जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका / Jankriti International Magazine( बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की 125वीं जयंिी पर समतपिि अंक)
ISSN 2454-2725
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिक
( बाबा साहब डॉ. भीमराव अ
हमारे िथाककथि कहन्िू समाज की सनािनी व्यवस्था में भारिीय िीन-िकलि समाज अज्ञानांधकार में िडफडाने के साथ चािुवणण्यण व्यवस्था में कपसने के साथ िररद्रिा की आग में जल रहा था । इसके पीछे कारर् यह था कक हमारे कसिान्ि सकियों से ईश्वरकृ ि, अपौरुषेय एवं प्रश्नों से परे माने जािे रहे, ्योंकक इन कसिान्िों की जडें हमारे जेहन में इिनी गहरी कर िी गयी थीं, साथ ही इनकी व्याख्या ऐसी की गई थी कजनका कोई अकाट्य प्रमार् नहीं था । ऐसे मृिवि, अस्पृश्य िकलि समाज में भगवान बुि के पिाि कई शिाकदियों िक कोई एक अके ला ऐसा सामाकजक कचंिक भारि में नहीं अविररि हुआ कजसने इन िथाककथि कसिान्िों का खण्डन ककया हो । हजारों वषों से शोकषि, पीकडि, िकलि, अछू िपन, शासक-पोषक, सवर्ण वगों के जघन्य एवं अमानवीय शोषर्, िमन, अन्याय के कवरुि छोटे-मोटे संघषण को संगकठि रूप िेने का कायण सवणप्रथम अद्भुि प्रकिभा, सराहनीय कनष्ठा, न्यायशीलिा, स्पिवाकििा के धनी बाबा साहब युगपुरुष डॉ. भीमराव अम्बेडकर जी ने ककया । आप ज्ञान के भण्डार और िकलिों एवं शोकषिों के मसीहा बनकर भारिीय समाज में अविररि हुए । आपने िकलिों एवं शोकषिों को समाज में सर ऊँ चा कर बराबरी के साथ चलना कसखाया । आप ऐसे समाज की के वल कल्पना ही कर सकिे हैं, जब हमारे पुरखों में से कु छ को इन्सान जैसी श्ल- सूरि होने के बावजूि, उन्हें सवर्ण समाज इन्सान नहीं समझिा था । ऐसे समाज के प्रकि बाबा साहब ने स्वअकस्ित्व की सामर्थयण, अकस्मिा एवं िांकन्ि की आग जलाई कजससे सामाकजक न्याय प्राकप्त के कलए अनेक िकलि-शोकषि कायणकिाण आत्मबकलिान के कलए उनके साथ खडे हो गये । 3
परम्परावािी व्यवस्था( वैकिक संस्कृ कि) के कारर् हजारों वषों से कु चले गये समाज के लोग आज '' िकलि '' संज्ञा से जाने जािे हैं और उनके कवरोध का प्रमुख कारर् वर्ण-धमण है । कमण श्रेष्ठ न होने पर भी जाकि के नाम से श्रेष्ठ कहलाने वाला व्यकि या समाज अपने आप में एक धोखा है । कवश्व की सभ्यिा और संस्कृ कि में ऐसा कहीं भी िेखने को नहीं कमलेगा कक व्यकि को एक बार स्पशण होने से छू ने वाला व्यकि अपकवत्र हो जाए । भारि में अस्पृश्यिा के इस जािुई कसिान्ि का कोई िाककण क जवाब ककसी समाजशास्त्री के पास अभी िक उपलदध नहीं है । यह अनूठा और बेकमसाल कसिान्ि पूर्णिया षडयन्त्र और बेईमानी के अलावा कु छ नहीं किखिा है । जीवन की इन िग्ध एवं करुर् कस्थकियों से उबरने के कलये िकलि साकहत्य के माध्यम से िकलि अपनी अकस्मिा को पहचानने का प्रयास कर रहा है- िकलि कौन है, उसकी कस्थकि ्या थी? उसकी इस कस्थकि के कलये कौन उत्तरिायी है, उनकी संस्कृ कि ्या थी? उसके पूवणज कौन थे? यह कचन्िन ही िकलि साकहत्य के प्रमुख कवषय हैं । िकलि समुिाय के बहुजन( करोडों) लोग आयण कहन्िुओं से सामाकजक न्याय की आशा लगाये हुए हैं, परन्िु धमाणन्धिा और असमानिा के पक्षधर ये लोग समानिा के कचन्िन को िाक में रख िेिे हैं । आज िेश में करोडों कनधणन, अनपढ़, बेरोजगार िकलि व्यकि अपनी अकस्मिा की िलाश में भटक रहे हैं । कगररराज ककशोर के शदिों में कहें िो भारिीय समाज, खासिौर से जािीय कहन्िू समाज, कजसके कारर् िेश में िाकलत्य पनपा और आज भी अपने कवकृ ि रूप में मौजूि है, कवकचत्र और परस्पर कवरोधी मानकसकिाओं का पु ंज बनकर रह गया है । यह सब हजारों वषों से चले आ रहे मानकसक और मनोवैज्ञाकनक अवरोधों का प्रकिफल है । ये मानकसक ग्रकन्थयाँ ही कवकभन्न स्िरों पर अपने को सही साकबि करिी हुई िाकलत्य को बढ़ािी ही नहीं गई ंअकपिु उसे
अस्पृश्यिा और िमन का कशकार भी बनािी ग कमणफल है । 4
संसार में ऐसा कोई िेश नहीं होगा जो मानव-म जो पैिा हुआ िब भी िकलि है, कजन्िा रहेगा समाज स्मृकियुग की परम्परा में जी रहा है । क सकिा । उसके बच्चों के साथ बराबरी में बैठ कगलास की व्यवस्था है । अछू िों के नाई द्वारा ब पंचायि में बराबरी से नहीं बैठने किया जािा । अछू िों को बाराि ले जािे समय बैण्ड-बाजों कलये शमषान भूकम पृथक से है । अछू िों को म समस्ि उिाहरर् सम्पूर्ण भारि के राज्यों में व्या पररविणन के इस िौर में कस्थकियाँ िकलिों के प अकधकार किए हैं और िकलिों को इससे काफ िकलि आज भी हो जािे हैं ।
विणमान समय में िकलिों के समक्ष सबसे बडी च जगिगुरू से लेकर छोटे धाकमणक मठाधीशों िक एवं उत्पीडन से कै से बचाया जा सकिा है । परम्परावािी िकलि कचंिक साकहत्यकार, समा ओर आककषणि हो रहे हैं, जो भारिीय संकवधान जैसे अंग्रेजी शासन काल में अछू िों और शूद्रों ओर कवज्ञान की चहुमु ँखी िर्की ने िुकनया अकधकाकधक रूप में पढ़ा जाने लगा है । स्विंत्र समझने और उन्हें पाने के कारर् से परम्पराव( वैकिक) साकहत्य उपलदध है, उसमें अकभजात् और शोकषि िोनों ही भावनाएं सवणत्र नजर आि
पररविी अम्बेडकरवाि या िकलि नव जागरर्
अम्बेडकरवाि की कद्विीय मुकि शृ ंखला का आ की जो धारा कवककसि हुई, वह इसकलये कवकश
Vol. 2, issue 14, April 2016. वर्ष 2, अंक 14, अप्रैल 2016. Vol. 2, issue 14, April 2016.