Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
कारा
रक्षा कु मारी झा पी-एच . डी . ( महन्दी अनुवाद )
मो . नं . – 08130589082 भारतीय भार्षा के न्द्र
भार्षा , सामहत्य और संस्कृ मत अध्ययन संस्थान
जवाहरलाल नेहरू मवश्वमवद्यालय नई मदल्ली-110067
‘ कारा ’ सामहत्य अकादेमी द्वारा पुरस्कृ त वानीरा मगरर के नेपाली उपन्यास ‘ कारार्गार ’ का महंदी अनुवाद है । मूल नेपाली में यह उपन्यास सन् 1979 में प्रकामशत हुआ । वानीरा मगरर नेपाली भार्षा की प्रमतमष्ठत उपन्यासकार एवं कवमयत्री हैं । वे मत्रभुवन मवश्वमवद्यालय , नेपाल से नेपाली भार्षा में पी-एच . डी . करने वाली पहली ममहला हैं । नेपाली सामहत्य में अमूल्य योगदान देने वाली वानीरा मगरर की प्रमुख कृ मतयां – ‘ कारार्गार ’, ‘ शनबंि ’, ‘ िब्दािीि िांिनु ’ ( उपन्यास ), ‘ एउटा एउटा शजउीँदो जंर्गबहादुर ’, ‘ जीवन था-यम्मरु ’, ‘ मेरो आशवष्कार ’ ( कमवता संग्रह ), ‘ फ्रॉम द अदर लैंड ’, ‘ माइ शडस्कवरी एवं फ्रॉम द लेक ’ ( अंग्रेज़ी कमवता संग्रह ) इत्यामद हैं ।
‘ कारा ’ प्रदीप मबहारी द्वारा अनूमदत उपन्यास है । इस उपन्यास में एक ऐसी स्त्री की व्यथा-कथा मचमत्रत मकया गया है , जो अमववामहत रहती है । मपता के इच्छा-पत्र में संपमत्त में नामयका का महस्सेदार होना उसके अमववामहत होने का कारि बनता है । सपंमत्त के लोभ के कारि नामयका के भाईयों द्वारा शादी का प्रस्ताव लेकर आने वाले सभी लड़के वालों को अस्वीकृ त कर मदया जाता है । अंत में वह अपने भाईयों से अलग रहने लगती है । यही अके लापन , नामयका को दूर के मामा के करीब लाता है । इस उपन्यास में कई
अन्य चररत्रों की कहामनयाँ भी इस उपन्यास को गमत प्रदान करती है ।
सन् 1960 में अमस्तत्ववाद से प्रभामवत नेपाली सामहत्य की प्रमसद्ध लेमखका पाररजात ने ‘ शिरीषको फू ल ’ शीर्षाक से पहला अमस्तत्ववादी उपन्यास मलखा था । इसके बाद नेपाली सामहत्य में भी अमस्तत्ववाद संबंधी तत्त्वों को आधार बना कर सामहत्य सृजन मकया जाने लगा । ऐसे रचनाकारो में वानीरा मगरर का नाम अग्रिीय है । वानीरा मगरर के पहले उपन्यास ‘ कारार्गार ’ पर भी अमस्तत्ववाद का गहरा प्रभाव है । अमस्तत्ववाद के अनुसार मानव मूल्य न शाश्वत है , न सावाभौम । इस धारिा के अनुसार मनुष्ट्य को उन मूल्यों को मानने के मलए मजबूर नहीं मकया जाना चामहए , मजसका चयन उसने स्वयं नहीं मकया । अमस्तत्ववाद द्वारा प्रमतपामदत मसद्धांत के अनुसार सत्य के अनेक रूप होने के कारि , उसे धारिाबद्ध नहीं मकया जा सकता । सचाई की समझ को भी बँधे-बँधाए मूल्यों में मनरूमपत नहीं मकया जा सकता । इस धारिा ने मनमित पररपामटयों , मतवादों , मवचारों और पूवााग्रहों को नकारकर जीवन की पारदमशाता को उजागर मकया । सन् 1946 में ज्यां पाल सात्रा ने ' अमस्तत्ववाद और मानववाद ' पर भार्षि देते हुए व्यमक्त के महत्त्व , उसके स्वतंत्रता एवं स्वावलंबन , चयन की गररमा और गुिों का समथान मकया ।
अतः यह कहना समीचीन होगा मक अमस्तत्ववाद एक ऐसी मवचार एवं पद्धमत है , जो वास्तमवक अनुभूमतयों और उनके मचत्रि में सहायक होती है । अमस्तत्ववाद के अन्तगात संत्रास , मृत्युबोध , क्षि , परायापन , अजनबीपन ( एमलयनेशन ), मवसंगमत ( एब्सडा ) वैयमक्तक-स्वातंत्र्य आमद प्रमुख तत्त्वों का व्यमक्त संदभा में अध्ययन मकया जाता है । इस पद्धमत में मनोमवज्ञान के तत्त्व दशान की ओर अग्रसर होते हैं ।
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017