Jankriti International Magazine vol1, issue 14, April 2016 | Page 13

जनकृति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की 125वीं जयंिी पर समतपिि अंक) मेमना एक जजस्म के साथ चला गया, मोबाइल एक जजस्म के साथ, चसू ा और चटा हुआ; प्रेम का अचार पड़ा रह गया, सीजढयों के नीचे, गल ु ाबी एहसासों वाले प्रेम को; नीली जफल्म बनते देर नहीं लगती, देखा था जजसे कल चाँद ने, आज सारी दजु नया देख रही है, जवस्वास की जलती जचता में, आँखें सेंक रही है, छोटे शहर के , एक बड़े अस्पताल में, एक छोटा सा, बड़ा काम कर जदया गया है, एक मेमना कल मार जदया गया है, जगरफ्त चाय से चाय छान कर अलग कर दें, तो काली चाय बचती है, ठीक उसी तरह जैसे ; भख ू से भख ू छान कर अलग कर देने पर, काली भख ू बचती है, काली चाय में जजतना दधू जमलाया जाता है, काली चाय उतनी ही सफ़े द हो जाती है, काली भख ू में जजतनी रोटी जमलाई जाती है, काली भख ू उतनी ही सफ़े द हो जाती है, दधू का रांग सफ़े द है, रोटी का रांग सफ़े द है, अफ़सोस दोनों सफ़े दी की जगरफ्त में है, जनकृति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की 125वीं जयंिी पर समतपिि अंक) जकसी जजन्दा लाश के बगल में, सर पर हाँथ रखे, बैठे हुए, डूबे हैं , रोटी की जफकर में, रोटी की जफकर, जकसी टूटे हुए नल से, टपकते हुए पानी की तरह होती है, जो टप..टप...टप...की जगह, रोटी...रोटी....रोटी करती है, रोटी की जफकर वो सवाल है, जो अध्यापक प्रश्नपत्र में दे तो देता है, पर उत्तर स्वयां नहीं जानता, सारी कक्षा के फे ल हो जाने के बाद, अध्यापक खदु फे ल हो जाता है, और वो सवाल जजदां गी के जलते हुए तावे पर, सेंक जदए जाते है, उन्हें भनु े हुए गोस्त की तरह पैर-पर-पैर चढ़ा कर, बड़े जकले के पीछे कुसी वाले खाते है, सवाल की रीढ़ की हड् डी का एक जसरा , जखजखया कर हँसता है एक जसरा रोजटया कर रोता है, और एक नहीं कई लाश अपने पीठ पर ढोता है, उन इसां ानों की लाश, जो आँखों को चौंजधया देने वाली चमक में, अँधेरी गली के अधां े मोड़ पर, मारे गए थे, सवालों के साथ मठु भेड़ में, जो सवाल बच गए हैं , Vol.2, issue 14, April 2016. वर्ष 2, अंक 14, अप्रैल 2016. Vol.2, issue 14, April 2016. वर्ष 2, अंक 14, अप्रैल 2016.