Jankriti International Magazine vol1, issue 14, April 2016 | Página 130

जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका / Jankriti International Magazine( बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की 125वीं जयंिी पर समतपिि अंक)
ISSN 2454-2725
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिक
( बाबा साहब डॉ. भीमराव अ
‘ शूद्र और प्रवतक्ांवत’ लेख में बाबासाहेब अंबेडकर ने प्रश्न वकया है वक: मनु के पहले शूद्र की वस्थवत क्या थी? 6 इस संदभा में न के िल मनु के विरोधी अवपतु समथाक भी मानते हैं वक समाज में शूद्रों की दयनीय वस्थवत आरंभ से ही रही है । वकं तु इससे वभन्न बाबासाहेब स्पष्ट देखते हैं वक शूद्रों की वस्थवत मनु से पहले अच्छी और मनु के बाद खराब रही । इस संबंध में िह कहते हैं,“ मनु शूद्र की चच ा इस तरह करते हैं मानो िह अनाया हो वजसे आयों के सामावजक और धावमाक अवधकारों से बाहर रखा जाए । दुभााग्य से आम लोग यह बात बहुत आसानी से स्िीकार कर लेते हैं वक शूद्र अनाया हैं, पर इसमें कोई संदेह नहीं वक प्राचीन आयों के सावहत्य में इसके वलए रत्ती भर प्रमाण नहीं है ।” 7
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बाबासाहेब कहते हैं,“ अस्पृश्यों का त्रास ही वहंदुओं का अपराध है । वहंदुओं की धावमाक मनोिृवत्त में क्ांवत के वलए अस्पृश्यों को वकतना इंतजार करना पड़ेगा? इसका उत्तर तो िही दें, जो भविष्यिाणी करने की योग्यता रखते हैं ।” 8 ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो अस्पृश्यों की दयनीय वस्थवत से दुखी हो, यह वच्लाकर अपना जी ह्का करते वफरते हैं वक हमे अस्पृश्यों के वलए कु छ करना चवहए । लेवकन इस समस्या को जो लोग हल करना चाहते हैं, उनमें से शायद ही कोई ऐसा व्यवि हो जो यह कहता हो वक हमें स्पृश्य वहंदुओं को बदलने के वलए भी कु छ करना चावहए । यह धारणा बनी हुई है वक अगर वकसी का सुधार होना है तो िह अस्पृश्यों का ही होना है । अगर कु छ वकया जाना है तो िह अस्पृश्यों के प्रवत वकया जाना है और अगर अस्पृश्यों को सुधार वदया जाए, तब अस्पृश्यता की भािना वमट जाएगी । सिणों के बारे में कु छ भी नहीं वकया जाना है । उनकी भािनाएं, आचार-विचार और आदशा उच्च हैं । िे पूणा हैं, उनमें कहीं भी कोई खोंट नहीं है । क्या यह धारणा उवचत है? यह धारणा उवचत हो या अनुवचत, लेवकन वहंदू इसमें कोई पररितान नहीं चाहते? उन्हें इस धारणा का सबसे बड़ा लाभ यह है वक िे इस बात से आश्वस्त हैं वक िे अस्पृश्यों की समस्या के वलए वब्कु ल भी उत्तरदायी नहीं हैं । यह जब तक नहीं होगा तब तक अस्पृश्यता का नाश नहीं होगा । सिणा वहंदू अपने बच्चों में शुरू से ही जाने अंजाने में यह संस्कार डालते हैं वक उसका वदया मत खाओ, उसके साथ मत रहो, उसके यहााँ मत जाओ आवद । जब िह बड़ा होता है वशक्षा पाता है तो मालुम होता है वक यह गलत है तब उसे संस्कार अस्पृश्यता को खत्म करने में बाधक बनता है ।
बाबासाहेब के अनुसार,“ उच्चतर अध्ययन क्षेत्र में अस्पृश्य का कोई प्रिेश नहीं है, उसके वलए सभ्य जीिन के कोई रास्ते नहीं खुले हुए हैं( आज के संदभा यह सही नहीं है)। उसका काम वसफा सफाई करना है । उसे और कु छ नहीं करना है । अस्पृश्यता का अथा उसकी रोजी-रोटी की सुविधा नहीं है । वहंदुओं में से कोई भी अस्पृश्य को रोजी-रोटी, मकान ि कपड़ा मुहैया करने के वलए वजम्मेदार नहीं है । अस्पृश्य का स्िास््य वकसी की वजम्मेदारी नहीं । अस्पृश्य की मौत शुभ मानी जाती है । एक वहंदू कहाित है-‘ अस्पृश्य मरा, गंद हटा’।
दूसरी तरफ, अस्पृश्य के वलए स्ितंत्र समाज-व्यिस्था की सभी बलाएं उसकी तकदीर में वलखी हैं । स्ितंत्र समाज-व्यिस्था में प्रत्येक व्यवि को अपने जीिन के वलए संघषा करना पड़ता है । उसकी यही वजम्मेदारी स्ितंत्र समाज
Vol. 2, issue 14, April 2016. व ष 2, अंक 14, अप्रैल 2016.
– व्यिस्था का सबसे बड़ा अवभशाप है । कोई समान व्यिहार वमलने पर वनभार करता है । हाल वमलते और न उसके साथ राग-द्वेष से मुि व्य के िल बदतर है, बव्क यह वनश्चय ही एक क् उसके मावलक की होती है । स्ितंत्र मजदूर व्यि करना पड़ता है । इस धक्का-मुक्की में अस्पृश्य के कारण अस्पृश्य का पक्ष वनबाल हो, तब वजन् वजन लोगों को वनकाला जाना है, उसमें उसक कमा है वक इससे अस्पृश्यों पर अपने वलए र दरिाजे उनके वलए पूरी तरह खुले नहीं होते ।” वक उनका कोई‘ मानिावधकार’ ही न हो । उस सकते थे, उन्हें स्ितंत्र समाज-व्यिस्था की सभ
ग्राम-समाज
भारत में सामंतिाद का विकास विष खाने पीने के वलए ही चीजें पैदा की जाती थीं बाबासाहेब अंबेडकर ने कहा,“ बहुतों ने ग्राम ग्रामीण प्रजातंत्र कहा है । इन देहाती प्रजातंत्रों क में सािाजवनक जीिन के वलए अवभशाप हैं । य भािाना के वनमााण में सफल नहीं हुआ, तो इस लोगों में विवशष्ट स्थानीयता की भािना भर गई पंचायतों की व्यिस्था के अंतगात एकताबद् ज गया । िे सब एक ही राजा की प्रजा थे, इसके वस
1948 में जब नए संविधान का मसौ उसमें ग्राम पंचायतों िाला विधान नहीं रह गय कहा,“ कु छ लोगों का विचार है वक नए संव पाश्चात्य वसद्ांतों का समािेश करने के बदल खड़ी करनी चावहए थी । कु छ अन्य लोग हैं ज सरकारें नहीं चाहते । िे चाहते हैं, भारत में बह दयनीय नहीं तो असीम अिश्य है । बहुत हद त
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