Jankriti International Magazine vol1, issue 14, April 2016 | Page 133

जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका / Jankriti International Magazine( बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की 125वीं जयंिी पर समतपिि अंक)
ISSN 2454-2725
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिक
( बाबा साहब डॉ. भीमराव अ
परा आक्षसन हो, अपने क्षनजी क्षहत की राजनीक्षत कर रहे है । पू ंजीवाद के इस दौर में एक दक्षलत भी अगर आगे बढ रहा है, तो क्षसफग अपने क्षनजी क्षहत को देख रहा है । क्षजस स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्न्तव की भावना क्षक स्थापना दक्षलतों के राजनीक्षत में आने का लक्ष्य रहा वह खंक्षडत पडी है । अम्बेदकर ने कहा हैं--- ‚ मेरे क्षवचार से इस देश के दो दुश्मनों से कमगारों को क्षनपटना होगा । ये दो दुशमन हैं, ब्राह्मण्वाद और पू ंजीवाद.....| ब्राह्मण्वाद से मेरा आशय स्वतंत्रता, समता, बंधुत्न्तव की भावना के क्षनषेध से है । यद्दक्षप ब्राह्मण्वाद इसके जनक है लेक्षकन यह ब्राह्मण्तक सीक्षमत नहीं होकर सभी जाक्षतयों में घुसा हुआ है ।‚( संदभग:-‘ दक्षलत राजनीक्षत की समस्या’, प्रफु ल्ल कोलख्यान, पृष्ट ५, ६) यह दक्षलतों में भी घुसा हुआ है । तभी तो जग्गु राजनीक्षत में अपने समूह, जाक्षत के उत्न्तथान के क्षलए नहीं उतरता, बक्षल्क अथग- लाभ के क्षलए उतरता है । ठाकु र समझाता है--- ‚ सालाना पंद्रह बीस लाख तक खचग करने का चांस रहता है । मनरेगा की मद से तो चाहे क्षजतना क्षनकालो । बस कागज की पेटा पूरा करते रहो... पांच साल में पच्चीस लांख की बचत ।.... बेटे की शादी में मोटरसाईक्षकल क्षमलती है । बेटी की शादी में हजारों रुपए न्योता क्षमलता है ।...... वृधावस्था पेंशन, क्षवधवा पेंशन..........। पांच साल में क्षकतनी कमाई होगी उसका क्षहसाब लगा सकता है ।‚ जग्गुआ की भी यहीं सोच है । वह भी चाहता है रामक्षसंह तरह मोटर साइक्षकल, अच्छा नाम, मान-सम्मान अथागत सीट चाक्षहए, अक्षधकार चाक्षहए लेक्षकन दाक्षयत्न्तव और कतगव्य की भावना गौण है । जग्गु भी इसी मन: क्षस्थक्षत का पोषक है । जग्गु से जे. एन. टाईगर बनना है । दक्षलतो के शोषण की दोहरी पृष्टभूक्षम बन जाती है, क्षजस प्रकार क्षब्रक्षटश काल में अंग्रेज और उनके द्वारा तैयार मध्यस्त‘ जमींदार’ शोषण करते रहे, वैसे ही राजनीक्षत में दक्षलतों के आगमन के बाद ब्राह्मण, ठाकु र और उनके द्वारा तैयार जग्गु जैसे दक्षलत ब्राह्मण, दक्षलतों का शोषण करेंगे ।
अम्बेडकर ने दक्षलतों के दों दुश्मन माने- ब्राह्मण्वाद और पू ंजीवाद । दक्षलत राजनीक्षत ब्राहम्ण्वादी व्यवस्था के क्षवरोध में तो रहा, परंतु क्षबडम्बना यह रही क्षक पू ंजीवादी व्यवस्था का पोषक ही बन गया । सत्ता के मद में दक्षलत अखण्डता टूटती है- ‚ पांच जाक्षतयों में बंटे चालीस घर दक्षलतों के बीच से जग्गु को लेकर तेरह उम्मीदवारों ने पचाग भरा ।‚ दक्षलत जाक्षत क्षजसे सवणों के क्षवरुदध अपनी लराई में एकजुट रहना था, वह आपस में ही उपजाक्षतयों में बंट जाते है । उनमें फू ट पर जाती है । क्षजन दक्षलतों को सवणों के क्षवरुध अपनी लराई लरनी थी, वह सवणों से ही जा क्षमलते है । अम्बेडकर क्षजन दो दुश्मनों से दक्षलतों को क्षनपटने की बात करते है आज दक्षलत उन्हीं दो दुश्मन से जा क्षमले है । जग्गु ब्राह्मण से क्षमलता है तो मु ंदर पदारथ दूबे से, पू ंजी प्राक्षप्त के क्षलए । यहां प्रश्न उठता है क्षक राजनीक्षत में अगर दक्षलत, ब्राह्मण एक हो सकते है तो क्षफर सामाक्षजक व्यवस्था में क्यों नहीं? सामाक्षजक व्यवस्था में उन्हें अलग कै से कहा जा सकता है । सत्ता की सीढी पकरने के लोभ में दक्षलत अपने मूल लक्ष्य से ही भटक जाते है । दक्षलत राजनीक्षत प्रारम्भ होती है और दक्षलत गायब होते जाते है । वोट प्राप्त करने के क्षलए तरह-तरह के लालच देकर भंडारा, कं बल बांटना प्रारम्भ होता है । मुसक्षलम वोटो की अलग से राजनीक्षत की जाती है । दक्षलतो के अपने लाभ के क्षलए राजनीक्षत प्रारम्भ होती है परंतु दक्षलतों के क्षहत्तों की, रिा की राजनीक्षत समाप्त होती नजर आती है ।
Vol. 2, issue 14, April 2016. वर्ष 2, अंक 14, अप्रैल 2016.
जाक्षतगत अस्पृश् दक्षलतों में भी यह अस्पृश्यता क्षवद्यमान है । जब पर स्टडी करने आते है, तो मु ंदर और जग्गु इस वह स्कू ली लौंडों के आगे हाक्षजरी बजाने जाए क्षजस भेदभाव की नीक्षत के क्षवरुद्ध सवणों से ल अपनाते है । ऐसे में अगर वह सत्ता में आते ह कारण वह सवणग का क्षवरोध करते है । ऐसे में क्ष आरिण चाक्षहए, उनकी अलग सत्ता चाक्षहए जाक्षत नहीं ढूढेंगे? उनसे घृणा नहीं करेंगे?
जब जग्गु चुना को माला बनाने कहते है, तो वह मना कर देत तरेर कर देखती है । यानी की में माला गू ंथू ंगी । के गांव में दक्षलत को परधानी की कु सी पर बैठ लेक्षकन आज की सरकारे लगता है ला के रह दक्षलतों का संघषग क्षसफग आक्षथगक असमानता स है उससे लरना रहा । दया पवार कहती भी है- के क्षदमाग में है ।‚ तो क्या राजनीक्षत के द्वारा क्षद बाद, जे. अन. टाइगर बनने के बाद भी ठ्कु राई औरतए दक्षलतों को सत्ता में अक्षधकार देना सव
दक्षलत आ ररपक्षललक’ बनती जाती है । जहां जग्गु के क्षवजय एटानी’ की तरह परधानी भी अपने नाम क्षलख रहे । इससे भी क्षबडम्बनात्न्तमक क्षस्थक्षत यह है क्षक मार कर छीन नहीं लेंगे?‛ तो ऐसी पररक्षस्थक्षत म
जग्गु क्षवजयी हो अब सवणों के हाथ का मोहरा नहीं बनेगा, प धरातल पर सत्ता और शक्षि की कें क्षद्रतता क क्षनक्षहत है, उसकी गक्षतकी की उसी ओर ले ज’ आज की क्ांक्षतयों का अथग’ अनुवाद लाल
Vol. 2, issue 14, April 2016.