Jankriti International Magazine vol1, issue 14, April 2016 | Page 14

जनकृति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की 125वीं जयंिी पर समतपिि अंक) जनकृति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine (बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की 125वीं जयंिी पर समतपिि अंक) मैं भी "अभभमन्यु" ही तो हूँ . उन्होंने कहा उन्होंने कहा गर्व से बोलो बोलो भारत माता की जय हम हहन्दू है मैंने पछ ू ा पीठ के जख्म आपकी तारीफ? अचानक हरे हो गए उन्होंने कहा आँखों की कोर तमु देशद्रोही हो तोड़ते हुए मैंने पछ ू ा ददव का स मदं र आप कौन होते है फूट पड़ा तय करने र्ाले? उन्होंने मैंने कहा डण्डा उठा हलया। उन्होंने कहा चपु रहो दरू हटो तमु नीच हो हसफव नीच और कुछ नही। Vol.2, issue 14, April 2016. ………. कई ददन हो गए मेरे शब्दों को आवाज दमले कई ददन हो गए वक्त के आईने में मझु े चक्कर काटते कई ददन हो गए रोशनी के बहाब में बहे हुए । दसर्फ एक दजदिं गी के दलए ये सब जरूरी है क्या ? ददफ और जीवन के दोपहर में ज्यादा अतिं र नहीं होता रथ के पदहये के टूटने का ददफ "कर्फ" से भला कौन बेहतर जनता होगा लेदकन इस अनुभव को कौन याद रखता है ? सनु ो ... जरा रुको... अपना चेहरा एक बार अपनी आखों से देखो जान जाओगे अपना भदवष्य एक पल में मझु े पहली बार लगा मैं भी "अदभमन्य"ु ही तो हूँ ! रास्ते तो मेरे दलए भी सरे बिंद है बस ये अर्वाह फ़ै ल गई है दक हम हहन्दू है वर्ष 2, अंक 14, अप्रैल 2016. ISSN 2454-2725 Vol.2, issue 14, April 2016. मेरे पास दवकल्प है मैं वीर हूँ कई ददन हो गए शतरिंज का खेल खेलते पर ढाई चाल का रहस्य नहीं जान पाया अपना बचाव नहीं कर पाया अपना रास्ता नहीं चनु पाया बहरहाल, मैं नहीं जान पाया की मैं स्वमिं के दलए ही एक चनु ौती हूँ सच कई ददन हो गए मेरे शब्दों को आवाज दमले कई ददन हो गए वक्त के आईने में मझु े चक्कर काटते कई ददन हो गए ..... ………………………………. मैं भिलोचन हो गया हूँ .....। मझु े रोज दमलते है नए चेहरे नए चौराहे नई मस्ु कान नई पहचान पग-पग बाहें र्ै लाये दमलते है नए दोस्त नए सपने नए दपफर् वर्ष 2, अंक 14, अप्रैल 2016.