Jankriti International Magazine vol1, issue 14, April 2016 | Page 12
जनकृति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine
ISSN 2454-2725
(बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की 125वीं जयिं ी पर समतपिि अंक)
सगा सम्बन्धी , माँ , बहन चाची , ताई
उत्तम पष्ु प
और यहाँ तक शक बेटी भी नहीं जनता वह
तमु भी !...
जनकृति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine
(बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की 125वीं जयंिी पर समतपिि अंक)
उसके शलए ये सब हैं
अनुराग अनंत की कववताएँ-
शवपरीत शलंग
उसकी ज्ञानेशन्ियाँ
9418740772, 9816642167
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नहीं हई शवकशसत
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देखते ही शवपरीत शलंग
लपलपाने लगती है उसकी जीभ
ISSN 2454-2725
तम्ु हारी आँखों ने मझु े मारा
और मैंने मृत्यु को जजया जीवन की तरह
साांस के अजां तम जहस्से में
जब काँच करकता था
तो मैं तम्ु हारा नाम लेता था
और तमु थोडा सा भगवान हो जाती थी
और मैं थोडा सा कुत्ता!
पर मैं मरा नहीं हँ
जजन्दा हँ वहाँ
इतना पता है मझु े
वही ँ से आती है मझु े साँसें
और वही ँ धड़कता है मेरा जदल
बाकी सब धोखा है
तम्ु हारी 'न' में सोई हुई मौत
और मेरी 'हाँ' में जागती जजदां गी
सब धोखा है !
फड़फड़ाने लगते हैं होंठ और उत्तेशजत हो उठता है
उसका अगं अंग ...
घटु नों से मड़ु कर उठ जाते हैं उसके
अगले दोनों नन्हें खरु
उसकी मजी के शवरुद्ध
रचता है षड्यिं उसका रोम रोम
िायद वह जानता है अपनी अल्प आयु
अकाल मौत
जो शनशित मगर अशनशित है
इसी शलए नहीं रोकती उसे उसकी
माँ बहन और बेटी
लेशकन ए परुु ष !ए शवश्वगरुु भारत !
प्राणी जगत में सवोत्तम समाज के
प्यार
इसां ान, कुत्ते और भगवान को
इसां ान, कुत्ता और भगवान बनाता है
उदासी के आठवें प्रहर में
मैंने जलखा ये डायरी में
और जलखते ही उड़ गए शब्द
आकाश में नहीं, पाताल में
एक मेमना कल मार जदया गया है,
डूबते सरू ज को साक्षी करके ,
शहर के आखरी छोर पर,
उसके कान में कहा गया,
जक तमु झठू के जाल में,
फांसे हुए एक कीड़े हो,
इसजलए तम्ु हे मर जाना चाजहए,
मैं तनहा पड़ा था
और तमु बह रही थी, आँखों से
कजवता की तलाश में
भटकता कोई आजदम फ़कीर, मझु े देखता
तो चमू ता हज़ार बार
और मैं सोचता रहता, तम्ु हारे बारे में
जैसे कोई भख
ू ा सोचता है
रोटी के बारे में
जबना आगां न वाले घर के छत पर,
चढ़ कर चाँद ने सीजढयों से नीचे झाँका,
दो जजस्म, एक मेमना और एक मोबाइल,
बरामद हुए थे,
रात के उस प्रहार,
जब सब सो रहे थे,
प्रेमपत्र पर जलखे गए,
बेमानी जज्बात की तरह,
तमु खदु को खोदना कभी
तम्ु हारी अजां तम तह में
मैं दबा ह,ँ साबतू
तम्ु हे मालमू है या नहीं
मैं नहीं जानता
प्रेम के अचार को;
चाटा गया, चसू ा गया,
और जफर फें क जदया गया,
सीजढयों के नीचे,
Vol.2, issue 14, April 2016.
वर्ष 2, अंक 14, अप्रैल 2016.