Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 41

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN: 2454-2725

कारा

रक्षा कु मारी झा पी-एच. डी.( महन्दी अनुवाद)
मो. नं. – 08130589082 भारतीय भार्षा के न्द्र
भार्षा, सामहत्य और संस्कृ मत अध्ययन संस्थान
जवाहरलाल नेहरू मवश्वमवद्यालय नई मदल्ली-110067
‘ कारा’ सामहत्य अकादेमी द्वारा पुरस्कृ त वानीरा मगरर के नेपाली उपन्यास‘ कारार्गार’ का महंदी अनुवाद है । मूल नेपाली में यह उपन्यास सन् 1979 में प्रकामशत हुआ । वानीरा मगरर नेपाली भार्षा की प्रमतमष्ठत उपन्यासकार एवं कवमयत्री हैं । वे मत्रभुवन मवश्वमवद्यालय, नेपाल से नेपाली भार्षा में पी-एच. डी. करने वाली पहली ममहला हैं । नेपाली सामहत्य में अमूल्य योगदान देने वाली वानीरा मगरर की प्रमुख कृ मतयां –‘ कारार्गार’,‘ शनबंि’,‘ िब्दािीि िांिनु’( उपन्यास),‘ एउटा एउटा शजउीँदो जंर्गबहादुर’,‘ जीवन था-यम्मरु’,‘ मेरो आशवष्कार’( कमवता संग्रह),‘ फ्रॉम द अदर लैंड’,‘ माइ शडस्कवरी एवं फ्रॉम द लेक’( अंग्रेज़ी कमवता संग्रह) इत्यामद हैं ।
‘ कारा’ प्रदीप मबहारी द्वारा अनूमदत उपन्यास है । इस उपन्यास में एक ऐसी स्त्री की व्यथा-कथा मचमत्रत मकया गया है, जो अमववामहत रहती है । मपता के इच्छा-पत्र में संपमत्त में नामयका का महस्सेदार होना उसके अमववामहत होने का कारि बनता है । सपंमत्त के लोभ के कारि नामयका के भाईयों द्वारा शादी का प्रस्ताव लेकर आने वाले सभी लड़के वालों को अस्वीकृ त कर मदया जाता है । अंत में वह अपने भाईयों से अलग रहने लगती है । यही अके लापन, नामयका को दूर के मामा के करीब लाता है । इस उपन्यास में कई
अन्य चररत्रों की कहामनयाँ भी इस उपन्यास को गमत प्रदान करती है ।
सन् 1960 में अमस्तत्ववाद से प्रभामवत नेपाली सामहत्य की प्रमसद्ध लेमखका पाररजात ने‘ शिरीषको फू ल’ शीर्षाक से पहला अमस्तत्ववादी उपन्यास मलखा था । इसके बाद नेपाली सामहत्य में भी अमस्तत्ववाद संबंधी तत्त्वों को आधार बना कर सामहत्य सृजन मकया जाने लगा । ऐसे रचनाकारो में वानीरा मगरर का नाम अग्रिीय है । वानीरा मगरर के पहले उपन्यास‘ कारार्गार’ पर भी अमस्तत्ववाद का गहरा प्रभाव है । अमस्तत्ववाद के अनुसार मानव मूल्य न शाश्वत है, न सावाभौम । इस धारिा के अनुसार मनुष्ट्य को उन मूल्यों को मानने के मलए मजबूर नहीं मकया जाना चामहए, मजसका चयन उसने स्वयं नहीं मकया । अमस्तत्ववाद द्वारा प्रमतपामदत मसद्धांत के अनुसार सत्य के अनेक रूप होने के कारि, उसे धारिाबद्ध नहीं मकया जा सकता । सचाई की समझ को भी बँधे-बँधाए मूल्यों में मनरूमपत नहीं मकया जा सकता । इस धारिा ने मनमित पररपामटयों, मतवादों, मवचारों और पूवााग्रहों को नकारकर जीवन की पारदमशाता को उजागर मकया । सन् 1946 में ज्यां पाल सात्रा ने ' अमस्तत्ववाद और मानववाद ' पर भार्षि देते हुए व्यमक्त के महत्त्व, उसके स्वतंत्रता एवं स्वावलंबन, चयन की गररमा और गुिों का समथान मकया ।
अतः यह कहना समीचीन होगा मक अमस्तत्ववाद एक ऐसी मवचार एवं पद्धमत है, जो वास्तमवक अनुभूमतयों और उनके मचत्रि में सहायक होती है । अमस्तत्ववाद के अन्तगात संत्रास, मृत्युबोध, क्षि, परायापन, अजनबीपन( एमलयनेशन), मवसंगमत( एब्सडा) वैयमक्तक-स्वातंत्र्य आमद प्रमुख तत्त्वों का व्यमक्त संदभा में अध्ययन मकया जाता है । इस पद्धमत में मनोमवज्ञान के तत्त्व दशान की ओर अग्रसर होते हैं ।
Vol. 3, issue 27-29, July-September 2017. वर्ष 3, अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017