जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका / Jankriti International Magazine( बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की 125वीं जयंिी पर समतपिि अंक)
ISSN 2454-2725
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पति
( बाबा साहब डॉ. भीमरा
अनन्त आलोक की कविताएँ विटकनी दरवाजा साक्षी है तुम्हारी अय्याशियों का यह जानता है उसकी अनुपशथथशत में तुमने शकस शकस को घसीटा है पलंग पर शकस शकस के बालों में शपरोई उँगशलयाँ और चूमा शकतने होठों को...
उसने देखा है तुम्हारे रोम रोम में दोड़ता रसना रस...
ये बात अलग है शक शकसी से कहेगा नहीं दरवाजा पुरुष जात है न! लेशकन इसकी भी एक पत्नी है वही तो रोकती है इसे समय और संयोग की हवा आने पर जब ये छटपटाता है भाग जाने को हवा में फु र हो जाने को मचलता है मथती करने को कु ं वारे लाट सा पटकता हाथ पाँव
उस समय इसे एकदम शथथर कर देती है
शचटकनी! वो चाहे तो बता सकती है तुम्हारी करतूत भी तुम्हारी पत्नी को! तुम शबन शचटकनी के दरवाजे हो!!! ***
काँधे िढ़ी औरतें पहाड़ के काँधे चढ़ी औरतें कर रही हैं हजामत बूढ़े पहाड़ की
कनपटी और शसर के शपछले शहथसे में बचे खुचे, पके, भुररयाये बाल क़तर देती हैं हर वषर जाड़ा आने से पहले
ये औरतें भले ही प्रोफे िनल हजाम न हों लेशकन इनके आगे बड़े बड़े हजाम भरते हैं पानी जब चलता है इनका दराती उथतरा
इनमें से अशधकतर ने नहीं पढ़ा है गशणत
मगर इनके ज्याशमशतक ज्ञान का कोई सानी न शबजली की फु ती से कतरती हैं ये
अपने अपने शहथसे की आयतें वगर और शिभुजें शबना थके ल पेंशसल और प्रकार के काटती हैं शभन्न शभन्न प्रकार के थटेंशियल
पहाड़ का सर हो जाता है एकदम फै िनेबल, आकषरक शफ़ल्मी शसतारों आज के नोजवानों ने इन्हीं से सीखा होगा बालों में कशटंग के अलग अलग शडजाइन बनवाना
पहाड़ ने गदरन से छाती तक ओढा रखा है थलेट पत्थर के श्याम सफे द चेकदार मकानों से बना
काशफया