लनमाणर् कर रचनात्मक क सकता है ।
अम्बेडकर को अस्पृश्य िोगों के प्रलत लहन्दू स दलितों को अपने सम्मान को बचाए रखने के उनका मानना था लक भारत में इस्िाम और
दलितों को भारत में प्रचलित एक अन्य धमण ब
उनका लवश्वास था लक बौद्ध धमण सामालजक अ कारर् था लक अम्बेडकर ने स्वयं अपने जी अम्बेडकर के लवचार महात्मा गांधी के लवचार पररवतणन करने माि से दलित वगों की लस्थलत म
नारी गररमा का समथिन: अम्बेडकर भारतीय समाज में लस्त्रयों की हीन लजसमें लस्त्रयों के प्रलत भेद-भाव का दृलष्टकोर् समाज का उत्थान आवश्यक माना । उनका म बहुत महत्वपूर्ण है । अम्बेडकर ने हमेशा स्त्री-प
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