Jankriti International Magazine vol1, issue 14, April 2016 | Page 139

जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका / Jankriti International Magazine( बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की 125वीं जयंिी पर समतपिि अंक)
ISSN 2454-2725
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिक
( बाबा साहब डॉ. भीमराव अ
अम्बेडकर का मत था लक उन्नत तथा कमजोर वगों में लजतना उग्र संघषण भारत में है वैसा लवश्व के लकसी अन्य देश में नहीं है । ऐलतहालसक आधारों पर अम्बेडकर ने यह स्पष्ट करने का प्रयास लकया लक शूद्रों की उत्पलि तथा हीनता का कारर् वे स्वयं न होकर ब्राह्मर्ों का जान-बूझकर लकया गया प्रयास था ।
जाति-प्रथा का तवरोध:
अम्बेडकर ने भारत में जालत-व्यवस्था की प्रमुख लवशेषताओं और िक्षर्ों को स्पष्ट करने का प्रयास लकया लजनमें प्रमुख लनम्न हैं- चातुवणर्ण पदसोपानीय रूप में वगीकृ त है । जातीय आधार पर वगीकृ त इस व्यवस्था को व्यवहार में व्यलियों द्वारा पररवलतणत करना असम्भव है ।
इस व्यवस्था में कायणकु शिता की हालन होती है, क्योंलक जातीय आधार पर व्यलियों के कायो का पूवण में ही लनधाणरर्
हो जाता है । यह लनधाणरर् भी उनके प्रलशक्षर् अथवा वास्तलवक क्षमता के आधार पर न होकर जन्म तथा माता लपता के सामालजक रिर के आधार पर होता है ।
इस व्यवस्था से सामालजक स्थैलतकता पैदा होती है, क्योंलक कोई भी व्यलि अपने वंशानुगत व्यवस्था का अपनी स्वेच्छा से पररवतणन नहीं कर सकता । यह व्यवस्था संकीर्ण प्रवृलतयों को जन्म देती है, क्योंलक हर व्यलि अपनी जालत के अलस्तत्व के लिए अलधक जागरूक होता है, अन्य जालतयों के सदस्यों से अपने सम्बन्ध दृढ़ करने की कोई भावना नहीं होती है ।
नतीजन उनमें राष्ट्रीय जागरूकता की भी कमी उत्पन्न होती है । जालत के पास इतने अलधकार हैं लक वह अपने लकसी भी सदस्य से उसके लनयमों की उल्िंघना पर दलण्डत या समाज से बलहष्ट्कृ त कर सकती है । अन्तजाणतीय लववाह इस व्यवस्था में लनषेध होते हैं । सामालजक लवद्वेष और घृर्ा का प्रसार इस व्यवस्था की सबसे बुरी लवशेषता है ।
इस प्रकार अम्बेडकर ने यह स्पष्ट करने का प्रयास लकया लक जालत-व्यवस्था भारतीय समाज की एक बहुत बड़ी लवकृ लत है, लजसके दुखभाव समाज के लिए बहुत ही घातक हैं । जालत व्यवस्था के कारर् िोगों में एकता की भावना का अभाव है, अत: भारतीयों का लकसी एक लवषय पर जनमत तैयार नहीं हो सकता । समाज कई भागों में लवभि हो गया । उनके अनुसार जालत व्यवस्था न के वि लहन्दू समाज को दुष्ट्प्रभालवत नहीं लकया अलपतु भारत के राजनीलतक, आलथणक
तथा नैलतक जीवन में भी जहर घोि लदया ।
अस्पृश्यिा का तवरोध िथा अछू िोद्धार: अम्बेडकर ने लहन्दू समाज में प्रचलित अस्पृश् ब्राह्मर्ों और शूद्र शासकों में अन्तद्वणन्द्व के कार
वर्ण ही हुआ करते थे । शनैुःशनैुः ब्राह्मर्वा प्रलतपालदत लनयमों को मानना आवश्यक माना
इन लनयमों को न मानने वािों को हेय माना ग लकया लक अस्पृश्यता के बने रहने के पीछे कोई
इस व्यवस्था का जोरदार शब्दों में खंडन लकय अस्पृश्यता का जड़ से लनराकरर् आवश्यक है
अम्बेडकर ने अस्पृश्यता के लनराकरर् के लिए लवलभन्न आन्दोिनों व कायों से िोगों में चेत लकए । उन्होंने अस्पृश्यता लनराकरर् के लिए रचनात्मक कायणक्रम तथा संगलठत अलभयान क
के कु छ महत्वपूर्ण सुझावों को इस प्रकार पररि
तहन्दू समाज की मान्यिाओं में पररव िन प अम्बेडकर लहन्दू समाज तथा लहन्दू धमण की उ संकीर्णता का जन्म होता है । उनका मानना
व्यवस्था स्थालपत करने के लिए कठोर लनयम ब्राह्मर्ों के एकालधकार को समाप्त करने का आ चालहए जो सामालजक अन्याय का समथणन करत
अन्िजाििीय तववाह का समथिन:
अम्बेडकर का मानना था लक लहन्दू समाज के मत में इसके लिए यह आवश्यक है लक समाज तो जालत व्यवस्था का बंधन स्वत: लशलथि ह
Vol. 2, issue 14, April 2016. वर्ष 2, अंक 14, अप्रैल 2016. Vol. 2, issue 14, April 2016.