Jankriti International Magazine vol1, issue 14, April 2016 | Page 129

जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका / Jankriti International Magazine( बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की 125वीं जयंिी पर समतपिि अंक)
ISSN 2454-2725
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिक
( बाबा साहब डॉ. भीमराव अ
पंकज कु मार ससंह
विकास एिं शांवत अध्ययन विभाग म. गां. अं. वहंदी विश्वविद्यालय, िध ा
9823696685; gandhikhadi @ gmail. com
बाबासाहेब अंबेडकर अपने समय के क्ांवतकारी विचारक थे । उन्होंने न के िल सामावजक अवपतु आवथाक, राजनैवतक, धावमाक आवद क्षेत्रों में क्ांवतकारी विचार वदए । िे सामावजक सुधार की जगह सामावजक बदलाि चाहते थे । उनके अनुसार“ भारत में समाज सुधार का मागा स्िगा के मागा के समान है और इस काया में अनेक कविनाइयााँ हैं । भारत में समाज सुधार काया में सहायक वमत्र कम और आलोचक अवधक हैं ।” 1
ज्ञातव्य है वक बाबासाहेब अंबेडकर ने वहंदू ग्रंथों का बहुत गहराई से अध्ययन वकया तदोपरांत उन्होंने अनेक मौवलक स्थापनाएाँ लोगों के सामने रखी थीं । अवधकांश इवतहास वििेचक यह मानते हैं वक आयों ने बाहर से आकर भारत में ऋग्िेद की रचना की । अंबेडकर यह वसद्ांत नहीं मानते थे । उन्होंने अनेक प्रमाणों से वसद् वकया वक आया यहीं के मूल वनिासी थे । एक धारणा यह भी प्रचाररत की गई थी वक आयों ने बाहर से आकर द्रविड़ों को शूद्र बनाया और िणा व्यिस्था के शूद्र प्राचीन द्रविडों की संतान हैं । अंबेडकर ने इस धारणा का भी विरोध वकया । समाज की भौवतक पररवस्थवतयों को पहचानते हुए उन्होंने बताया वक यह प्रथा के िल भारत में ही नहीं अवपतु भारत के बाहर भी हुई है । वकं तु अवधकतर उनका झुकाि इस धारणा की ओर रहा है वक यह जावत प्रथा, िणाव्यिस्था, छु आछू त के िल वहंदू धमा द्वारा वदया गया है । वहंदू धमा पर उन्होंने बार-बार यह आक्षेप लगाया वक ब्राह्मणों ने इसे दैिी प्रथा बनाकर समाज को जड़ बना वदया ।
उन्होंने स्िाधीनता आंदोलन के विरोध में अछू तों का नया संगिन खड़ा वकया । उन्हें वहंदू धमा के कु प्रथाओं का अंत अंग्रेजी राज्य में होने की सम्भािना अवधक वदखती थी, िवनस्पत स्ितंत्र भारत में । हालांवक इससे स्िाधीनता आंदोलन कमजोर हुआ, वबखराि की ताकतें आगे बढ़ी । बाबासाहेब वलखते हैं,“ वजन सज्जनों ने सामावजक सम्मेलन के अवधिेशनों की अध्यक्षता की थी, िे इस बात दुखी थे वक बहुसंख्यक वशवक्षत वहंदू राजनीवतक उत्थान के पक्षधर हैं और सामावजक आंदोलनों के प्रवत उदासीन हैं ।” 2 इलाहाबाद में हुए कांग्रेस से आििें अवधिेशन के अध्यक्ष के रूप में श्री डब्ल्यू. सी. बनजने ने कहा,“ मैं ऐसे लोगो की बात सुनने को वब्कु ल तैयार नहीं ह ाँ, जो यह कहते हैं वक हम अपनी सामावजक प्रणाली में सुधार नहीं करेंगे, जब तक हम राजनीवतक सुधारों के योग्य नहीं हो सकें गे ।” 3 इस प्रकार सामावजक आंदोलन और राजनीवतक आंदोलनों में साफ खीचाि वदखाई देता है । यह खींचाि शत्रुता में बदल गया“ जब सामावजक सम्मेलन ने अपना पंडाल खड़ा करने की इच्छा की तो इसके विरोवधयों ने पंडाल को जला डालने की धमकी दी । इस प्रकार समय के साथ-साथ राजनीवतक सुधार के पक्ष िाले दल की जीत हुई और सामावजक सम्मेलन
गायब हो गया और लोग उसे भूल गए ।” 4 4 साइमन कमीशन के आने के बाद बाबासाहेब का समथान भी वकया ।
जावत की पररभाषा उद्ृत करते हुए उन् वफर पररितान हुआ । िे संविधान के वनमााताओ अवतश्योवि नहीं होगी, क्योंवक बाकी लोग क उन्होंने दवलत, िंवचत लोगों के अवधकारों क उन्होंने वदया िह महत्त्िपूणा है । उन्होंने बताया स्थावपत न की गई ।
द्रसवड़ और तसमल 1948 ई. में बाबासाहेब की पुस्तक‘
“ द्रविड़ शब्लद‘ तवमल’ का ही संस्कृ त रूपांतर समूचे भारत की भाषा थी ।” इस स्थापना के वल
“ द्रविड़ों का दूसरा नाम नाग था । उत्तर भारत म भारत में नाग लोग तवमल भाषा अपनाए रहे । ज से दो नस्लें( टू रेसेज) थीं- आया और नाग् । का नाम है ।” 5
यहााँ दो नस्लों का वसद्ांत मानते हुए नस्ल का भेद पहचानने के वलए उन्होंने के िल भारत में जावत-वबरादरी और नस्ल पर घुये की नाक की बनक, उत्तर प्रदेश के ब्राह्मणों की न की नाक के गिन में विशेष अंतर नहीं है ।” परर की नाम-जोख करके िैज्ञावनक ढंग से अध्यय वसद्ांत वनरस्त हो जाता है ।
शूद्र
Vol. 2, issue 14, April 2016. व ष 2, अंक 14, अप्रैल 2016. Vol. 2, issue 14, April 2016.